नई दिल्ली, 5 अगस्त 2025: देश के वरिष्ठ राजनेता और कई राज्यों के राज्यपाल रह चुके सत्यपाल मलिक का आज सुबह निधन हो गया। वह 79 वर्ष के थे। वह लंबे समय से किडनी से संबंधित समस्याओं से जूझ रहे थे और दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उपचाराधीन थे।

सत्यपाल मलिक का राजनीतिक जीवन बहुआयामी रहा है और उन्होंने भारतीय राजनीति में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। उत्तर प्रदेश के बागपत जनपद से आने वाले सत्यपाल मलिक जाट समुदाय के प्रमुख नेताओं में से एक थे। उनका राजनीतिक सफर छात्र राजनीति से शुरू हुआ और उन्होंने 1974 में चौधरी चरण सिंह की भारतीय क्रांति दल से विधायक बनकर राजनीति में अपनी पहचान बनाई।
बहुआयामी राजनीतिक सफर
राजनीतिक रूप से सक्रिय सत्यपाल मलिक ने अपने जीवन में कई राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व किया। वह राज्यसभा सांसद भी रहे और बाद में जनता दल से 1989 में अलीगढ़ से लोकसभा सांसद के रूप में चुने गए। समय के साथ उन्होंने कांग्रेस, लोकदल और समाजवादी पार्टी जैसी विभिन्न पार्टियों की सदस्यता भी ग्रहण की। उनका यह परिवर्तनशील राजनीतिक सफर उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों में पहचान और कार्यक्षेत्र प्रदान करता रहा।
राज्यपाल के रूप में भूमिका
2017 में उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया। इसके बाद उन्हें ओडिशा का अतिरिक्त कार्यभार भी सौंपा गया। अगस्त 2018 में उन्हें जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल नियुक्त किया गया, जो उनके सार्वजनिक जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील चरण माना जाता है। उनके कार्यकाल के दौरान केंद्र सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 और 35A को हटाकर जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा समाप्त कर दिया और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किया गया। इस ऐतिहासिक और विवादास्पद निर्णय के समय राज्यपाल के रूप में उनकी भूमिका को लेकर व्यापक चर्चा हुई।
सत्यपाल मलिक उस समय भी जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे जब फरवरी 2019 में पुलवामा आतंकी हमला हुआ, जिसमें सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हुए। इस हमले के बाद देश में गुस्से और शोक की लहर फैल गई थी। उनके कार्यकाल को लेकर उस समय अनेक आलोचनाएं और समर्थन दोनों सामने आए।
गोवा और मेघालय में राज्यपाल नियुक्ति
जम्मू-कश्मीर के बाद, सत्यपाल मलिक को गोवा का राज्यपाल नियुक्त किया गया और बाद में उन्हें मेघालय भेजा गया, जहाँ उन्होंने 2022 तक राज्यपाल के रूप में सेवा दी। मेघालय में उनके बयान और विचारधाराएं भी अक्सर चर्चा में रहीं। वे केंद्र सरकार की नीतियों को लेकर कई बार मुखर होते रहे, खासकर कृषि कानूनों और किसानों के आंदोलन को लेकर उन्होंने खुलेआम अपनी राय रखी।
स्पष्टवादी विचारधारा और सामाजिक सरोकार
सत्यपाल मलिक अपने स्पष्ट और बेबाक बयानों के लिए जाने जाते थे। वह अक्सर सत्ता के खिलाफ बोलने से भी नहीं हिचकते थे। उनके विचार कभी-कभी विवादों का कारण भी बने, लेकिन उन्होंने हमेशा अपनी बात मजबूती से रखी। किसानों के समर्थन में उनके बयानों को विशेष रूप से याद किया जाता है, जब उन्होंने कहा था कि “अगर किसान नाराज हैं, तो सरकार को आत्मचिंतन करना चाहिए।”
राजनीतिक जीवन की विरासत
सत्यपाल मलिक का राजनीतिक जीवन भारतीय लोकतंत्र की विविधता, उतार-चढ़ाव और विचारधारात्मक संघर्षों का सजीव उदाहरण रहा है। उन्होंने क्षेत्रीय दलों से लेकर राष्ट्रीय दलों तक, और विधायक से लेकर राज्यपाल तक की भूमिका निभाई। सत्ता और विपक्ष दोनों में उन्होंने जनता की सेवा के लिए काम किया।
उनका निधन भारतीय राजनीति के एक युग का अंत है। वह उन गिने-चुने नेताओं में से एक थे जिन्होंने विभिन्न विचारधाराओं में कार्य करते हुए भी अपने जनसरोकार और राष्ट्रहित को प्राथमिकता दी।
शोक और श्रद्धांजलि
देश भर के राजनीतिक, सामाजिक और प्रशासनिक जगत से सत्यपाल मलिक के निधन पर शोक संवेदनाएं व्यक्त की जा रही हैं। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, विभिन्न राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, सांसदों और आम जनता ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।
उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए दिल्ली स्थित उनके आवास पर रखा जाएगा, इसके बाद उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव हिसावदा (बागपत, उत्तर प्रदेश) में किया जाएगा।