सुलक्षणा पंडित: सुरीली आवाज़ और बेहद खूबसूरती की बेमिसाल अभिनेत्री

सुलक्षणा पंडित का जन्म 12 जुलाई 1954 को छत्तीसगढ़ के रायगढ़ शहर के रामगुड़ी पारा स्थित अशर्फी देवी महिला चिकित्सालय में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा छत्तीसगढ़ के रायगढ़ स्थित शासकीय बालिका विद्यालय में हुई थी। उनके पिता पंडित प्रताप नारायण पंडित राजा चक्रधर सिंह के दरबार के प्रसिद्ध तबला वादक थे। उनका परिवार शुरू से ही संगीत की परंपरा से जुड़ा रहा है। उनके चाचा पंडित जसराज, भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान गायक थे, और भाई जतिन-ललित मशहूर संगीतकार हैं।

बचपन से ही सुलक्षणा पंडित को संगीत का माहौल मिला और महज 9 साल की उम्र में उन्होंने गाना शुरू कर दिया था। उन्होंने फिल्म ‘उलझन’ (1975) से बॉलीवुड में अभिनेत्री के रूप में पदार्पण किया था, इसके अलावा उन्होंने कई मशहूर फिल्मों में अभिनय और पार्श्व गायन दोनों किया ।वर्ष 1976 में फिल्म ‘संकल्प’ के गीत ‘तू ही सागर तू ही किनारा’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार स्वयं मिला। उनके आखिरी प्रमुख प्लेबैक गीत 1996 की फिल्म ‘खामोशी: द म्यूजिकल’ के लिए था।    

उनका फिल्मी सफर आसान नहीं था,चूँकि फिल्म इंडस्ट्री में महिलाओं के लिए चुनौतियाँ अधिक थीं; मगर सुलक्षणा जी ने अपनी प्रतिभा और संघर्ष से आसमान छू लिया। उनका परिवार संगीत से गहराई से जुड़ा हुआ था-उनके पिता प्रताप नारायण पंडित रायगढ़ के राजा चक्रधर सिंह के दरबार के प्रतिष्ठित दरबारी कलाकार थे। उनके चाचा प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पंडित जसराज थे, जिन्होंने भारतीय संगीत को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।वैसे भी परिवार में संगीत की गहरी परंपरा रही है-तीन भाई (जतिन पंडित, ललित पंडित, मंधीर पंडित) स्वरकार, तीन बहनें (माया एडरसन, संध्या सिंह, विजेयता पंडित) भी कला एवं संगीत से जुड़ी हैं। शुरुआती शिक्षा रायगढ़ में ही हुई और बचपन से ही सुलक्षणा जी को घर में रियाज, हारमोनियम, सुर आदि का माहौल मिला। उन्होंने मात्र 9 साल की उम्र में संगीत सीखना प्रारंभ किया और मंच पर प्रस्तुति भी दी। 

बचपन से ही उनका परिवार रायगढ़ और बिलासपुर के समीप नरियरा गांव में संगीत साधना से जुड़े रहा।आगे पंडित जसराज के मार्गदर्शन पर पूरा परिवार मुंबई चला गया, जहाँ से सुलक्षणा के गायन और अभिनय का सफर शुरू हुआ। इस तरह सुलक्षणा पंडित का जन्म, परिवार और प्रारंभिक शिक्षा पूरी तरह संगीत और संस्कृति से जुड़ी रही, और छत्तीसगढ़ की धरोहर का भाग बनी।

हिंदी सिनेमा के इतिहास में तीन ऐसे बेहतरीन चेहरों वाली अभिनेत्रियाँ रही हैं जिनके चेहरों पर उदासी के भाव भी लोगों को बेचैन कर देते,उनके उदास चेहरे देख दर्शक भी बैचेनी महसूस करने लगते कि ये  हंस क्यों नहीं रहीं? सुलक्षणा जी के अलौकिक मुस्कराते हंसते चेहरे ही को देखकर ही गुलज़ार साब ने फिल्म घर के गीत में लिख दिया था “लब हिले तो मोगरे के फूल खिलते हैं कहीं…”।सुरैया, मधुबाला और सुलक्षणा पंडित इन तीनों के हँसते चेहरों ने सिनेमा के परदे के माध्यम से करोडो सिने- दर्शकों को पीढ़ी दर पीढ़ी सम्मोहित किया है।

