भारतीय वैज्ञानिकों ने कवक विज्ञान (Mycology) के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। पुणे स्थित एमएसीएस-अगरकर अनुसंधान संस्थान (MACS-ARI) के शोधकर्ताओं ने एस्परगिलस सेक्शन निगरी (जिसे प्रायः ब्लैक एस्परगिलस कहा जाता है) की दो नई प्रजातियों की खोज की है। इन नई प्रजातियों के नाम एस्परगिलस ढाकेफाल्करी (Aspergillus dhakephalakri) और एस्परगिलस पेट्रीसियाविल्टशायरी (Aspergillus patriciaviltschaeuri) रखे गए हैं।
इसके अतिरिक्त, इस अध्ययन ने पश्चिमी घाट से एकत्र मिट्टी के नमूनों में दो अन्य ब्लैक एस्परगिलस प्रजातियों – ए. एक्यूलेटिनस (A. aculeatinus) और ए. ब्रुनेओवियोलेसियस (A. brunneoviolaceus) – का भी पहला भौगोलिक रिकॉर्ड दर्ज किया है।

वैज्ञानिक और पारिस्थितिक महत्व
पश्चिमी घाट को विश्व का एक पारिस्थितिक हॉटस्पॉट माना जाता है। यहां पाई जाने वाली जीवविविधता वैश्विक स्तर पर अद्वितीय है। एस्परगिलस वंश तंतुमय कवकों का एक विविध समूह है, जो चिकित्सीय, औद्योगिक और कृषि क्षेत्र में अत्यधिक उपयोगी माने जाते हैं। विशेषकर ब्लैक एस्परगिलस प्रजातियां साइट्रिक अम्ल उत्पादन, खाद्य कवक विज्ञान, किण्वन प्रौद्योगिकी और कृषि में अहम भूमिका निभाती हैं।
शोधकर्ताओं का मानना है कि इस खोज से यह स्पष्ट होता है कि पश्चिमी घाट जैसे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में अभी भी अद्वितीय और अज्ञात सूक्ष्मजीवों की बड़ी संख्या छिपी हुई है। यह न केवल जैव-विविधता संरक्षण की आवश्यकता को रेखांकित करता है बल्कि वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान के नए द्वार भी खोलता है।

अनुसंधान पद्धति और तकनीकी दृष्टिकोण
यह अध्ययन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किए गए स्वर्ण मानक प्रोटोकॉल (Gold Standard Protocols) के आधार पर किया गया। शोधकर्ताओं ने प्रजातियों के प्रमाणीकरण और वर्गीकरण के लिए बहु-चरणीय (Multi-step) वर्गीकरण दृष्टिकोण अपनाया।
इसमें विभिन्न जीनों का उपयोग किया गया:
- ITS और CAM पहचान के लिए,
- BenA और RPB2 वंशावली (Phylogeny) के लिए।
इनके साथ विस्तृत रूपात्मक लक्षण वर्णन (Morphological Characterization) को भी जोड़ा गया। बहु-जीन आधारित फ़ाइलोजेनेटिक विश्लेषणों ने उच्च सांख्यिकीय समर्थन के साथ नई प्रजातियों की विशिष्टता को स्थापित किया।
नई प्रजातियों की विशेषताएँ
- एस्परगिलस ढाकेफाल्करी
- तेज़ कॉलोनी वृद्धि इसकी प्रमुख पहचान है।
- हल्के से गहरे भूरे रंग के कोनिडिया और पीले-सफेद से पीले-नारंगी रंग के स्क्लेरोटिया बनते हैं।
- इसके कोनिडियोफोर दो से तीन स्तंभों में विभाजित होते हैं।
- इसमें चिकनी दीवारों वाले दीर्घवृत्ताकार कोनिडिया पाए जाते हैं।
- एस्परगिलस पेट्रीसियाविल्टशायरी
- यह भी तेज़ी से बढ़ने वाली प्रजाति है।
- इसमें प्रचुर मात्रा में स्क्लेरोटिया बनते हैं, हालांकि बीजाणु निर्माण अपेक्षाकृत कम है।
- ज़ापेक यीस्ट ऑटोलाइसेट अगर (CYA) और माल्ट एक्सट्रेक्ट अगर (MEA) पर यह पीले-नारंगी स्क्लेरोटिया उत्पन्न करता है।
- इसके कोनिडिया इचिनुलेट (कांटेदार) होते हैं और कोनिडियोफोर पांच से अधिक स्तंभों में शाखाबद्ध होते हैं।
फ़ाइलोजेनेटिक विश्लेषण ने दर्शाया कि ए. ढाकेफाल्करी, ए. सैक्रोलिटिकस की बहन प्रजाति है, जबकि ए. पेट्रीसियाविल्टशायरी का संबंध ए. इंडोलोजेनस, ए. जैपोनिकस और ए. यूवारम से निकटता से जुड़ा हुआ है।
भारतीय टीम की पहली उपलब्धि
पश्चिमी घाटों से एस्परगिलस सेक्शन निगरी की नई प्रजातियों की पिछली खोज विदेशी शोधकर्ताओं द्वारा की गई थी। किंतु यह पहली बार है कि किसी भारतीय शोध दल ने इस खंड की नई प्रजातियों की पहचान की है।
यह कार्य मूल रूप से डॉ. राजेश कुमार के.सी. द्वारा भारत के राष्ट्रीय कवक संवर्धन संग्रह (ARI, पुणे) में एक परियोजना के तहत शुरू किया गया था। आगे इसे MACS-ARI कोर-फंडिंग के समर्थन से जारी रखा गया।
लेखक दल में हरिकृष्णन के., राजेश कुमार के.सी. और रवींद्र एम. पाटिल शामिल रहे। यह अध्ययन भारत में आधुनिक बहु-चरणीय वर्गीकरण पद्धतियों का उपयोग करके किया गया पहला प्रयास है।