एड्स अब भी विश्वभर में एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बना हुआ है और इसके संक्रमण को लेकर समाज में कई भ्रांतियां विद्यमान हैं। चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि जानकारी के अभाव और गलत धारणाओं के कारण इसके प्रति भय तथा मानसिक दुविधा अनावश्यक रूप से बढ़ रही है।

विश्व में एचआईवी संक्रमण का पहला मामला वर्ष 1981 में अमेरिका में रिपोर्ट किया गया था, जबकि भारत में यह संक्रमण वर्ष 1986 में पहली बार चेन्नई में पाया गया। वर्तमान में देश में एक लाख से अधिक एचआईवी संक्रमित व्यक्तियों का पता चल चुका है। चिकित्सा विज्ञान की प्रगति के बावजूद एचआईवी संक्रमण का अभी तक पूर्ण उपचार उपलब्ध नहीं है, इसलिए रोकथाम और जागरूकता ही सबसे प्रभावी उपाय माने जाते हैं।
एचआईवी संक्रमण मुख्यतः असुरक्षित यौन संबंध, संक्रमित रक्त चढ़ाने, दूषित इंजेक्शन या एचआईवी संक्रमित मां से शिशु में स्थानांतरित होता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि गर्भावस्था, प्रसव या स्तनपान की स्थिति में संक्रमण का खतरा मौजूद रहता है। कुछ मामलों में एचआईवी संक्रमित महिलाएं सामान्य परिस्थितियों में स्वस्थ शिशु को जन्म देती हैं, हालांकि लंबे समय से संक्रमण से प्रभावित महिलाओं में बच्चों तक संक्रमण पहुंचने का प्रतिशत अधिक पाया गया है।
चिकित्सा संस्थानों में एचआईवी संक्रमित गर्भवती महिलाओं के प्रसव के दौरान विशेषज्ञ टीमें विशेष सावधानियों के साथ देखरेख का कार्य करती हैं। प्रसव प्रक्रिया के दौरान स्टेरिलाइज्ड उपकरणों का उपयोग, सुरक्षा दस्तानों का प्रयोग और नियंत्रित चिकित्सा वातावरण सुनिश्चित किया जाता है। शिशु के जन्म के उपरांत स्तनपान के सवाल पर विशेषज्ञों की सलाह यह है कि चिकित्सकीय परामर्श के साथ स्तनपान कराना लाभकारी होता है, विशेष रूप से जब मां एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी पर हो।
विशेषज्ञ बताते हैं कि एचआईवी साथ बैठने, हाथ मिलाने, गले लगाने, कपड़ों के साझा उपयोग, चुंबन, मच्छर के काटने या स्विमिंग पूल में स्नान करने से नहीं फैलता है। एचआईवी के फैलने से संबंधित ऐसी भ्रांतियां समाज में अनावश्यक भय उत्पन्न करती हैं और संक्रमित लोगों के प्रति भेदभाव को बढ़ावा देती हैं।
भारत में एचआईवी संक्रमण के सर्वाधिक मामले महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मणिपुर में पाए जाते हैं। आंकड़े बताते हैं कि पुरुषों की संख्या संक्रमित महिलाओं की तुलना में लगभग तीन गुना है। हाल के वर्षों में ग्रामीण क्षेत्रों में भी संक्रमण दर बढ़ने के संकेत मिले हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का सुझाव है कि संक्रमण से बचाव के लिए सुरक्षित यौन व्यवहार अपनाना, निरोध का नियमित उपयोग करना, किसी भी प्रकार के इंजेक्शन के लिए डिस्पोजेबल सुई का प्रयोग करना और रक्त चढ़ाने से पूर्व उसकी एचआईवी जांच सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है। संक्रमित महिलाओं के लिए आवश्यक है कि वे गर्भधारण से पूर्व चिकित्सकीय परामर्श अवश्य लें।
संक्रमण के संकेतों में बुखार, वजन घटाना, खांसी, दस्त, मुंह में घाव, त्वचा पर लाल चकत्ते, थकान और कमजोरी शामिल हो सकते हैं, लेकिन इन लक्षणों से ही संक्रमण का अनुमान लगाना उचित नहीं है। विशेषज्ञ कहते हैं कि एचआईवी संक्रमण की पुष्टि केवल रक्त जांच द्वारा ही संभव है।
सरकारी अस्पतालों में नाको द्वारा संचालित आईसीटीसी केंद्रों पर एचआईवी की जांच नि:शुल्क उपलब्ध है और परामर्श की सुविधा भी प्रदान की जाती है। एचआईवी पॉजिटिव पाए जाने पर व्यक्तियों को आगे के उपचार के लिए एआरटी केंद्रों में संदर्भित किया जाता है। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि संक्रमित व्यक्तियों की पहचान पूर्णतया गोपनीय रखी जाती है।
चिकित्सा विशेषज्ञों का आग्रह है कि एचआईवी और एड्स से संबंधित विश्वास योग्य जानकारी समाज तक पहुंचे, ताकि संक्रमण की रोकथाम के साथ-साथ संक्रमित व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति और सहयोग का दृष्टिकोण भी विकसित हो सके।
-यह लेख सिर्फ जानकारी के लिए है डॉक्टर से सलाह अवश्य ले-
