देश को स्वच्छ और स्वस्थ बनाने के लिए 2 अक्टूबर 2014 को आरंभ किया गया स्वच्छ भारत मिशन आज एक व्यापक और सशक्त जनआंदोलन का रूप ले चुका है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में शौचालय निर्माण से लेकर ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन, प्लास्टिक कचरे के निपटान और जन-जागरूकता कार्यक्रमों तक, यह मिशन जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में क्रांतिकारी भूमिका निभा रहा है।

ग्रामीण भारत में स्वच्छता क्रांति – एसबीएम (ग्रामीण)
स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) [एसबीएम(जी)] के अंतर्गत 2014 से लेकर अब तक 11.90 करोड़ से अधिक व्यक्तिगत घरेलू शौचालय (IHHL) और 2.59 लाख से अधिक सामुदायिक स्वच्छता परिसर (CSC) का निर्माण किया गया है।
उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्यों ने इस मिशन में अग्रणी भूमिका निभाई है। अकेले उत्तर प्रदेश में 2.54 करोड़ से अधिक व्यक्तिगत शौचालय बनाए गए हैं, जबकि बिहार में यह संख्या 1.39 करोड़ से अधिक है।
स्वच्छता को बनाए रखने और ग्रामीण जीवन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने पिछले 11 वर्षों में 1.20 लाख करोड़ रुपये से अधिक की केंद्रीय निधि स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के तहत जारी की है। वर्ष 2017-18 में सबसे अधिक 16,941 करोड़ रुपये जारी किए गए।
शहरी भारत में भी तेज़ी से प्रगति – एसबीएम (शहरी) और एसबीएम-यू 2.0
शहरी भारत को खुले में शौच से मुक्त और कचरा-मुक्त बनाने के उद्देश्य से चलाए जा रहे स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) और उसके दूसरे चरण [SBM-U 2.0] के अंतर्गत अब तक 63.78 लाख घरेलू शौचालय और 6.36 लाख से अधिक सामुदायिक एवं सार्वजनिक शौचालय सीटों का निर्माण किया गया है।
इस प्रयास में महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक प्रमुख योगदानकर्ता हैं। विशेष रूप से महाराष्ट्र में 7.23 लाख से अधिक घरेलू शौचालयों और 1.66 लाख से अधिक सामुदायिक शौचालयों का निर्माण हुआ है।
केंद्र सरकार ने इस योजना के लिए अब तक 18,000 करोड़ रुपये से अधिक की केंद्रीय सहायता राशि जारी की है, जिसमें वर्ष 2017-18 में सर्वाधिक 2,540 करोड़ रुपये जारी किए गए।
स्वच्छता सर्वेक्षण ग्रामीण 2023-24: सुधार की दिशा में सशक्त कदम
पेयजल एवं स्वच्छता विभाग द्वारा कराए गए स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2023-24 में देशभर के 17,304 गाँवों, 85,901 सार्वजनिक स्थानों और 2.6 लाख परिवारों को शामिल किया गया। इस सर्वेक्षण से मिले मुख्य निष्कर्ष इस प्रकार हैं:
- 95.1 प्रतिशत घरों में शौचालय की सुविधा उपलब्ध
- 92.7 प्रतिशत घरों में जैव अपशिष्ट के निपटान की व्यवस्था
- 78.7 प्रतिशत घरों में ग्रेवाटर प्रबंधन की व्यवस्था
- 45 प्रतिशत गांवों में ठोस कचरा संग्रहण हेतु वाहन की उपलब्धता
- 62.1 प्रतिशत गांवों में प्लास्टिक कचरे के निपटान की प्रणाली
- 76.7 प्रतिशत सार्वजनिक स्थलों पर शौचालय की सुविधा
सर्वेक्षण में शामिल 437 एफएसटीपी/एसटीपी में से 83.8 प्रतिशत कार्यशील, 1,029 प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन इकाइयों में से 61.4 प्रतिशत क्रियाशील, और 451 गोबरधन संयंत्रों में से 58.5 प्रतिशत संचालन में पाए गए।
सतत स्वच्छता के लिए तकनीकी नवाचार और वित्तीय सहायता
एसबीएम-ग्रामीण के दूसरे चरण में सरकार ने ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए ग्राम पंचायतों को प्रोत्साहन राशि देने का भी प्रावधान किया है।
- 5,000 की आबादी तक वाले गांवों को प्रति व्यक्ति ₹60
- 5,000 से अधिक की आबादी वाले गांवों को प्रति व्यक्ति ₹45
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन इकाइयों के लिए प्रति ब्लॉक ₹16 लाख तक की सहायता
शहरी मिशन के अंतर्गत सभी पुराने डंपसाइट्स का वैज्ञानिक तरीके से पुनरुद्धार कर हरित क्षेत्रों में परिवर्तित किया जा रहा है। सीपीएचईईओ दिशानिर्देशों के अनुसार, शहरों को अब बायोमीथेनेशन, माइक्रोबियल कम्पोस्टिंग, वर्मी कम्पोस्टिंग, वेस्ट-टू-एनर्जी जैसी तकनीकों के माध्यम से अपशिष्ट प्रबंधन की स्वतंत्रता दी गई है।
नागरिक भागीदारी और स्टार्टअप्स को बढ़ावा
स्वच्छ भारत मिशन में जनभागीदारी को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा IIT कानपुर के स्टार्टअप इनक्यूबेशन सेंटर में एक विशेष केंद्र की स्थापना की गई है। यहां से चुने गए स्टार्टअप्स को एक वर्ष का इनक्यूबेशन सपोर्ट दिया जा रहा है। इससे नवाचार, उद्यमिता और तकनीकी समाधानों को बल मिल रहा है।