जनजातीय अनुसंधान संस्थानों (टीआरआई) को मजबूत करने के बारे में राष्ट्रीय परामर्श

विकसित भारत की कल्पना के अनुरूप 2047 तक जनजातीय अनुसंधान संस्थानों (टीआरआई) को मजबूत करने की अपनी निरंतर प्रतिबद्धता के तहत, जनजातीय कार्य मंत्रालय (एमओटीए) ने “टीआरआई की क्षमता निर्माण और सुदृढ़ीकरण” पर राष्ट्रीय जनजातीय अनुसंधान संस्थान (एनटीआरआई) के सहयोग से 28 से 29 जुलाई 2025 तक एनटीआरआई, नई दिल्ली में दो दिवसीय राष्ट्रीय परामर्श का आयोजन किया।

यह परामर्श आदिवासी अनुसंधान को बढ़ावा देने, प्रशिक्षण एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन, और जनजातीय समुदायों के सामाजिक-आर्थिक विकास में सार्थक योगदान देने में जनजातीय अनुसंधान संस्थानों (टीआरआई) के सामने आने वाली महत्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करने के लिए आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में भारत भर के विशेषज्ञों, नीति निर्माताओं, शिक्षाविदों और व्यवसायियों सहित 50 से अधिक हितधारक शामिल हुए।

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भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय के सचिव, श्री विभु नायर ने विचारों को जमीनी हकीकतों में ढालने के महत्व पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा, “कार्यशालाएँ और परामर्श तभी सार्थक होते हैं जब उन्हें जमीनी स्तर पर लागू करने से जोड़ा जाए। सच्चा नेतृत्व और ज्ञान ज़मीनी स्तर पर उभरती है, प्रशासनिक ढाँचों में नहीं। सच्चा नेतृत्व और सीख ज़मीनी स्तर पर उभरती है, प्रशासनिक कक्षों में नहीं। छोटी-छोटी, सीमित टीमें भी प्रभावशाली बदलाव ला सकती हैं। हमें गाँवों की हकीकत समझने के लिए उनसे सीधे जुड़ना होगा।” उन्होंने सहभागी शासन और ज्ञान साझाकरण को बढ़ावा देने के लिए सामुदायिक स्तर के दृश्य उपकरणों, जैसे चित्रित दीवारें या सार्वजनिक ब्लैकबोर्ड, के उपयोग को भी प्रोत्साहित किया।

क्षमता निर्माण आयोग के मानव संसाधन सदस्य, श्री आर. बालासुब्रमण्यम ने जनजातीय अनुसंधान में आमूल-चूल परिवर्तन का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “हमें ऐसी स्थिति से हटना होगा जहां फैसले प्राधिकार में कुछ लोगों द्वारा लिए जाते हैं और पारस्परिक सम्मान पर आधारित सहभागी अनुसंधान को अपनाना होगा। जनजातीय भाषाओं, ज्ञान प्रणालियों और आकांक्षाओं को बढ़ावा देकर उनकी आवाज़ को राष्ट्रीय आख्यान में शामिल किया जाना चाहिए।” उन्होंने ‘क्षमता निर्माण का एक समरूप मॉडल’ प्रस्तावित किया जो वैज्ञानिक ज्ञान को पारंपरिक ज्ञान से जोड़ता है।

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जनजातीय कार्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव, श्री अनंत प्रकाश पांडे ने 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रमुख पहल, आदि कर्मयोगी अभियान की परिवर्तनकारी कल्पना पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “इस मिशन का उद्देश्य जमीनी स्तर के 20 लाख परिवर्तनकारी नेताओं का एक कैडर तैयार करना है, जिससे 550 से अधिक जिलों के 1 लाख आदिवासी गाँवों में अंतिम छोर तक सेवा संतुष्टि पैदा हो।” उन्होंने टीआरआई को न केवल ज्ञान केन्द्र, बल्कि क्षमता निर्माण में रणनीतिक कर्ता के रूप में स्थापित किया और नागरिक समाज संगठनों, गैर सरकारी संगठनों और जिला प्रशासनों को इस पहल का सह-स्वामित्व और कार्यान्वयन करने के लिए आमंत्रित किया।

