नई दिल्ली में आयोजित ‘चाणक्य रक्षा संवाद 2025’ ने एक बार फिर भारत को क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा विमर्श के केंद्र में स्थापित किया है। इस कार्यक्रम में रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज भारत न केवल एशिया, बल्कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में संतुलन और जिम्मेदारी की आवाज के रूप में उभर रहा है। हिंद-प्रशांत और ग्लोबल साउथ के देशों से लेकर विश्व मंच पर प्रमुख शक्तियाँ भारत को एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में देख रही हैं। यह भरोसा भारत की आर्थिक प्रगति, तकनीकी क्षमता, और विदेश नीति में दृढ़ एवं संतुलित दृष्टिकोण की देन है।

रक्षा मंत्री ने स्पष्ट किया कि भारत के सभ्यतागत मूल्य, रणनीतिक स्वायत्तता, और आत्मविश्वासपूर्ण दृष्टिकोण आज अंतरराष्ट्रीय विमर्श को आकार दे रहे हैं। राष्ट्रों की संप्रभुता के सम्मान और नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था के प्रति भारत की प्रतिबद्धता ने विश्व स्तर पर भरोसे का माहौल बनाया है।
सुरक्षा चुनौतियाँ: सतर्कता और स्पष्ट उद्देश्यों की आवश्यकता
राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में वर्तमान सुरक्षा वातावरण की चुनौतियों का उल्लेख किया। इनमें सीमा-पार आतंकवाद, चरमपंथ, डिजिटल सूचना युद्ध, समुद्री दबाव, और भू-आर्थिक प्रतिस्पर्धा शामिल हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे वातावरण में सुधार अब विकल्प नहीं, बल्कि रणनीतिक आवश्यकता बन चुके हैं। भारत इन चुनौतियों का उत्तर सशक्त संस्थागत सुधारों, सैन्य आधुनिकीकरण और आत्मनिर्भर सुरक्षा ढांचे के निर्माण द्वारा दे रहा है।
आधुनिक, सशक्त और रणनीतिक सेनाएँ: भारत की शक्ति संरचना
रक्षा मंत्री ने बताया कि सरकार सैन्य अधोसंरचना को उन्नत बनाने पर जोर दे रही है। सीमा क्षेत्रों में रणनीतिक सड़कों, सुरंगों और अग्रिम ठिकानों के निर्माण से लेकर समुद्री सुरक्षा के लिए नौसेना की क्षमता बढ़ाने तक, सरकार व्यापक सुधार लागू कर रही है। सैन्य प्लेटफॉर्म, निगरानी प्रणालियों, और डिजिटल संचार नेटवर्क के उन्नयन जैसे कदम सेनाओं को आधुनिक युद्ध आवश्यकताओं के अनुरूप ढाल रहे हैं।
खरीद प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और गति सुनिश्चित करना, अनुसंधान एवं विकास पर बल देना, और घरेलू रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देना आत्मनिर्भरता की रीढ़ बन रहे हैं। रक्षा मंत्री ने कहा कि एक मजबूत रक्षा औद्योगिक आधार न केवल बाहरी निर्भरता कम करता है, बल्कि नवाचार और तकनीकी उत्कृष्टता का मार्ग भी खोलता है।
सैनिकों और परिवारों को प्राथमिकता: नीतिगत संवेदनशीलता का उदाहरण
अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि सैनिकों, पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों के कल्याण को सरकार अपने निर्णयों के केंद्र में रखती है। यह भावात्मक प्रतिबद्धता सैनिक मनोबल और परिचालन क्षमता दोनों को मजबूत करती है।
दृढ़ता और सामर्थ्य: भारत की रणनीतिक मानसिकता
राजनाथ सिंह ने कहा कि दृढ़ता, शक्ति जितनी ही महत्त्वपूर्ण है। एक सशक्त राष्ट्र परिस्थितियों का सामना करता है, अनुकूलन करता है, और आगे बढ़ता रहता है। भारत के सशस्त्र बल केवल सीमाओं के रक्षक नहीं, बल्कि आपदा प्रतिक्रिया, वैश्विक शांति अभियानों, समुद्री सुरक्षा, और अंतरराष्ट्रीय सैन्य सहयोग के संवाहक भी हैं। यही कारण है कि सेना का आधुनिकीकरण केवल प्रशासनिक कार्य नहीं है, बल्कि यह भारत के दीर्घकालिक भविष्य में एक दूरदर्शी निवेश है।
डिजिटल रक्षा और हरित ऊर्जा: अगली पीढ़ी के सैन्य आयाम
चाणक्य रक्षा संवाद के दौरान भारत ने कई तकनीकी और हरित पहलें शुरू कीं, जो सेना को भविष्य के अनुकूल और स्थायी क्षमता प्रदान करेंगी।
इनमें प्रमुख हैं:
- ईकेएएम: सेवा के रूप में एआई (सैन्य शब्दावली और डेटा के अनुरूप एआई मॉडल)
- प्रक्षेपण: भूस्खलन, बाढ़ और हिमस्खलन पूर्वानुमान के लिए सैन्य मौसम विज्ञान प्लेटफॉर्म
- सैन्य नेताओं के लिए एआई हैंडबुक
- डिजिटलीकरण 3.0: पारंपरिक सेना से टेक-सक्षम सेना की ओर परिवर्तन
- चुशुल में ग्रीन हाइड्रोजन माइक्रोग्रिड परियोजना: 1500 टन वार्षिक कार्बन उत्सर्जन की कमी का लक्ष्य
यह बताता है कि भारतीय सेना केवल आयुधों से नहीं, बल्कि डेटा, एआई और स्वच्छ ऊर्जा से भी सम्पन्न हो रही है।
भारत की उभरती वैश्विक भूमिका: पड़ोसी क्षेत्रों से लेकर बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था तक
रक्षा मंत्री ने कहा कि जैसे-जैसे भारत सुरक्षित और विकसित भविष्य की ओर अग्रसर होता है, दुनिया भी लाभान्वित होती है।
- एक स्थिर भारत वैश्विक आर्थिक स्थिरता को समर्थन देता है
- भारत का डिजिटल सामान्य अवसंरचना मॉडल आर्थिक समावेशन का उदाहरण बन गया है
- उभरती तकनीकों (एआई, साइबर, अंतरिक्ष) के प्रति भारत का नैतिक दृष्टिकोण नियम-आधारित मानक स्थापित करता है
- जलवायु और शांति के प्रति हमारी प्रतिबद्धता वैश्विक सहयोग को नैतिक आधार देती है
चाणक्य रक्षा संवाद: रणनीतिक चिंतन का दायरा
सीएलएडब्ल्यूएस के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम ने सैन्य रणनीतिकारों, वैश्विक रक्षा विशेषज्ञों, राजनयिकों, शिक्षाविदों और उद्योग जगत के प्रतिनिधियों को एक साथ लाया। इस मंच पर तेजी से बदलते अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा परिदृश्य में भारत की भूमिका और भविष्य की रणनीति पर गहन विमर्श हुआ।