पॉलिथीन प्रकृति और पृथ्वी की जानी दुश्मन

-28 जुलाई वैश्विक प्रकृति संरक्षण दिवस पर विशेष-

आज सब्जी दुकान वाला भी आपको सब्जी पॉलीथीन के थैली में देता है। किराने का समान लेने जाइए वह पॉलीथीन पर ही सामान देगा। हॉटल में मेडिकल स्टोर में जाइए हर जगह सिर्फ प्लास्टिक एवं पॉलीथीन की पैकिंग ही दिखाई देंगी। और तो और अब वर्तन और फर्नीचर आदि भी इन्हीं से निर्मित होने लगे हैं। हालत यह है कि प्लास्टिक का प्रचलन इतना ज्यादा बढ़ चुका है कि अब यह सारी सीमाओं को पार कर चुकी है।

हमारे लिए चारो ओर सिर्फ प्लास्टिक से निर्मित वस्तुओं का ही संग्रह नजर आ रहा है यहं भविष्य के पर्यावरण के लिए बहुत घातक सिद्ध हो सकता है। इसकी चेतावनी पर्यावरण विदों ने पहले ही दे दी थी, परंतु फिर भी आज लोग इसके प्रति जागरुक नहीं हो रहे हैं। प्लास्टिक (पॉलीथीन) प्रत्यक्षतः हमारे समान्य उपयोग के लिए अत्यंत आवश्यक जॉन पड़ते है लेकिन आने वाले दीर्घकाल के लिए हम सुप्त बमों का इस्तेमाल कर रहे है।

यह बात हम सभी को जानना बहुत जरूरी है। हम करते यह है कि कुछ भी सामान लेकर आते है, चाहे वह तेल, घी या दूध, दही जैसे तरल वस्तुएं हो या आलू प्याज या डिब्बा बंद सामान हो वह दरअसल प्लास्टिक से निर्मित पॉलीथीन या डिब्बे होते हैं जिन्हें हम यदाकदा कचरे के ढेर में या नालियों में फेंक देते हैं। और हम सोचते हैं कि ये उपयोग किए जा चुके पॉलीथीन या प्लास्टिक के डिब्बे सड़ गलकर समाप्त हो जाएंगे। लेकिन नहीं यह कभी भी सड़कर समाप्त नही होते है।

यह जमीन में पड़े पड़े भले ही परत दर परत दबते चले जाएंगे लेकिन कभी भी सड़कर समाप्त नहीं होते यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि घातक एवं खतरनाक है यह तो फिर भी ठीक था, पर यह भूमि पर दबे दबे ही रासायनिक क्रियाओं द्वारा घातक गैसों एवं तत्वों का निर्माण कर भूमि एवं पर्यावरण को चुपचाप महाविशान की ओर धकेल रहा है। और हम इस दोस्त रुपी दुश्मन को नहीं पहचान पा रहे है। जिसे दवा समझ रहे हैं वह दवा न होकर जहर है। दुनिया को निंगल लेने वाला एक महाबम है जिससे हमें सबको बचना होगा।

आज इस आधुनिक युग में जबकि अनेक देशों के पास हजारों की तादाद में परमाणु बम मौजूद है। दुनिया को कई – कई बार खत्म करने की वैनाशिक शक्ति अपने अंदर छुपाए हुए है। वह भी प्लास्टिक, बम से कम ही खतरनाक माना जायेगा क्योंकि ये बम जब तक नहीं चाहेगा विनाश नहीं कर सकते (अपवाद स्वरूप कुछ परिस्थितियों को छोड़कर) लेकिन ये प्लास्टिक तो अनवरत प्रदूषण में सक्रिय है।

और  राक्षसी सुरसा के मुंह की तरह बढ़ते चले जा रहे हैं ,और पृथ्वी के जीवन को उसी रफ्तार से छोटा करते जा रहे हैं।परमाणु बम का अविष्कार करने वाले महान वैज्ञानिक सर अलबर्ट आइंस्टीन ने किसी भावुक क्षणों में कहा था कि मैंने दुनिया का विकास करते परमाणु बम का अविष्कार करके विनाश की नींव रख दी। सर आइंस्टीन  वर्ल्ड के उन प्रमुख वैज्ञानिकों में से है जिन्होंने अपने अविष्कार से दुनिया को बहुत कुछ दिया है, उन्होंने परमाणु बम अविष्कार हालांकि विकास एवं सकारात्मक विचार के तहत. किया था, लेकिन उसके विध्वंसक प्रकृति को देखकर उनका मन अपने ही अविष्कार से खिन्न हो गया था।

धन्य है। ऐसा वैज्ञानिक जो अपनी बिना किसी भूल पर भी अपने को दोषी मानता है। पर क्या आप बता सकते हैं कि ज्यादा खतरा प्लास्टिक से है या परमाणु बम से….? इसका जवाब है प्लास्टिक से !पूरी दुनिया खासकर तीसरी दुनिया के देशों के पर्यावरण को  इससे ज्यादा खतरा है क्योंकि यहीं इसका ज्यादा प्रचलन है। प्लास्टिक तो कभी पृथ्वी पर पाया ही नहीं जाता था। इसका तो अविष्कार  खुद मनुष्य ने किया है। यह भी एक मजेदार वाकयात है कि  प्लास्टिक का अविष्कार कोई जानबूझकर नहीं किया गया बल्कि यह धोके सेअविष्कृत हो गया था।

