भारत केसरी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 125वीं जयंती पर दो वर्षीय स्मरणोत्सव का शुभारंभ: एक युगदृष्टा के विचारों को राष्ट्रीय श्रद्धांजलि

संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार ने भारत के महान विचारक, शिक्षाविद्, राष्ट्रभक्त और राजनीतिक दूरदर्शी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 125वीं जयंती के उपलक्ष्य में दो वर्ष के आधिकारिक स्मरणोत्सव की घोषणा की है। यह स्मरणोत्सव डॉ. मुखर्जी के असाधारण योगदान को रेखांकित करता है, जिन्होंने भारतीय राजनीति, शिक्षा, उद्योग, सांस्कृतिक चेतना और राष्ट्रीय एकता को एक नया आयाम दिया।

राष्ट्र निर्माण में डॉ. मुखर्जी की अनमोल भूमिका

स्मरणोत्सव के उद्घाटन अवसर पर केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने उपस्थित गणमान्य अतिथियों को संबोधित करते हुए डॉ. मुखर्जी के विचारों को आज के भारत की उपलब्धियों से जोड़ा। उन्होंने कहा कि, “आज जब भारत चंद्रमा तक पहुँच चुका है और एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री प्रधानमंत्री से संवाद कर रहा है, तो यह उसी राष्ट्रनिर्माण की दिशा है जिसकी कल्पना डॉ. मुखर्जी ने की थी।”

उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि कश्मीर के लाल चौक पर निर्भयता से तिरंगा फहराया जाना, भारत के सभी कानूनों का जम्मू-कश्मीर में पूर्ण क्रियान्वयन, और “एक देश, एक झंडा, एक संविधान” की भावना – डॉ. मुखर्जी के संघर्ष और बलिदान का प्रतिफल है।

वर्तमान भारत में विचारों की प्रासंगिकता

संस्कृति मंत्रालय के सचिव श्री विवेक अग्रवाल ने डॉ. मुखर्जी की दूरदर्शिता को स्मरण करते हुए कहा कि वे केवल एक राजनीतिज्ञ नहीं, बल्कि एक गहन चिंतनशील शिक्षाविद् और सच्चे अर्थों में राष्ट्रभक्त थे। उन्होंने यह संदेश दिया कि डॉ. मुखर्जी का जीवन इस विश्वास का प्रतीक है कि राष्ट्र की पहचान उसके नागरिकों की एकता, साहस और लोकतांत्रिक मूल्यों पर आधारित होती है।

शिक्षा, सिद्धांत और संघर्ष के प्रतीक

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने डॉ. मुखर्जी की बहुआयामी प्रतिभा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वे एक साथ शिक्षाविद्, वैज्ञानिक और राजनेता थे। उनका वैचारिक साहस इतना प्रबल था कि उन्होंने सरकार से त्यागपत्र देने में भी संकोच नहीं किया। यह उनके व्यक्तित्व की मौलिकता और सिद्धांतों के प्रति निष्ठा को दर्शाता है।

ऐतिहासिक योगदान और स्मृति

डॉ. महेश चंद्र शर्मा ने भारत विभाजन के दौर में डॉ. मुखर्जी की भूमिका का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया और बताया कि कैसे उन्होंने विभाजन का स्पष्ट विरोध किया तथा बंगाल और असम के हिस्सों को पाकिस्तान में जाने से रोका। उन्होंने यह भी कहा कि सत्ता में रहने वालों ने विभाजन की सच्चाई से जनता को दूर रखा, जबकि डॉ. मुखर्जी ने निडरता से सच्चाई का सामना किया।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. अनिर्बान गांगुली ने डॉ. मुखर्जी के जीवन की प्रमुख उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए उन्हें “युवा भारत के प्रतीक” के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि डॉ. मुखर्जी 33 वर्ष की आयु में कुलपति बने, 45 वर्ष में केंद्रीय मंत्री और 50 वर्ष में भारतीय जनसंघ की स्थापना की। वे अनुच्छेद 370 के विरोध में अपने ऐतिहासिक वक्तव्य – “एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे” – के लिए भी अमर हैं।

विरासत के सम्मान में विशेष आयोजन

इस स्मरणोत्सव के तहत कई सांस्कृतिक और शैक्षणिक गतिविधियाँ आयोजित की गईं:

  • विशेष प्रदर्शनी का उद्घाटन, जिसमें डॉ. मुखर्जी की दुर्लभ तस्वीरें, अभिलेख, विचारधाराएं और राष्ट्रीय भूमिका को दर्शाया गया।
  • स्मारक डाक टिकट और सिक्के का विमोचन – जो उनकी स्थायी स्मृति और सम्मान का प्रतीक हैं।
  • राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय द्वारा डॉ. मुखर्जी के जीवन पर आधारित एक सशक्त नाट्य प्रस्तुति।
  • सीसीआरटी के 17 युवा कलाकारों द्वारा बांसुरी वादन की भावपूर्ण प्रस्तुति और डॉ. मुखर्जी के जीवन पर आधारित नाट्य अभिनय।

राष्ट्रव्यापी स्मरणोत्सव

यह स्मरणोत्सव केवल दिल्ली तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे देश के हर राज्य और केंद्रशासित प्रदेश में अगले दो वर्षों (6 जुलाई 2025 – 6 जुलाई 2027) तक मनाया जाएगा। इस दौरान राष्ट्र निर्माण, शिक्षा, औद्योगिक विकास और सांस्कृतिक कूटनीति जैसे विषयों पर केंद्रित कार्यक्रमों, संगोष्ठियों, प्रदर्शनियों और जन-जागरूकता अभियानों की एक व्यापक श्रृंखला आयोजित की जाएगी।

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