22 मई राजा राममोहन राय जयंती पर विशेष-
धार्मिक तथा सामाजिक चेतना जनजागृति में राजाराममोहन राय का नाम सबसे प्रथम लिया जाता है। इनका जन्म 1774 ईस्वी को हुआ था। धर्मनिष्ठ बंगाली परिवार में जन्म लेने के कारण राजा राम मोहन भी धार्मिक विचारों से ओतप्रोत थे। जब वह करीब 15 वर्ष के थे तो उन्होंने मूर्ति पूजा के विरोध में एक पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक के कारण समाज में उनकी कटू आलोचना की गई। यहां तक कि उस कट्टर धर्मनिष्ठ परिवार से राजा राममोहन राय को निकाल दिया गया था। इस समय उन्होंने दूर-दूर स्थानों की यात्रा की तथा अनेक प्रकार का ज्ञान तथा अनुभव प्राप्त किया। राजा राम मोहन राय अरबी, फारसी पहले ही जानते है। बाद ने उन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी, फ्रेंच,लैटिन तथा ग्रीक का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। इन भाषाओं को पढ़कर अनेक धर्मों के ग्रंथों का अध्ययन और तत्पश्चात उनकी तुलनात्मक समीक्षा कर सकते थे। इस प्रकार उनकी धार्मिक विचारधारा वस्तुतः गहन अध्ययन पर आधारित थी।
1805 ई.में राजा राम मोहनराय ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी में आए, इस नौकरी में 1874 तक वह रहे और उसके बाद स्थाई रुप से कलकत्ते में रहने लगे। सेवा निवृत्ति के काल में उन्होने अपना सारा समय जनसेवा में लगाया। 1814 ई. में उन्होंने आत्मीय सभा नाम की संस्था की स्थापना की। 1828 में उन्होंने बन्ग समाज की नीवं डाली, उनकी मृत्यु 1833 ई. में इंग्लैंड में हो गई। इस समय वे दिल्ली के मुगल सम्राट के पक्ष में समर्थन के लिये इंग्लैंड गये थे।

