हमारे देश में मानसिक समस्याओं का इलाज कराने नहीं ले जाते हैं। परिजनों के मन में सबसे बड़ी हिचकिचाहट यह है कि मरीज को मानसिक चिकित्सक के पास ले जाएंगे तो लोग क्या कहेंगे? इस प्रश्न का उत्तर खोजने की बजाए मरीज का इलाज कराएं क्योंकि इलाज से उसका जीवन आसान हो सकता है। सामाजिक तौर पर हम सामान्य मानसिक समस्याओं पर भी बात करना पसंद नहीं करते हैं। चाहे पीरीयड्स की शुरूआत हो रही तो विपरीत लिंगी के साथ दोस्ती का प्रश्न हो, बच्चे का रात को देर से घर आना हो या होमोसेक्सुअलिटी पर वह बात करना चाहता हो। हमारे यहां इन सभी विषयों पर बात करना वर्जित माना जाता है। यद्यपि समाज में थोड़ा बदलाव आया है लेकिन अब भी मानसिक चिकित्सक की मदद लेना गलत समझा जाता है।
बच्चों को खुल कर बातें करने दीजिए
पैरेंट्स को चाहिए कि वे अपने बच्चों के मन में झांकें और उन्हें अपने दिल की बात कहने का मौका दें। आज दुनिया भर में बच्चों की मानसिक समस्याओं को सबसे पहले सुलझाने का प्रयास किया जाता है। यह एक ऐसा मुद्दा है जिसमें बच्चों के इलाज को प्राथमिकता पर रखा जाता है। पैरेंट्स को बच्चों की रोज की गतिविधियों की जानकारी होना चाहिए। इसके लिए उनसे बातें करें और उनके कहे पर विश्वास करें। उनमें इतना विश्वास जगा दें कि वे झूठ न बोल सकें। यदि आपकी नजर में वे ऐसा कोई गलत काम कर रहे हों जो उन्हें नहीं करना चाहिए और वे उसे स्वीकार कर रहे हों, तो बिना प्रतिक्रिया व्यक्त किए उनकी बात ध्यान से सुन लें। जो काम आपकी नजर में गलत है वह बच्चे की नजर में शायद गलत न हो। बच्चे को प्रेम से सही और गलत की पहचान कराएं। उसका विश्वास जीतें और अपनी बात मनवाते हुए उसे अनुशासन बनाने का सुझाव दें।
बच्चों से संवाद बनाएं
याद रखें कि आपके मुंह फुला लेने से बच्चे की समस्या सुलझने वाली नहीं है। बच्चे से हार्ट टू हार्ट संवाद स्थापित करें। बच्चे को अपने दिल की बात करने का मौका दें। बच्चे से दिन भर की गतिविधियों की जानकारी लें। उसके स्कूल की एक्स्ट्रा कैरिकुलर एक्टिविटीज में भाग लेने के लिए प्रेरित करें।
मशीन नहीं है बच्चा
दिन भर स्कूल में और वहां से आने के बाद प्रायवेट ट्यूशन के लिए बच्चे को भेजकर आप उसे जीनियस बनाना चाहते हैं लेकिन भूल जाते हैं कि वह मशीन नहीं है। उसे भी खेलकूद के लिए समय चाहिए। उसे अपनी मन की बात कहने का मौका दें। खुलकर खेलने दें। उसे अपनी भावनाओं पर काबू पाने का महत्व समझाएं। एक पालक के तौर पर आप प्राथमिकता के तौर पर यह पहचान करें कि बच्चा विभिन्न इमोशंस के साथ किस तरह व्यवहार करता है। बच्चे के तनाव के मुख्य बिंदुओं को पहचानने का प्रयास करें। उनकी छोटी से छोटी भावनाओं को महत्वपूर्ण समझें उन्हें हल्के तौर पर हवा में ना उड़ा दें। अपने आप को उनके स्थान पर रखकर देखें कि बच्चे के मन पर भावनाओं के दबाव का स्तर क्या है।
बच्चे द्वारा दिए जा रहे छिपे संकेतों को पहचानें
जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (पीडियाट्रिक्स) में छपे एक शोध अध्ययन के मुताबिक बच्चे द्वारा प्रदर्शित किए जा रहे चेतावनी संकेतों पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
इन टिप्स पर ध्यान दें
याद रखें कि बच्चे की लाइफस्टाइल और उसकी मेंटल हैल्थ का चोली दामन का साथ है। इसलिए यह पैरेंट्स की जिम्मेदारी है कि बच्चा रोजाना दिन भर में कम से कम एक घंटे का समय सूर्य की रोशनी में खेलते हुए बिताए। इससे बच्चे को न सिर्फ विटामिन डी का डोज मिलेगा बल्कि पूरे शरीर में स्वस्थ खून का संचार होने का अवसर भी मिलेगा।
डाइट पर विशेष ध्यान
बच्चे को सुबह भरपूर ब्रेकफास्ट मिलना चाहिए। इससे उसकी दिन की शुरूआत अच्छी होगी। पौष्टिक आहार मेंटल हैल्थ कंडीशन्स से मुकाबला करने में मददगार साबित होता है। मानसिक स्वास्थ अच्छा रखने के लिए शारीरिक स्वास्थ अच्छा होना जरूरी है।
स्क्रीन टाइम पर रखें नजर
बच्चे को कम से कम समय टेलिविजन देखने अथवा इंटरनेट पर समय बिताने के लिए कहें। पैरेंट्स यह सोचकर अपने बच्चों के हाथ में स्मार्टफोन रख देते हैं कि वह बिजी रहेगा। लेकिन वे नहीं जानते कि बिजी रहने के बहाने बच्चा कितना अधिक समय टैब्लेट अथवा स्मार्ट फोन के साथ बिता रहा है। स्मार्टफोन अथवा टैब्लेट से निकलने वाली ब्लू लाइट के घातक दुष्परिणामों पर कई नेत्ररोग विशेषज्ञों ने चेतावनियां जारी की हैं।
क्या रखें सावधानियां
- पैरेंट्स कभी भी बच्चों के सामने न लड़ें।
- बच्चों को स्कूल में दूसरे बच्चों से बुली न होने दें।
- घर में शराब या अन्य तरह के मादक पदार्थ न रखें।
- आरामतलब जीवन न जीने दें।
- नजर रखें कि घर में कोई नौकर या नौकरानी बच्चे का यौन शोषण तो नहीं कर रहा है।