जैविक और अजैविक प्रॉक्सी रिकॉर्ड पर आधारित नव विकसित आधुनिक एनालॉग डेटासेट सीजीपी में पुरा पारिस्थितिक अध्ययन के लिए सटीक संदर्भ उपकरण हो सकता है

वैज्ञानिकों ने मध्य गंगा मैदान (सेन्ट्रल गंगा प्लेन्स-सीजीपी) में नदी की दो धाराओं के मध्यवर्ती अंतर्प्रवाह क्षेत्रों (इंटरफ्लूव्स) में आने वाली झीलों के किनारे, नदी के तल, वन तल, और कृषि भूमियों (क्रॉपलैंड्स) जैसे विभिन्न निक्षेपण (डिपोजीशनल) सेटिंग्स से प्राप्त जैविक (बायोटिक) और अजैविक (एबायोटिक) नमूनों के विश्लेषण अभिलेखों (प्रॉक्सी रिकार्ड्स) के आधार पर एक ऐसा आधुनिक एनालॉग डेटासेट विकसित किया है जो इस क्षेत्र के  पुरा पारिस्थितिक (पैलियो इकोलॉजिकल) के अध्ययनों के लिए एक सटीक संदर्भ उपकरण होगा।

जैविक
चित्र 1. घाघरा-गंडक और गंगा-घाघरा मध्यवर्ती अंतर्प्रवाह (इंटरफ्लूव्स) में अध्ययन क्षेत्रों को प्रदर्शित करने वाला मानचित्र

मध्य गंगा का मैदानी क्षेत्र घनी जनसंख्या वाले भारत के लिए एक खाद्य टोकरी के रूप में कार्य करता है और हाल के दशकों में जलवायु (मॉनसून) परिवर्तनशीलता के संदर्भ में महत्वपूर्ण उथल-पुथल से गुजर रहा है। भविष्य के परिदृश्य के आकलन के लिए एक ऐसे कठोर जलवायु मॉडल की आवश्यकता होती है, जो कि इस इको-सिस्टम  के अच्छी तरह से दिनांकित पुरा-पुनर्निर्माण (वैल डेटेड पेलियो–रिकंस्ट्रक्शन्स) से उभरे प्रमुख डेटा इनपुट का उपयोग करके बनाए गए हैं।

मध्य गंगा के मैदान (सीपीजी) से बड़ी संख्या में ऐसे अभिलेख उपलब्ध हैं जिनमें पुरा-पर्यावरण पुनर्निर्माण (पैलियो इकोलॉजिकल रिकंस्ट्रक्शन्स) पर सीमित जानकारी है। वहीं उपयुक्त स्थानिक पैमाने पर अलग-अलग पारिस्थितिकी और निक्षेपण वातावरण में अंतर करने के लिए आधुनिक प्रतिनिधि नमूने (मॉडर्न प्रॉक्सीज)  सीमित हैं लिए  सीजीपी में पिछले पर्यावरण के बारे में जानकारी को उजागर (डिकोड) करने के लिए ऐसे प्रॉक्सीज का निर्माण महत्वपूर्ण है।