एक नायिका और गायिका जैसा रुतबा सुरैया ने अपने दौर में कमाया वह अर्जित करने की पात्रता सुलक्षणा पंडित के पास भी थी।उनके पास एक शानदार स्क्रीन प्रेजेंस थी, गायन के लिए एक सधी और पूर्ण विकसित मधुर आवाज़ थी और अपनी पहली फिल्म – उलझन (1975) से उन्होंने यह भी दर्शाया कि वे अभिनय में भी बेहतर कर सकती हैं।

सुलक्षणा पंडित हमेशा ऐसा नाम रहीं जिनके बारे में यही भाव जागते हैं कि वे एक ऐसी संभावना थी जिनकी पूरी प्रतिभा गायन और अभिनय में पूरी तरह खिल नहीं पायी। प्रतिभा की कली पूरा विकसित फूल नहीं बन पायी।जिसके लिए सब कुछ छोड़ा, उसी ने मेरे दिल को तोड़ा… माना तेरी नजर में… सोमवार को हम मिले… जब आती होगी याद मेरी…

सुलक्षणा पंडित का निजी जीवन भी उतना ही भावनाओं से भरा रहा। कहा जाता है कि वे अभिनेता संजीव कुमार से एकतरफा प्रेम करती थीं, और उनके विवाह प्रस्ताव ठुकराए जाने के बाद सुलक्षणा जी ने पूरे जीवन अविवाहित रहने का फैसला लिया था। यह नियति की योजना ही रही होगी कि सुलक्षणा पंडित के इस दुनिया से जाने का दिन भी वही था जिस दिन यानी 6 नवंबर को संजीव कुमार ने इस दुनिया से अलविदा कहा था। क्या ही अजब संजोग है कि इस दुनिया में दोनों के आने का महीना भी एक ही यानी जुलाई था। दोनों के जीवन में साथ तो नहीं निभा पाया लेकिन दोनों की पुण्यतिथियां सदा एक ही दिन एक साथ मनाए जाएंगे और एक के साथ दूसरे का स्मरण उन्हें यादों में हमेशा साथ रहेगा और मिलता रहेगा।

अपनी समकालीन अभिनेत्रियों से अधिक खूबसरत सुलक्षणा पंडित का देहांत एक युग के खत्म होने के समान है जिसने छत्तीसगढ़ की माटी की सोंधी खुशबुओं से पूरी दुनिया को महका दिया ।जीवन के अंतिम वर्षों में वे अपने परिवार के साथ रहीं; मगर स्वास्थ्य खराब होने के कारण वे फिल्मों से दूर हो गई थीं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री एवं प्रदेश के प्रमुख व्यक्तियों ने सुलक्षणा के योगदान का गहरी श्रद्धांजलि एवं सम्मान किया। उन्होंने छत्तीसगढ़ की संस्कृति, संगीत और अस्मिता का देश-विदेश में प्रचार-प्रसार किया और राज्य का गौरव बढ़ाया।इनके पिछले दिनों के दौर में कुछ परेशानियां भी रहीं – जैसे-आर्थिक परेशानियाँ, स्वास्थ्य के झटके, मीडिया से दूरी, इन सब पहलुओं ने उनकी “एक्टिव स्टार” की भूमिका को कम-से-कम पर्दे पर पीछे ले लिया, लेकिन इससे उनकी कला-महिमा कम नहीं हुई बल्कि उनके संघर्ष ने हमें यह याद दिलाया कि चमक-के-पीछे कितनी कठोर मेहनत, अकेलापन, संघर्ष हो सकता है।

बहुत-कम लोग जानते होंगे कि सुलक्षणा पंडित ने केवल अभिनय नहीं किया उन्होंने तो बाल-कलाकार-गायिका के रूप में ही अपना करियर शुरू कर दिया था। परन्तु आने वाले वर्षों में उन्होंने उस समय की बड़ी अभिनेत्रियों-गायिकाओं के बीच अपनी जगह बनाई।उनके आगे का सफर आसान नहीं था। संगीत-परिवार में होने के बावजूद फिल्म-संगीत-बॉलीवुड की प्रतिस्पर्धा, बदलाव, और चुनौतियाँ सब थीं। “जब पिता का मिला नहीं साथ, तब सुलक्षणा को परिवार की आर्थिक ज़िम्मेदारी उठानी पड़ी।”यही सच बयां करता है कि उन्होंने केवल गाने-और-फिल्में नहीं कीं, बल्कि जिम्मेदार-हिस्से-के रूप में जीवन की चुनौतियों से भी जूझा।

