आधुनिक युद्ध में तकनीकी निपुणता और आत्मनिर्भरता ही सफलता की कुंजी: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह

रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि आधुनिक युद्ध की जटिलताओं और अप्रत्याशितता से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए मौजूदा तकनीक में निपुणता हासिल करना, नए नवाचारों को अपनाना और अप्रत्याशित चुनौतियों के लिए तैयार रहना अनिवार्य है। वे आर्मी वॉर कॉलेज में आयोजित त्रि-सेवा सम्मेलन ‘रण संवाद’ को संबोधित कर रहे थे।

रक्षा मंत्री ने अपने संबोधन में कहा कि युद्ध का स्वरूप अब पारंपरिक सीमाओं से आगे बढ़ चुका है। यह केवल भूमि, समुद्र और वायु तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि अंतरिक्ष और साइबरस्पेस तक विस्तृत हो चुका है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उपग्रह प्रणालियाँ, उपग्रह-रोधी हथियार और अंतरिक्ष कमान केंद्र जैसे साधन अब शक्ति संतुलन के नए आधार बन रहे हैं।

तकनीक और रणनीति का त्रिकोण

श्री सिंह ने कहा कि भविष्य के युद्ध अब केवल हथियारों की लड़ाई नहीं होंगे, बल्कि वे तकनीक, खुफिया जानकारी, अर्थव्यवस्था और कूटनीति के मिश्रण से लड़े जाएंगे। उन्होंने जोर देकर कहा कि सटीक निर्देशित हथियार, वास्तविक समय की खुफिया जानकारी, डेटा-संचालित सूचना और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित निर्णय प्रणाली आने वाले समय में निर्णायक भूमिका निभाएंगे।

“आज की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि जब तक हम एक नवाचार को पूरी तरह समझ पाते हैं, तब तक दूसरा उभर आता है और युद्ध की दिशा बदल देता है। यही अप्रत्याशितता युद्ध के परिणाम पर निर्णायक असर डालती है,” रक्षा मंत्री ने कहा।

ऑपरेशन सिंदूर का उदाहरण

रक्षा मंत्री ने हाल ही में संपन्न ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को तकनीकी और सामरिक दृष्टि से भारत की बड़ी उपलब्धि करार दिया। उन्होंने बताया कि यह अभियान स्वदेशी प्लेटफार्मों, उपकरणों और हथियार प्रणालियों की शक्ति का उदाहरण है। श्री सिंह ने कहा कि इस ऑपरेशन ने न केवल भारतीय सेनाओं की बहादुरी और सामरिक कौशल को प्रदर्शित किया, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि आत्मनिर्भरता भारत की सुरक्षा रणनीति की आधारशिला है।

उन्होंने पाकिस्तान में शरण लिए आतंकवादियों के खिलाफ की गई कार्रवाई का उल्लेख करते हुए कहा कि “यह ऐसा कदम था, जिसकी दुश्मन ने कभी कल्पना भी नहीं की थी।”

आत्मनिर्भर भारत की ओर

रक्षा मंत्री ने बताया कि 2014 में जहाँ भारत का रक्षा उत्पादन 46,425 करोड़ रुपये था, वहीं 2024-25 में यह बढ़कर 1.50 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। रक्षा निर्यात में भी भारत ने रिकॉर्ड 24,000 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार किया है, जबकि दस वर्ष पूर्व यह केवल 1,000 करोड़ रुपये से भी कम था।

उन्होंने कहा कि लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस, एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम, आकाश मिसाइल सिस्टम और स्वदेशी विमानवाहक पोत जैसे प्लेटफार्म भारत की तकनीकी क्षमता और गुणवत्ता का वैश्विक संदेश दे रहे हैं।

आधुनिक युद्धक क्षमताओं का विकास

श्री सिंह ने कहा कि भारतीय नौसेना को उन्नत युद्धक पोतों—आईएनएस हिमगिरि और आईएनएस उदयगिरि—के जरिए और मजबूत बनाया जा रहा है। वहीं वायुसेना को लंबी दूरी की मिसाइलों और नई पीढ़ी के हथियारों से सशक्त किया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि सेना ने 2027 तक सभी जवानों को ड्रोन तकनीक का प्रशिक्षण देने का संकल्प लिया है, जो भविष्य की दिशा में एक बड़ा कदम है।

उन्होंने रुद्र ब्रिगेड, शक्तिबाण रेजिमेंट, दिव्यास्त्र बैटरी, ड्रोन प्लाटून और भैरव बटालियन जैसे नए सैन्य ढांचों की सराहना की और इन्हें बदलते समय के अनुसार आवश्यक बताया।

संपूर्ण राष्ट्र की भूमिका

रक्षा मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय सुरक्षा केवल सेनाओं की जिम्मेदारी नहीं है। उन्होंने कहा, “युद्ध पूरे देश को प्रभावित करता है। इसलिए उद्योग, शिक्षा, मीडिया, तकनीकी संस्थानों और समाज की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। आर्थिक व्यवस्था, औद्योगिक ढांचा और शिक्षा प्रणाली भी अब सुरक्षा के प्रमुख घटक बन गए हैं।”

उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत युद्ध का इच्छुक देश कभी नहीं रहा, लेकिन यदि चुनौती दी गई तो भारत अपनी पूरी शक्ति के साथ उसका जवाब देगा। “हमें किसी की जमीन नहीं चाहिए, लेकिन अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए हम किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं,” श्री सिंह ने कहा।

भविष्य की दिशा

इस अवसर पर रक्षा मंत्री ने बहु-डोमेन परिचालन के लिए संयुक्त मत जारी किया, जो भूमि, समुद्र, वायु, अंतरिक्ष, साइबर और संज्ञानात्मक क्षेत्रों में सशस्त्र बलों के एकीकृत रोजगार का मार्गदर्शन करेगा। इसके अतिरिक्त उन्होंने प्रौद्योगिकी परिप्रेक्ष्य और कैपेबिलिटी रोडमैप भी प्रस्तुत किया, जिसमें अगले 10 वर्षों के लिए भारतीय सशस्त्र बलों की आधुनिकीकरण योजनाओं की रूपरेखा दी गई है।

सम्मेलन में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान, नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी, वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल एपी सिंह, थल सेना उप प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेंद्र सिंह सहित कई पूर्व सेनाध्यक्ष, विदेशी रक्षा अताशे, विद्वान, शिक्षाविद एवं रक्षा उद्योग से जुड़े प्रतिनिधि उपस्थित थे।

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