इसके अलावा, घाघरा-गंडक और गंगा-घाघरा के मध्यवर्ती अंतर्प्रवाह (इंटरफ्लूव) क्षेत्र ऐसे क्षेत्र हैं जहां परवर्ती चतुर्थ महाकल्प (लेट क्वाटरनरी) के दौरान कई मीटर-मोटी तलछट एकत्र हो चुकी है। मध्यवर्ती अंतरप्रवाही (इंटरफ्लूव)  क्षेत्रों में नदी सम्बन्धी (फ़्लूवियल), सरोवर/झील सम्बन्धी (लेकास्ट्रिन), वन (फॉरेस्ट्स) और कृषिभूमि (क्रॉपलैंड्स)  जैसे अलग-अलग जमाव वाले वातावरण शामिल हैं इसलिए वे पिछले पर्यावरण और आधुनिक एनालॉग अध्ययनों के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन क्षेत्रों की मिट्टी/तलछट के नमूनों को परागकणों, सूक्ष्म शैवालों एवं पादपाश्मों (पॉलेन, डायटम्स, फाइटोलिथ) जैसे जैविक (बायोटिक) और तलछट बनावट, स्थिर कार्बन और नाइट्रोजन समस्थानिक,  एक्सआरडी/एक्सआरएफ, और चुंबकीय संवेदनशीलता (सेडीमेंट टेक्सचर, स्टेबल  कार्बन एंड नाइट्रोजन आइसोटोप्स, एक्सआरडी/एक्सआरएफ एलिमेंट्स एंड मैग्नेटिक सक्सेपटीबिलिटी) जैसे अजैविक (एबायोटिक) मानकों के साथ पूरक के रूप में रखा जा सकता है।

चित्र 2: घाघरा-गंडक और गंगा-घाघरा मध्यवर्ती अंतर्प्रवाह (इंटरफ्लूव्स) से पराग आवृत्ति वर्णक्रम (पॉलेन फ्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रा)

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के एक स्वायत्त संस्थान, बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (बीएसआईपी) ने मध्य गंगा मैदान (सीजीपी) के घाघरा- गंडक और गंगा- घाघरा के मध्यवर्ती अंतर्प्रवाह क्षेत्र (इंटरफ्लूव्स) के जैविक और अजैविक प्रॉक्सी रिकॉर्ड की क्षमता और कमजोरियों का मूल्यांकन कियाI

संस्थान के शोधकर्ताओं ने पहली बार दो इंटरफ्लूव्स से मल्टीप्रॉक्सी आधुनिक एनालॉग्स विकसित करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया, जो मध्य गंगा के मैदान और उसके आसपास के क्षेत्रों के पुरा पारिस्थितिक (पैलियो इकोलॉजिकल) अध्ययन के लिए एक सटीक संदर्भ उपकरण होगा। कैटेना पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन ने इन नमूनों की शक्ति और कमियों दोनों का मूल्यांकन किया और यह आकलन किया कि कैसे ये मल्टीप्रॉक्सी आधुनिक एनालॉग इस क्षेत्र में मजबूती से विभिन्न पारिस्थितिक और निक्षेपण वातावरणों की पहचान कर सकते हैं और किस प्रकार से परवर्ती चतुर्थ महाकल्प क्वाटरनरी (लेट क्वार्टरनरी) के पुरा- पर्यावरण और पारिस्थितिक परिवर्तनों की अधिक सटीक व्याख्या करने में आधार रेखा (बेसलाइन) के रूप में इनका प्रयोग किया जा सकता है।

जैविक और अजैविक अंतः क्रियाओं (इंटरएक्शन्स) का अध्ययन महत्वपूर्ण है क्योंकि इनसे इस क्षेत्र में वन समुदाय, खाद्य फसलों, कृषि-कार्य करने वालों के साथ मानव बस्तियों के निर्माण में सहायता मिलती है। परिणामस्वरूप  पुरा-पारिस्थितिक (पैलियो इकोलॉजिकल) डेटा अतीत के साथ ही मध्य गंगा के मैदान में भविष्य के स्थायी अनुमानों को भी बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगा।

चित्र 3: मध्य गंगा मैदान (सीजीपी) के दो इंटरफ्लूव क्षेत्रों के विभिन्न निक्षेपण सेटिंग्स से एकत्र किए गए पादपाष्मी प्रारूपों (फाइटोलिथ मॉर्फ्स) और सतह के नमूनों के अंतर्संबंधों को दर्शाने वाला पीसीए ऑर्डिनेशन प्लॉट। हरे रंग का वृत्त गंगा-घाघरा अंतर्प्रवाह क्षेत्र से एकत्र किए गए नमूनों का प्रतिनिधित्व करता है और पीला वृत्त घाघरा-गंडक अंतर्प्रवाह क्षेत्र से एकत्र किए गए नमूनों का प्रतिनिधित्व करता है।