हुआ यह कि एक  वैज्ञानिक महोदय अपनी प्रयोगशाला में व्यस्त थे ,तभी उन्होंने अपने अनुसंधान में देखा कि कुछ और ही वस्तु का निर्माण हो गया है। फिर उन्होंने उस वस्तु का मुआयना किया तो उन्हें वह वस्तु बड़े काम की लगी बस उन्होंने फिर इसका तत्काल ही विस्तृत जानकारी इकट्ठी कर लिया और प्लास्टिक जैसी वस्तु का अविष्कार कर लिया। प्लास्टिक के कचरों को हम जमीन में गड़ा दे, तो वह सड़ता ही नहीं है। यदि उसे जला कर नष्ट करने की साँचे तो वह भी बहुत घातक होता है क्योंकि प्लास्टिक को जलाने पर उससे जो पदार्थ निकलते हैं. उन्हें वैज्ञानिक सबसे ज्यादा घातक मानते हैं।

वहीं अगर प्लास्टिक का पुनः प्रसंस्करण भी किया जाता है तो सबसे पहले तो यह जानना आवश्यक है कि पुनः प्रसंस्करण एक या दो बार से ज्यादा नहीं कर सकते वहीं प्लास्टिक पुनः प्रसंस्करण की प्रक्रिया में विषाक्त प्रभाव पैदा करते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा कर रहे हैं। आज भारत में अकेले ही जितना कूड़ा निकल रहा है, उसका लगभग चालीस प्रतिशत प्लास्टिक युक्त ‌कूड़ा होता है। पता नहीं पूरी दुनिया में प्रतिदिन कितने करोड़ टन प्लास्टिक का कचरा निकल कर दुनिया के विनाश का बीज बो रहा है।

अमेरिका आदि पश्चिमी देश तो अब इसके प्रति बहुत सचेत हो गए हैं, अव तो वहां अनेक देशों में प्लास्टिक के प्रयोग पर प्रतिबंध लग चुका है। पर ये देश अपने यहां के प्लास्टिक के कचरों को ( जो करोड़ों टन की मात्रा में मौजूद हैं) कौड़ियों के मोल तीसरी दुनिया में भेज कर अपना सर दर्द कम कर रहे हैं। ऐसे कूड़े का आयात करने वालों में हमारा भारत देश भी है। हमारे देश को भी तत्काल ऐसे कूड़े का आयात बंद करना होगा।

हालांकि हमारी सरकार भी समय रहते इसके दूरगामी परिणामों से सचेत हो गई है। तभी तो आज पर्यटन व रेलवे के सरकारी अमलों द्वारा प्लास्टिक के प्रयोग पर प्रतिबंध लागू कर दिया गया है। यह एक अच्छा कदम है। लेकिन अभी इस दिशा में और बहुत से कदम उठाए जाने आवश्यक है। प्लास्टिक से पर्यावरण को अगर बचाना है तो सबसे प्रथम कार्य होगा हम- आप -सभी को इसके प्रति जागरूक होना होगा। हमें पॉलीथिन के प्रयोग के घातक परिणामों को जानते हुए बहुत सजग रहना होगा।

सबसे पहले इनका प्रयोग बंद करना होगा। वही दूसरों को पॉलीथीन के खतरनाक परिणामों को बताना भी होगा। उद्योगों एवं व्यवसायियों को भी प्लास्टिक का प्रयोग अपने उत्पादन व विक्रय के लिए कम करना होगा। वस्तुतः हमने प्रदूषण की भयानकता और पर्यावरण के महत्व को भली- भांति समझा नहीं है।

इसलिए पोलीथीन के प्रदूषण से पर्यावरण को बचाने के लिए पहली जरुरत जन चेतना की है। नए उद्योगों को प्लास्टिक का उपयोग नहीं करेंगे इस शपथ के साथ शुरु करने की अनुमति देनी चाहिए। वहीं उन्हें प्रदूषण निवारण के लिए समुचित प्रबंध भी करने होंगे। कानूनी तौर पर प्रदूषण फैलाने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही और दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए।

अगर पॉलीथीन प्रदूषण की रोकथाम शीघ्र न की गई तो आने वाली पीढ़ी पर इसके प्रभावों को देखकर मुंह में ऊंगली दबाने की अपेक्षा और कुछ शेष नहीं रह जाएगा। समाज व देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य हो जाता है कि वह सरकार द्वारा इस क्षेत्र में चलाए जा रहे जन जागरण अभियान हो या सफाई अभियान पर गंभीरतापूर्वक विचार कर निर्देशों का पालन करें! अन्यथा जीवन अभिशाप बन कर रह जाएगा। 

बरसों पहले देखा था,

एक अक्स हरा भरा सा

अब जहन में नहीं है,

पर नाम था भला सा…..!!

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”

Loading

Translate »