हिरासत में इमरान-जैसी करनी वैसी भरनी

इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने के एक साल बाद भी राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है।

ललित गर्ग
ललित गर्ग

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की गिरफ्तारी ने पाकिस्तान में लोकतंत्र होने के कई भ्रम भले ही तोड़े हैं, लेकिन यह पूर्व संभावित घटना है। वहां के सियासतदानों ने सुशासन एवं लोकतांत्रिक मूल्यों की मजबूती की दृष्टि से हमेशा निराश ही किया है। वहां के शीर्ष नेतृत्व ने मूल्यहीन सोच से शासन किया और वह एक परम्परा सी हो गयी है। आतंकियों की हिमायत, शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार और बदले की राजनीतिक भावना ने पाकिस्तान को ऐसी अंधी खोह में धकेल दिया है, जहां से निकलना उसके लिए बेहद कठिन है। इमरान खान ही नहीं, वहां प्रधानमंत्रियों व राष्ट्रपतियों की एक लंबी फेहरिश्त है, जिन्हें अदालतों ने भ्रष्टाचार व बदनीयती के मामलों में सजाएं सुनाई हैं। इमरान के समर्थक भले ही अपने नेता की गिरफ्तारी को बदले की भावना से की गई कार्रवाई बता रहे हैं और उनके विरोध प्रदर्शन भी शुरू हो गए हैं। पाकिस्तान में कोहराम के जो हालात बने हैं, वे हालात जैसी करनी वैसी भरनी की भावना की निष्पत्ति है। पाकिस्तान एवं उनके नेता एक के बाद एक बुरे कुकर्म करते हुए सोचते रहे हैं कि इसका फल तो हमें नहीं भोगना होगा, यह उनकी गलतफहमी है। बुरे कर्म का फल कभी भी अच्छा नहीं होता।

इमरान को हिरासत में लेने की घटना अप्रत्याशित नहीं है, क्योंकि इसकी आशंका तो वह खुद लंबे समय से जताते आ रहे थे, मगर गिरफ्तारी के वक्त उनके साथ जिस तरह का सुलूक हुआ, वह भी अदालत-परिसर में, वह लोकतंत्र होने का दावा करने वाले किसी मुल्क के लिए शर्मनाक बात है। एक तरफ पाकिस्तान आर्थिक बदहाली से जूझ रहा है तो दूसरी तरफ राजनीतिक संकट और गहराता जा रहा है। इमरान खान को सत्ता से बेदखल करने के एक साल बाद भी राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है। इमरान ने अपनी सरकार को गिराए जाने को हमेशा से एक साजिश करार दिया है और कभी भी इस फैसले को स्वीकार नहीं किया था। इमरान खान जल्दी चुनाव की मांग कर रहे हैं, लेकिन सत्ताधारी गठबंधन जल्द चुनाव के लिए किसी हालत में तैयार नहीं है। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि सरकार ने इमरान को गिरफ्तार करने का फैसला क्यों किया और इसके बाद पाकिस्तान के हालात किस तरह बेहतर हो पायेंगे? इमरान की गिरफ्तारी का नतीजा क्या होगा यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। फिर भी पाक हुक्मरानों को यह समझना ही चाहिए कि बबूल का पेड़ बोने वालोें को आम का स्वाद सपने में भी नसीब नहीं हो सकता। वर्तमान पाकिस्तानी नेतृत्व का यह निर्णय निश्चित ही उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता का परिचायक है। 

इमरान ने ही पाकिस्तान के हालात बदतर किये हैं, वे भ्रष्टाचार के नये दलदल में धंसे, भले ही वे एक दौर में अपने मुल्क के सबसे बड़े खेल के ‘आइकन’ रहे हो और भले ही उन्होंने दुनिया भर में प्रतिष्ठा अर्जित की हो। इमरान वहां अदालती प्रक्रिया का सम्मान करने ही गए थे। बहरहाल, पाकिस्तानी रेंजर्स ने उन्हें जिस अल-कादिर ट्रस्ट मामले में हिरासत में लिया है, उसकी वैधानिकता पर इस्लामाबाद हाईकोर्ट को फैसला करना है, पर आरोप है कि एक यूनिवर्सिटी खोलने के लिए गठित इस ट्रस्ट को गलत तरीके से भूमि दी गई और इमरान खान ने इसकी खातिर अपने पद का दुरुपयोग किया। अल-कादिर ट्रस्ट के दो ही ट्रस्टी हैं- खुद इमरान और उनकी बीवी! पूर्व प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के और भी कई आरोप हैं और वह 80 से भी अधिक मुकदमों का सामना कर रहे है। इसलिये इमरान की गिरफ्तारी पर शायद ही किसी को अचरज हो। सत्ता पाने के लिए सेना का सहारा लेने और बाद में इसी सेना के जरिए सत्ता से बेदखली के उदाहरण पाकिस्तान में नए नहीं हैं।

