राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC), भारत ने नीति आयोग, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से संकला फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का समर्थन किया। इस सम्मेलन का विषय था ‘भारत में वृद्धावस्था: उभरती वास्तविकता, विकसित प्रतिक्रियाएँ’, जो देश की तेजी से बढ़ती वृद्ध जनसंख्या की सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं के समाधान हेतु एक महत्वपूर्ण विमर्श का अवसर बना।

सम्मेलन का उद्देश्य और पृष्ठभूमि
वृद्धावस्था केवल जीवन का अंतिम चरण नहीं है, बल्कि यह अनुभव, ज्ञान और समझ का भंडार भी है। इस सम्मेलन का मूल उद्देश्य था — वृद्धजनों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा करते हुए, उन्हें समाज के लिए एक अमूल्य संसाधन के रूप में देखना और भारत की वृद्ध होती जनसंख्या के लिए एक समावेशी, सम्मानजनक तथा सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करना।
भारत जैसे विकासशील देश में, जहाँ 2050 तक लगभग 35 करोड़ लोग 60 वर्ष से अधिक आयु के होंगे, हर पांचवां नागरिक वरिष्ठ होगा। यह न केवल सामाजिक सरोकारों, बल्कि नीति निर्धारण, स्वास्थ्य सेवा, पेंशन सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य, डिजिटल समावेशन जैसे क्षेत्रों में नई रणनीतियों की माँग करता है।
उद्घाटन सत्र: सांस्कृतिक विरासत से आधुनिक नीतियों तक
सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में NHRC के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री वी. रामसुब्रमण्यन ने भारतीय संस्कृति में वृद्धजनों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए संगम साहित्य और यजुर्वेद जैसे प्राचीन ग्रंथों का उल्लेख किया। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि इन सांस्कृतिक मूल्यों को आधुनिक नीतियों और योजनाओं में स्थान दिया जाना चाहिए।
उन्होंने बताया कि आयोग पहले से ही वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों पर गहन विमर्श कर रहा है — परामर्श सत्र, कोर ग्रुप बैठकें, स्वतः संज्ञान मामले और शोध अध्ययनों के माध्यम से आयोग लगातार सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
नीति निर्माताओं की स्पष्ट सोच
नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य, पोषण एवं शिक्षा) डॉ. विनोद के. पॉल ने वृद्धावस्था में स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक सुरक्षा ढाँचे को मजबूत करने की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि भारत में परिवार प्रणाली ही वृद्धजनों की देखभाल की नींव है, और इसे नीतियों में समर्थन देना आवश्यक है।
NHRC के महासचिव श्री भरत लाल ने कहा कि वृद्धावस्था अब एक नीतिगत प्राथमिकता बन चुकी है। उन्होंने विधवाओं के अधिकारों पर आयोग के हालिया परामर्शों और कोविड-19 काल में वृद्धजनों की सुरक्षा से संबंधित पहलों की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने स्कैंडिनेवियाई देशों और जापान की सामुदायिक वृद्ध देखभाल प्रणाली का उल्लेख करते हुए भारत में भी समुदाय-आधारित समाधान अपनाने की आवश्यकता बताई।

विषयगत सत्र: बहुआयामी दृष्टिकोण
सम्मेलन को चार मुख्य सत्रों में विभाजित किया गया, जिनमें विषय विशेषज्ञों और वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया:
- बुजुर्ग कल्याण को सुदृढ़ बनाना: नीति एवं व्यवहार – अध्यक्षता: श्री अमित यादव, सचिव, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय
- बुजुर्गों का स्वास्थ्य एवं मानसिक कल्याण – वक्ता: श्रीमती प्रीति सूदन, पूर्व सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
- वृद्धि एवं विकास के लिए वृद्धावस्था का लाभ उठाना – वक्ता: श्री अमिताभ कांत, पूर्व जी20 शेरपा
- भविष्य को आकार देना: वृद्ध समाज की तैयारी – वक्ता: डॉ. विनोद के. पॉल, नीति आयोग
इन सत्रों में चर्चा हुई कि कैसे वृद्धावस्था को सक्रिय, उत्पादक और सम्मानजनक बनाया जा सकता है। साथ ही, नीति निर्माताओं, शोधकर्ताओं, और नागरिक समाज के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की रणनीतियाँ भी सुझाई गईं।
प्रमुख वक्ता और विचार
सम्मेलन में कई प्रमुख वक्ताओं ने भाग लिया जिनमें शामिल थे: डॉ. किरण बेदी, श्री अमरजीत सिन्हा, श्री वी. श्रीनिवास, श्री मनोज यादव, महामहिम अंबर लिम सांग वू (कोरियाई दूतावास), श्री विजय नेहरा, सुश्री प्रीति नाथ, डॉ. संजय वाधवा, श्री मैथ्यू चेरियन, श्री टी. वी. शेखर, श्रीमती पवित्रा रेड्डी, श्री जयदीप बिस्वास, श्री आशीष गुप्ता, और श्री युधिष्ठिर गोविंद दास।
इन सभी विशेषज्ञों ने वृद्धजनों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए वैश्विक अनुभवों, नीति सुझावों और व्यावहारिक उदाहरणों को साझा किया।
प्रतिभागी और संस्थागत भागीदारी
सम्मेलन में सरकारी विभागों, शिक्षाविदों, शोध संस्थानों, तकनीकी और स्वास्थ्य सेवा कंपनियों, नागरिक संगठनों, स्टार्टअप्स और वृद्ध देखभाल संस्थानों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। यह सम्मेलन नीति और व्यवहार के मध्य सेतु के रूप में कार्य करता नज़र आया।
सम्मेलन की मुख्य अनुशंसाएँ
- वृद्धावस्था को अवसर में बदलना: स्वास्थ्य, पोषण और तकनीक की सहायता से वृद्धजनों की सक्रिय भूमिका को बढ़ावा देना
- समाज और नीति में वृद्धजनों की भागीदारी: निर्णय निर्माण में वृद्धजनों की आवाज़ को शामिल करना
- सामुदायिक देखभाल को प्राथमिकता: स्थानीय निकायों को सशक्त कर विकेन्द्रीकृत देखभाल प्रणाली का निर्माण
- सांस्कृतिक-सामाजिक समाधान: भारतीय पारिवारिक प्रणाली के भीतर वृद्ध देखभाल को मजबूत करना
- सिल्वर इकोनॉमी को बढ़ावा देना: वित्तीय सुरक्षा, डिजिटल साक्षरता और तकनीकी सशक्तिकरण के ज़रिए वृद्धजनों को अर्थव्यवस्था से जोड़ना
- नवाचार और तकनीक का उपयोग: जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु सहायक उपकरणों और डिजिटल स्वास्थ्य समाधानों को बढ़ावा देना
- अंतर-पीढ़ी संवाद: युवाओं और वृद्धजनों के मध्य संवाद एवं सहयोग की संस्कृति विकसित करना