उदाहरण के लिए, इस क्षेत्र में मानव बस्ती की स्थापना का पता परागकणों, सूक्ष्मशैवालों एवं पादपाश्मों (पॉलेन , डायटम्स, फाइटोलिथ) जैसे वर्गकों (टेक्सा) जैसे संकेतकों (मार्कर्स) की पुस्थिति के माध्यम से लगाया जा सकता है। यूफोरबिएसी और कनवोल्वुलेसी जैसी वार्षिक जड़ी-बूटियों के संकेतक परागकणों की उच्च/निम्न उपस्थिति ने मध्य गंगा के मैदान में मानसूनी उतार-चढ़ाव का संकेत दिया। इसके अलावा, विभिन्न मिश्रित (कल्चर्ड)   परागकणों  ने अवगत कराया कि कैसे मानव- संबंधित परिवर्तनों ने सीजीपी में वन आवरण को कम कर दिया है, और इसलिए उन वन वृक्षों को लगाया जाना चाहिए जो ऑक्सीजन देकर हमारी जीवन-सहायक प्रणाली को उत्पन्न और बनाए रख सकते हैं और कार्बन प्रच्छादन (सीक्वेस्ट्रेशन) प्रक्रिया से बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2) का मुकाबला भी कर सकते हैं।

यह कार्य इस तथ्य के कारण भी विशिष्ट है कि यह जीवाश्म पराग प्रजातियों के स्तर तक पौधे का प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए सीधे ही वानस्पतिक परिवर्तनों का पता लगा लगाने के साथ ही पराग जलवायु परिवर्तन परिदृश्यों में बड़े पैमाने पर परिवर्तनशीलता की निगरानी के लिए एक सटीक उपकरण हो सकता है।

अध्ययन भविष्य के परिदृश्य के विकास के लिए प्राकृतिक वनस्पति की गतिशीलता और समय के साथ हुए मानव व्यवसायों में बदलाव को मापने में मदद करेगा। यह आधुनिक व्यापक डेटासेट इस क्षेत्र के वनों, फसलों, झीलों और नदियों की प्रणाली में पनपने वाली लुप्तप्राय जैव विविधता के संरक्षण और संरक्षण के लिए प्रथाओं के साथ-साथ मध्य गंगा के मैदान से परवर्ती चतुर्थ महाकल्प (लेट क्वाटरनरी) के पुरा-पारिस्थितिक (पैलियो- इकोलॉजिकल) पुनर्निर्माण के लिए पृष्ठभूमि की जानकारी प्रदान कर सकता है।

मध्य गंगा मैदान (सीजीपी) की झीलें, जो कभी पानी से लबालब भरी हुई थीं और मानव बस्तियों का समर्थन करती थीं अब वर्तमान में सूख रही हैं और उन्हें संरक्षित और साफ करने की आवश्यकता है ताकि झीलों और उनके आसपास की समृद्ध जैव विविधता का उपयोग स्थायी भविष्य के विकास के लिए किया जा सके। इसलिए इस अध्ययन में प्रयुक्त विभिन्न प्रतिनिधिक नमूने इस क्षेत्र में आर्द्रभूमि और तलछट की स्थिति की पारिस्थिक–पर्यावरणीय संभावना उत्पन्न करने में सहायता करते हैं।

इस प्रकार के बहुमानकीय (मल्टीपैरामीटर) अध्ययन को विभिन्न झीलों और नदी प्रणालियों के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण आधार रेखा (बेसलाइन) के रूप में भी देखा जा सकता है, जिसे अक्सर बंजर भूमि के रूप में मान कर वहां से जलनिकासी के बाद, भंडारण और अन्य इतर उद्देश्यों के लिए वांछित क्षेत्र में परिवर्तित कर लिया  जाता है।

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