जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक प्रयासों के बीच भारत ने ब्राज़ील के बेलेम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के 30वें पक्ष सम्मेलन (कॉप-30) के नेताओं के शिखर सम्मेलन में समानता और साझी जिम्मेदारी पर आधारित जलवायु कार्रवाई के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता दोहराई।

कॉप-30, जो 10 से 21 नवम्बर 2025 तक आयोजित हो रहा है, पेरिस समझौते की 10वीं वर्षगांठ के साथ-साथ 1992 के रियो शिखर सम्मेलन की 33 वर्ष पुरानी विरासत का भी स्मरण कर रहा है। इस अवसर पर भारत का राष्ट्रीय वक्तव्य देते हुए ब्राज़ील में भारत के राजदूत श्री दिनेश भाटिया ने कहा कि भारत सदैव जलवायु कार्रवाई को “समानता, राष्ट्रीय परिस्थितियों तथा साझा लेकिन विभेदित उत्तरदायित्वों और संबंधित क्षमताओं (सीबीडीआर-आरसी)” के सिद्धांतों पर आधारित दृष्टिकोण से देखता है।
भारत ने ब्राज़ील द्वारा इस महत्वपूर्ण सम्मेलन की मेजबानी के लिए आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह अवसर न केवल वैश्विक जलवायु प्रतिक्रिया की समीक्षा का है, बल्कि रियो शिखर सम्मेलन की उस ऐतिहासिक विरासत को याद करने का भी है, जिसने अंतर्राष्ट्रीय जलवायु व्यवस्था की नींव रखी और पेरिस समझौते को जन्म दिया।
उष्णकटिबंधीय वनों के संरक्षण में भारत का समर्थन
भारत ने ब्राज़ील की “उष्णकटिबंधीय वनों के लिए सदैव सुविधा” (Tropical Forests Forever Facility – TFFF) पहल का स्वागत किया, जो उष्णकटिबंधीय वनों के संरक्षण हेतु सामूहिक वैश्विक कार्रवाई की दिशा में एक उल्लेखनीय कदम है। भारत ने इस सुविधा में “पर्यवेक्षक” के रूप में शामिल होकर सतत वनों की दिशा में अंतरराष्ट्रीय सहयोग का समर्थन जताया।
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में निम्न-कार्बन विकास पथ पर भारत की उपलब्धियाँ
भारत के वक्तव्य में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अपनाए गए निम्न-कार्बन विकास पथ का उल्लेख करते हुए बताया गया कि वर्ष 2005 से 2020 के बीच भारत ने अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की उत्सर्जन तीव्रता में 36 प्रतिशत की कमी दर्ज की है। यह उपलब्धि दर्शाती है कि भारत विकास और पर्यावरण संरक्षण, दोनों में संतुलन साधने की दिशा में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
भारत ने यह भी बताया कि देश की कुल स्थापित ऊर्जा क्षमता में गैर-जीवाश्म स्रोतों की हिस्सेदारी अब 50 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है, जिससे भारत ने अपना संशोधित राष्ट्रीय रूप से निर्धारित योगदान (एनडीसी) लक्ष्य निर्धारित समय से पाँच वर्ष पहले ही प्राप्त कर लिया है।
नवीकरणीय ऊर्जा और कार्बन सिंक में उल्लेखनीय प्रगति
भारत के राष्ट्रीय वक्तव्य में इस तथ्य पर भी बल दिया गया कि 2005 से 2021 के बीच देश के वन एवं वृक्षावरण में महत्वपूर्ण विस्तार हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 2.29 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य अतिरिक्त कार्बन सिंक का निर्माण हुआ। इसके साथ ही, लगभग 200 गीगावाट की स्थापित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के साथ भारत आज विश्व का तीसरा सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादक देश बन चुका है।
भारत की वैश्विक पहल “अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA)” अब 120 से अधिक देशों को एक मंच पर ला चुकी है। यह पहल किफायती सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के साथ-साथ दक्षिण-दक्षिण सहयोग को भी सशक्त बना रही है, जो विकासशील देशों के बीच सतत ऊर्जा साझेदारी का उत्कृष्ट उदाहरण है।
विकसित देशों की जिम्मेदारी पर भारत का स्पष्ट संदेश
भारत ने अपने वक्तव्य में इस बात पर चिंता व्यक्त की कि पेरिस समझौते के दस वर्ष बीत जाने के बाद भी कई विकसित देशों के एनडीसी लक्ष्यों में पर्याप्त प्रगति नहीं दिख रही है। वक्तव्य में कहा गया कि जहाँ एक ओर विकासशील देश जलवायु कार्रवाई में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर वैश्विक स्तर पर सामूहिक महत्वाकांक्षा अभी भी अपर्याप्त है।
भारत ने यह स्पष्ट किया कि शेष कार्बन बजट तेजी से घट रहा है, ऐसे में विकसित देशों को उत्सर्जन में कटौती के प्रयासों को तीव्र गति से बढ़ाना चाहिए। इसके साथ ही, उन्होंने अपने वादों के अनुसार “पर्याप्त, पूर्वानुमानित और रियायती जलवायु वित्त” उपलब्ध कराने की आवश्यकता पर बल दिया।
न्यायसंगत और पूर्वानुमानित जलवायु वित्त की आवश्यकता
भारत ने कहा कि विकासशील देशों में महत्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों को लागू करने के लिए सस्ती वित्तीय सहायता, तकनीकी सहयोग और क्षमता निर्माण अत्यंत आवश्यक है। वक्तव्य में यह भी कहा गया कि न्यायसंगत, पूर्वानुमानित और रियायती जलवायु वित्त वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने की आधारशिला है।
भारत ने सीबीडीआर-आरसी के सिद्धांतों के अनुरूप, अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों के आधार पर, अन्य देशों के साथ सहयोग करते हुए न्यायसंगत, समावेशी और टिकाऊ समाधानों के कार्यान्वयन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
बहुपक्षवाद और साझा जिम्मेदारी पर भारत का आह्वान
भारत ने बहुपक्षवाद के प्रति अपनी दृढ़ प्रतिबद्धता की पुष्टि करते हुए कहा कि पेरिस समझौते की संरचना को संरक्षित और सशक्त बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। भारत ने सभी देशों से यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया कि आने वाला दशक केवल लक्ष्यों और घोषणाओं तक सीमित न रहकर, “कार्यान्वयन, लचीलापन, और पारस्परिक विश्वास एवं निष्पक्षता” पर आधारित साझा जिम्मेदारी का दशक बने।