लेकिन जीवन-यात्रा हमेशा उतार-चढ़ाव से रहित नहीं होती। सुलक्षणा पंडित के जीवन में भी कुछ ऐसे मोड़ आए जहाँ उनकी चमक कुछ समय के लिए छाँव में चली गई। उन्होंने हिंदी फिल्मों में सिर्फ एक अभिनेत्री या गायिका नहीं बनी – उन्होंने एक “मध्य-भारत-की-मिट्टी से उपजी” प्रतिभा को देश-सोशल मंच तक पहुँचाया।

उनका संगीत-कार्यक्षेत्र, उनकी अभिनय-यात्रा और उनका जीवन-संकट-सब मिलकर देश देते हैं: “कला-की-उँचाई आसान नहीं,लेकिन भूमिका निर्धारण, धैर्य-और-लगन से संभव है।”छत्तीसगढ़ के कलाकारों-विरासत-परंपरा के लिए वह प्रेरणा-चिन्ह बनीं, जिन्होंने दिखाया कि जन्म-स्थान-का बंधन भी एक-बड़ा-बल हो सकता है।

सुलक्षणा जी, आपकी सुमधुर आवाज़, आपकी मौन-कदमी, आपका संघर्ष-और-आपकी विनम्रता हमें सदैव याद रहेगी। आपने चुपचाप उस पैमाने पर कदम रखा जहाँ संगीत-और-अभिनय का मिलन-दृश्य बन-कर हमारे दिलों में उतर गया।उनका जीवन छत्तीसगढ़ी मिट्टी की सादगी, भाव-प्रगाढ़ता और कला-संवेदना की अनुपम मिसाल था।सुलक्षणा पंडित छत्तीसगढ़ की पहली महिला रहीं, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में बतौर गायिका व अभिनेत्री दोनों क्षेत्रों में पहचान व शिखर सफलता प्राप्त की। इन्होंने बालीवुड में कई हिट गीत दिए और फिल्मफेयर समेत कई सम्मान प्राप्त किए। सुलक्षणा पंडित की सबसे यादगार फिल्मी गायकी में “तू ही सागर है तू ही किनारा” गीत प्रमुख है, जो साल 1976 में फिल्म “संकोच” का था। इस गीत में उनकी आवाज़ की मधुरता और भावनात्मक गहराई ने श्रोताओं का दिल जीत लिया था और यह गीत आज भी लोकप्रिय है। 

इसके अलावा, उन्होंने बचपन में लता मंगेशकर के साथ फिल्म “तकदीर” (1967) के लिए “सात समंदर पार से” गाया था, जो उनकी सबसे शुरुआती और यादगार प्रस्तुतियों में से एक है। इसके अलावा “मेरे नैना सावन भादो,” “का करूं सजनी,” और “मौसम प्यार का” जैसे गीत भी उनकी उल्लेखनीय फिल्मी गायकी में शामिल हैं, जिनके संगीत में जतिन-ललित और गीतों में आनंद बक्षी जैसे महान कलाकारों का योगदान था।सुलक्षणा पंडित का संपूर्ण जीवन छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत, सपनों और संघर्षों की अभिव्यक्ति है। उनका व्यक्तित्व, आवाज़ और कार्य भारतीय सिनेमा एवं छत्तीसगढ़ी परंपरा में सदैव अमर रहेगा। असीम प्रतिभावान महान गायिका नायिका‌ छत्तीसगढ़ की बेटी को भावप्रवण अलविदा… 

सुलक्षणा सुरीली, खूबसूरती की कल्पना रही,
सियासत से संगीत का संगम रही,
 छत्तीसगढ़ की शान थी जो अमर हुई, 
सदा गूंजेगी उनकी कला की गूँज यहीं।।

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
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