किशोरावस्था में लड़कियों को हो सकती है यह परेशानियाँ

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किशोरावस्था सच में बहुत ही मजेदार अवस्था होती है, क्योंकि इस उम्र में देर से घर आने, दोस्तों के साथ मौज मस्ती करने, कुछ अटपटे अनुभव करने, सभी तरह की फिल्में देखने आदि जैसे कई कार्य करने की आजादी मिल जाती है। लेकिन, जिस तरह हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, किशोरावस्था भी अपने साथ कुछ अच्छी तो कुछ बुरी चीजें लेकर आती है। ढेर सारी मौज-मस्ती के साथ-साथ इस दौर में स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याएँ भी पैदा होती हैं। लड़कियाँ जैसे-जैसे बढ़ती हैं उनमें विषाद और आहार संबंधी गड़बड़ी से लेकर हॉर्मोन में बदलाव और मोटापा तक अनेक प्रकार की समस्याओं की आशंका बढ़ जाती है। किशोरी लड़कियों के शरीर को प्रभावित करने वाली कुछ आम स्वास्थ्य समस्याएँ इस प्रकार हैं-

  • पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस): पीसीओएस यानी बहुगाँठीय अंडाशय लक्षण किशोरी लड़कियों को प्रभावित करने वाली सबसे आम स्वास्थ्य समस्या है। हॉर्मोन के असंतुलन से उत्पन्न इस समस्या के कारण ऋतुस्राव में अनियमितता, अवांछित बाल उगना और मुहाँसों की समस्या हो जाती है। पीसीओएस की शुरुआत लड़की के तेरहवें-चौदहवें वर्ष से होती है और यह हल्का या गंभीर हो सकता है। पीसीओएस का उपचार नहीं कराने से बाँझपन, अत्यधिक बाल उगना, मुहाँसे, मोटापा, डायबिटीज, हृदयरोग, उच्च रक्तचाप, गर्भाशय से असामान्य रक्तस्राव और कभी-कभी कैंसर तक हो सकते हैं। हालाँकि पीसीओएस के लिए कोई खास निर्धारित चिकित्सा नहीं है, तथापि इसका इलाज संभव है।
  • स्वभावगत समस्याएँ:
    • मनोदशा में परिवर्तन:- असुरक्षा की भावना…. चिड़चिड़ापन…. विद्रोही प्रवृत्ति? आप बिल्कुल सही सोच रही हैं, यह आपके अनियंत्रित हॉर्मोनों या किशोरी होने के दबाव का दोष है। इस अवस्था में मनोदशा में परिवर्तन हॉर्मोनों के कारण हो सकता है। पुरुषों के विपरीत लड़कियों के ऋतुचक्र के साथ उनके ओएस्ट्रोजेन और प्रॉजेस्टेरोन (मुख्यतः अंडाशय में उत्पन्न होने वाले स्टेरॉइड हॉर्मोन्स) के स्तर में उतार-चढ़ाव होता है जिसे ऋतुस्राव-पूर्व लक्षण कहा जाता है।
    • विषाद:- किशोरी होना सचमुच काफी मुश्किल होता है। पाया गया है कि कुछ किशोरियों में लगातार उदासी का कारण भी विषाद ही होता है। तथापि विषाद केवल मनोदशा की खराबी या यदा-कदा होने वाली उदासी भर नहीं है। यह एक गंभीर समस्या है जिससे किशोरी के जीवन का हर पहलू प्रभावित होता है। यह किसी किशोरी लड़की के व्यक्तित्व संबंधी भावनाओं को नष्ट कर सकता है। इसके कारण उस पर उदासी, निराशा या क्रोध हावी हो जाता है। तेरह-चौदह वर्ष से 19-20 वर्ष की आयु के बीच विषाद की बारंबारता बढ़ने लगती है। इसके पीछे आनुवांशिक स्वभाव से लेकर व्यक्तिगत संबंधों में तनाव और मुश्किलें जैसे कुछ भी कारण हो सकते हैं।