जनजातीय कार्य मंत्रालय की निदेशक सुश्री दीपाली मासिरकर ने जनजातीय कार्य मंत्रालय और जनजातीय अनुसंधान संस्थानों (टीआरआई) के बीच मज़बूत संबंधों और तंत्रों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा, “टीआरआई की भूमिका को पुनर्निर्देशित करना और उन्हें पर्याप्त धन से समर्थित आदि कर्मयोगी जैसी महत्वाकांक्षी पहलों के साथ जोड़ना, इन संस्थानों को पुनर्जीवित करने के लिए आवश्यक है।” जिन प्रमुख क्षेत्रों पर चर्चा हुई उनमें धन आवंटन, क्षमता निर्माण और संस्थागत सुधार एवं सुदृढ़ीकरण की रणनीतियाँ शामिल थीं।

प्रख्यात शिक्षाविद् प्रो. वर्जिनियस ज़ाक्सा ने टीआरआई आदेश को पुनर्परिभाषित करने का आह्वान किया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि, “टीआरआई प्रासंगिकता और संसाधनों में गिरावट का सामना कर रहे हैं। उन्हें ऐसे गतिशील संस्थानों के रूप में विकसित होना होगा जो क्षेत्रीय वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करें और न केवल मानवशास्त्र, बल्कि राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और अन्य विषयों से भी जानकारी को जोड़ें।” उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास के जमीनी मुद्दों के साथ अधिक समन्वय का आग्रह किया।

एससीएसटीआरटीआई और ओडिशा राज्य जनजातीय संग्रहालय के पूर्व निदेशक प्रो. अखिल बिहारी ओटा ने इस बात पर जोर दिया कि टीआरआई को अपने आदेशों को प्रभावी ढंग से पूरा करने के लिए संस्थानों में निर्बाध समन्वय और साझा स्वामित्व होना चाहिए। उन्होंने अपने उद्देश्यों के केन्द्रित कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक टीआरआई के भीतर समर्पित परियोजना प्रबंधन इकाइयों (पीएमयू) की स्थापना की भी वकालत की। उन्होंने टीआरआई को पुनर्जीवित करने और उनके प्रभाव को बढ़ाने के लिए मजबूत बुनियादी ढांचे, योग्य मानव संसाधन और जनजातीय कार्य मंत्रालय और राज्य बजट दोनों से समय पर, सुनिश्चित वित्त पोषण सहायता की आवश्यकता पर बल दिया।

एनटीआरआई की विशेष निदेशक, प्रो. नूपुर तिवारी ने इस परामर्श का उद्देश्य आदिवासी विकास संस्थानों (टीआरआई) को पुनर्जीवित करने हेतु कार्यान्वयन योग्य रणनीतियाँ तैयार करना दोहराया। उन्होंने कहा, “ज्ञान-साझाकरण, हितधारक सहयोग और रणनीतिक योजना के माध्यम से, यह परामर्श अभिसरण, दक्षता और संसाधन प्रभावशीलता को बढ़ावा देते हुए आदिवासी विकास पर आदिवासी विकास संस्थानों (टीआरआई) के प्रभाव को अनुकूलित करने का प्रयास करता है।”

परामर्श निम्नलिखित बिंदुओं पर काम करने के संकल्प के साथ संपन्न हुआ,

  • मॉडल टीआरआई विकसित करने के लिए रणनीति और कार्य योजना
  • सर्वोत्तम कार्य प्रणालियों और प्रतिकृति पद्धतियों का संकलन
  • राष्ट्रीय क्षमता निर्माण उपायों का निरुपण
  • जनजातीय अनुसंधान संस्थानों के बीच तालमेल और सहयोग को बढ़ावा देना

यह परामर्श भविष्य के लिए तैयार जनजातीय अनुसंधान संस्थानों के निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो भारत के जनजातीय समुदायों की उभरती जरूरतों को पूरा करने के लिए समर्थ है।

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