भारत के पूर्वी और दक्षिणी हिस्सों में पाए जाने वाले चमकदार काले बिच्छू का डंक अब तक रहस्य बना हुआ था। इसके डंक से होने वाले घातक प्रभावों के कारण यह लंबे समय से चिकित्सा वैज्ञानिकों के लिए चिंता का विषय रहा है। अब विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को एक और बड़ी सफलता मिली है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के अधीन कार्यरत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उन्नत अध्ययन संस्थान (IASST), गुवाहाटी के वैज्ञानिकों ने हेटरोमेट्रस बंगालेंसिस (Heterometrus bengalensis) नामक स्वदेशी काले बिच्छू की विषाक्तता तंत्र को उजागर कर दिया है।

मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर चिंता का विषय
उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बिच्छू के डंक से होने वाली मृत्यु और रोग दर काफी अधिक है। विष के कारण पैदा होने वाले लक्षणों में अंगों की क्षति, सूजन, एलर्जी, और कभी-कभी एनाफिलेक्टिक शॉक तक शामिल हैं। यह स्थिति जीवन के लिए खतरा बन सकती है। इन प्रभावों के बावजूद, काले बिच्छुओं के विष की संरचना और उसकी जैविक भूमिका पर वैज्ञानिक शोध बेहद सीमित रहा है।
IASST द्वारा किया गया विश्लेषण
IASST के निदेशक प्रोफेसर आशीष के. मुखर्जी और शोधार्थी सुस्मिता नाथ के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में पूर्वोत्तर भारत की अल्पज्ञात बिच्छू प्रजाति हेटरोमेट्रस बंगालेंसिस (HB) के विष का जैव-रासायनिक, प्रोटिओमिक और औषधीय विश्लेषण किया गया। यह विश्लेषण अपने आप में इस प्रजाति पर किया गया पहला विस्तृत अध्ययन है।
विष में पाए गए 25 विषैले तत्व
शोधकर्ताओं ने स्पेक्ट्रोमेट्री और जैव-रासायनिक परीक्षणों के माध्यम से बिच्छू के विष में 8 अलग-अलग प्रोटीन परिवारों से संबंधित 25 विषैले रसायनों की पहचान की। ये सभी तत्व मानव शरीर की जैविक प्रक्रियाओं में गंभीर हस्तक्षेप करते हैं, विशेष रूप से प्रतिरक्षा प्रणाली, यकृत एंजाइमों और अंगों की कार्यप्रणाली पर।
प्रयोगशाला परीक्षणों के परिणाम
इस विष के प्रभाव को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में स्विस एल्बिनो चूहों पर परीक्षण किए। जैसे ही HB विष को चूहों के शरीर में इंजेक्ट किया गया, उनके शरीर में प्रणालीगत विषाक्तता (Systemic Toxicity) शुरू हो गई। इस विष ने यकृत एंजाइमों को अत्यधिक सक्रिय कर दिया, जिससे यकृत को नुकसान पहुंचा और अंगों के क्षतिग्रस्त होने की आशंका उत्पन्न हो गई।
शोध में यह भी देखा गया कि यह विष प्रतिरक्षा प्रणाली को अति सक्रिय कर देता है, जिससे शरीर में व्यापक सूजन और एलर्जी जैसी प्रतिक्रियाएं शुरू हो जाती हैं। यह प्रतिक्रिया वास्तविक जीवन में बिच्छू के डंक के बाद शॉक या गंभीर एलर्जी जैसी स्थिति उत्पन्न कर सकती है।
अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित अध्ययन
यह महत्वपूर्ण शोध International Journal of Biological Macromolecules में प्रकाशित हुआ है, जो इस दुर्लभ प्रजाति और उसके विष पर आधारित अब तक का सबसे विस्तृत अध्ययन है। यह न केवल काले बिच्छू के डंक के जैविक प्रभाव को उजागर करता है, बल्कि विष चिकित्सा, एंटी-वेनम अनुसंधान और विष प्रबंधन के लिए भी नई संभावनाओं के द्वार खोलता है।
शोध का भविष्य में महत्व
इस अध्ययन से प्राप्त जानकारी आने वाले समय में एंटीवेनम दवाओं के विकास, विष नियंत्रण और अभियान-आधारित स्वास्थ्य जागरूकता में उपयोगी हो सकती है। साथ ही, यह अध्ययन बिच्छुओं की अन्य प्रजातियों पर वैज्ञानिक शोध को प्रेरित करेगा और उनके जैविक महत्व को उजागर करने में सहायक बनेगा।
निष्कर्ष
IASST, गुवाहाटी के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया यह शोध भारतीय विज्ञान जगत की एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। इससे न केवल काले बिच्छू के डंक की घातकता पर प्रकाश डाला गया है, बल्कि भविष्य में चिकित्सा विज्ञान और विष प्रबंधन के क्षेत्र में नए समाधान तलाशने की संभावना भी प्रबल हुई है। यह शोध समाज और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकता है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ बिच्छुओं का प्रकोप अधिक देखा जाता है।