  • ऋतुस्राव की अनियमितता: किशोरी लड़कियों में अनियमित ऋतुस्राव चक्र होना आम बात है और इसके लिए हॉर्मोन की अंतर्निहित गड़बड़ी जिम्मेवार होती है। 12 वर्ष की औसत आयु में ऋतुस्राव आरंभ होता है। सामान्य ऋतुस्राव चक्र लगभग 28 दिनों का होता है। पहली बार ऋतुस्राव होने के बाद लगभग दो वर्षों तक लड़कियों को नियमित ऋतुस्राव चक्र हो जाना चाहिए। यदि किशोरावस्था के बाद की अवधि में भी यह अनियमित रहता है, तो लड़कियों को इस बात की जाँच करानी चाहिए कि कहीं वे पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम (पीसीओएस) से तो पीड़ित नहीं हैं।
  • मुहाँसे: मुहाँसे या फुंसियाँ किशोरी लड़कियांे की सबसे भयानक समस्याओं में से एक है। वे चेहरे, गर्दन, पीठ, छाती और कंधों पर कहीं भी उभर सकते हैं। यह त्वचा में सीबम क्लॉग (त्वग्वसा अर्गल) नामक पदार्थ से रोमछिद्र बंद हो जाने के कारण होता है। हालाँकि मुहाँसों से स्वास्थ्य का कोई गंभीर खतरा नहीं होता, तथापि गंभीर मुहाँसों से त्वचा पर स्थायी दाग हो सकते हैं।
  • अत्यधिक बाल उगना: लड़कियांे के चेहरे या शरीर पर अत्यधिक बाल उगने को हर्स्युटिज्म कहते हैं। बालों का इस तरह उगना हॉर्मोनों के असंतुलन के कारण होता है, जिसमें लड़कियों के शरीर में ऐंड्रोजेन नामक पुरुष हॉर्मोन की मात्रा बढ़ जाती है। इस अवस्था में सामान्य पुरुष की तरह ठुड्ढी, ऊपरी होंठ, गाल, स्तन, पेट और जाँघों पर बाल उग आते हैं। इस तरह घने और काले बाल की असामान्य वृद्धि लड़कियों के लिए भारी दुख का कारण बन जाती है।
  • रक्ताल्पता (खून की कमी): रक्ताल्पता किशोरी लड़कियों की सबसे आम समस्या है, जो शारीरिक वृद्धि के दौरान शरीर के लिए आवश्यक लौह पोषण की कमी के कारण होती है। तरुणाई (प्युबर्टी) की अवस्था में आने के बाद रक्त के नुकसान से लौह तत्व की क्षति होती है। इसलिए, लौह की कमी के कारण थकावट, हँफनी और मूर्छा जैसी स्थिति से बचने के लिए विविध खाद्य पदार्थों के माध्यम से पर्याप्त मात्रा में लौह तत्व का सेवन अवश्य करना चाहिए। लौह तत्व की कमी से आपको थकावट, मूर्छा या श्वासहीनता का अनुभव हो सकता है। किशोरावस्था में रक्ताल्पता के कारण पढ़ाई में ध्यान लगाने में भी कठिनाई हो सकती है।
  • असामान्य योनिस्राव: योनि की भीतरी परत की छोटी-छोटी गं्रथियों और गर्भाशयग्रीवा से होने वाला स्राव योनिस्राव कहलाता है। हर स्त्री में तरुराई से रजोनिवृत्ति तक ऐसा थोड़ा-बहुत स्राव होता है। सामान्य योनि द्रव पतले और लसलसे या गाढ़े और चिपचिपे एवं निर्मल, सफेद या घूमिल सफेद होते हैं। लेकिन योनिस्राव अगर गंध, रंग या स्वरूप में अलग तरह का हो और इसके अलावा योनि में खुजलाहट, जलन, सूजन या लाली हो तो यह असामान्य हो जाता है जिससे योनि में संक्रमण हो सकता है।
  • पीड़ादायक ऋतुस्राव: किशोरी लड़कियों में ऋतुस्राव के समय पीड़ा होना बिल्कुल आम बात है। दूसरे रूप में ये पेड़ू के दर्द होते हैं। तथापि, जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है ऋतुस्राव की पीड़ा कम होती जाती है। पीड़ा कम करने के लिए सूजन-रोधी दर्दनिवारक दवा ली जा सकती है। पीड़ादायक ऋतुस्राव को चिकित्सीय भाषा में ‘डिस्मेनरिआ’ (कष्टार्तव) कहा जाता है।
विनीता झा

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