साथ ही यह कोई पहली बार भी नहीं कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर रहे किसी नेता की सत्ता से बेदखली के बाद गिरफ्तारी की नौबत आई हो। पाकिस्तान का सियासी इतिहास देखें तो कमोबेश सभी शासन प्रमुखों का कार्यकाल किसी न किसी विवाद से जुड़ा रहा है। जुल्फिकार अली भुट्टो से लेकर यूसुफ रजा गिलानी, बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ तक प्रधानमंत्री की कुर्सी से हटने के बाद जेल यात्रा कर चुके हैं। यह कैसी राजनीतिक व्यवस्था है? यह कैसा लोकतंत्र है? इतना स्पष्ट है कि पाकिस्तानी हुक्मरान सेना की कठपुतली मात्र ही बने हुए हैं। आर्थिक तंगी, बेरोजगारी, महंगाई का सामना कर रहे पाकिस्तान में लोकतंत्र का तो महज मुखौटा ही होता है। वह भी इसलिए ताकि इसी लोकतंत्र की दुहाई देकर वह विश्व समुदाय से तमाम तरह की आर्थिक व सैन्य मदद हासिल करता रहे। दुनिया इसे बखूबी जानती है कि आतंककारियों को आश्रय देने व आतंक का पोषण करने में पाकिस्तान सबसे आगे रहा है। यह सब भी सत्ता को अपने इशारे पर नचाने वाली सेना की सहमति के बिना संभव नहीं है। इसीलिए जब भी कोई नेता सेना के खिलाफ होता है तो उसका जेल जाना तय हो जाता है। इमरान खान, पाकिस्तान की सेना और वहां की खुफिया एजेंसी पर जिस तरह से सवाल उठा रहे थे तब से ही सेना के लिए आंख की किरकिरी बने हुए थे। पिछले दिनों ही इमरान खान ने आरोप लगाया था कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ के एक अधिकारी उनकी हत्या कराने की कोशिश कर रहे हैं। इसके बाद पाकिस्तानी सेना की ओर से भी इमरान को फटकार लगाई गई थी। 

                        सत्ता से बेदखल होने के बाद भी इमरान ने कानूनी व राजनीतिक लड़ाई को अराजक भीड़ की बदौलत जीतने का दुस्साहस किया। मगर उनकी राह अब आसान नहीं है। इमरान के खिलाफ इतने सारे मुकदमे हैं कि सत्तारूढ़ गठजोड़ उन्हें शायद ही कोई मोहलत दें। लेकिन इन सबका खामियाजा पाकिस्तानी जनता को भुगतना पड़ रहा है। एक ऐसे दौर में, जब आम पाकिस्तानी गरीबी, चरम महंगाई से कराह रहा है, वहां का सियासी निजाम उनके लिए राहत जुटाने के बजाय उनका ध्यान बंटाने वाला राजनीतिक प्रहसन रचने में जुटा है। एक और बड़ी विडम्बना तो पाकिस्तान की हमेशा से यही रही है कि अन्दरूनी संकटों का समाधान करने की बजाय वह हमेशा कश्मीर का राग अलापती रही है। आम लोगों के संकटों एवं अभावों को दूर करने की बजाय उसका ध्यान कश्मीर पर ही लगा रहता है। आज उसकी दुर्दशा का कारण भी यही है। इमरान का भी कश्मीर राग अलापना भी उनकी विवशता थी। कश्मीर का राग भले ही वहां की सरकारों की विवशता हो, ऐसा न करना पाकिस्तान का गद्दार करार दिया जाता हो, लेकिन इससे पाकिस्तान के न केवल राजनीतिक बल्कि जनजीवन के हालात भी संकटपूर्ण होते गये हैं।

                        पाकिस्तान अनेक संकटों से घिरा है। वैसे भी पाकिस्तान में अगले साल आम चुनाव होने हैं। शाहबाज को सत्ता भले मिल गई हो और इमरान को गिरफ्तार करना उनकी राजनीतिक अपेक्षा हो। पर उनके सामने भी वही बड़ी मुश्किलें और चुनौतियां हैं जो पाकिस्तान में हर प्रधानमंत्री को विरासत में मिलती रही हैं, बल्कि इस बार वे ज्यादा उग्र है। महंगाई से मुल्क बेहाल है। अर्थव्यवस्था बेदम है। भ्रष्टाचार चरम पर है। दुनिया भर में पाकिस्तान को सहयोग के नाम पर सन्नाटा पसरा है। यह नहीं भूलना चाहिए कि शाहबाज भी उन्हीं नवाज शरीफ के भाई हैं जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं और पनामा पेपर्स मामले उन्हें सत्ता से बेदखल होना पड़ा था। इसके अलावा देश पर लगा आतंकवाद के गढ़ होने का ठप्पा भी अलग तरह के संकट खड़े किए हुए है। साफ है, इमरान ही नहीं, शाहबाज की राह में भी कांटे ही कांटे हैं। इन कांटों के बीच यदि उन्होंने इमरान को गिरफ्तार किया है तो पाकिस्तान के संकट गहरे ही होने वाले हैं। इसलिये पाकिस्तान में राजनीतिक स्थिरता और शांति कैसे कायम हो, फिलहाल यही सरकार, सेना और सुप्रीम कोर्ट का मुख्य एजेंडा होना चाहिए। गिरफ्तार की मानसिकता से ज्यादा जरूरी है अपनी अवाम के प्रति उत्तरदायित्व निभाने की ताकि देश के करोड़ों लोगों के प्रति एक विश्वास और संरक्षण की भावना बढ़ सके। o ललित गर्ग o 

आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Translate »