खुशी एवं प्रसन्नता हम सबकी जरूरत है, लेकिन प्रश्न है कि क्या हमारी यह जरूरत पूरी हो पा रही है

ललित गर्ग
ललित गर्ग

साल 2023 के लिए ‘ग्लोबल हैप्पीनेस इंडेक्स’ जारी कर दिया गया है, जिसमें फिनलैंड ने लगातार छठीं बार सर्वोच्च स्थान पाया है। यह बात भी गौर करने की है कि तीन अंकों का सुधार करके भारत इसमें 136 वें स्थान पर पहुंचा है, जो आश्चर्यकारी है। इस सूची को जारी करने में अवश्य ही कोई पूर्वाग्रह या आग्रह दिखाई देता है। क्योंकि ऋण की गुहार लगाता एवं त्राहिमाम करता पाकिस्तान 103 वें स्थान पर है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि शीर्ष 20 देशों की सूची में एशिया का एक भी देश शामिल नहीं है। कुछ ऐसी ही विडंबनाएं एवं विसंगतियां भी हैं, जो इस सूचकांक के महत्व को घटा देती हैं। जो दुनिया के खुश देशों के आकलन में त्रुटि की पूरी संभावनाएं होने को दर्शाता है। अनेक सवाल खड़े करती है यह खुशहाल देशों की रैंकिंग। चीन में लोगों को धार्मिक-आर्थिक आजादी भी सही ढंग से नहीं मिली है, पर वह 82वें स्थान पर है। नेपाल 85वें, तो बांग्लादेश 99वें स्थान पर है। आर्थिक रूप से बदहाल श्रीलंका 126वें स्थान पर है। ऐसे में, भारत की 136वीं रैंकिंग किसी को अचंभित कर सकती है, इस आकलन की गुणवत्ता एवं निष्पक्षता पर सवाल भी खड़े कर सकती है। हैप्पीनेस इंडेक्स में किसी देश की स्थिति जानने के लिए उसकी जीडीपी, वहां जीवन की गुणवत्ता और जीवन प्रत्याशा का देखा जाता है। इस साल में रैकिंग में 150 से ज्यादा देशों के इन डाटा का अध्ययन करने के बाद सूची तैयार की गई है। इस बार 2020 से 2022 तक देशों के औसत जीवन मूल्यांकन के आधार पर रिपोर्ट तैयार की गई है। दो अन्य मोर्चों पर खुशहाली को मापने की कोशिश हुई है जिसमें भारत की इतनी बुरी हालात को नहीं दर्शाया गया है।
फिर भी एक बड़ा सवाल है कि हम प्रसन्न समाजों की सूची में क्यों नहीं अव्वल आ पा रहे हैं। यह सवाल सत्ता के शीर्ष नेतृत्व को आत्ममंथन करने का अवसर दे रहा है, वहीं नीति-निर्माताओं को भी सोचना होगा कि कहां समाज निर्माण में त्रुटि हो रही है कि हम लगातार खुशहाल देशों की सूची में सम्मानजनक स्थान नहीं बना पा रहे हैं। भारत सरकार इस रिपोर्ट को कितनी गंभीरता से लेती है, यह देखने वाली बात है। वैसे इस सूचकांक के अलावा भी जो दो अन्य सर्वे जारी हुए हैं, जिनमें एक कंसल्टिंग फर्म हैप्पीप्लस की ‘द स्टेट ऑफ हैप्पीनेस 2023’ रिपोर्ट के अनुसार, देश में करीब 35 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने 2022 में नकारात्मकता और दुख का अनुभव किया है, यानी 65 प्रतिशत भारतीय लोग अपेक्षाकृत खुश हैं। यह रिपोर्ट 36 राज्यों व केंद्रशासित क्षेत्रों के 14 हजार लोगों की प्रतिक्रिया के आधार पर तैयार की गई है। एक अन्य सर्वे भी है, जिसके अनुसार, भारत में कम से कम 84 प्रतिशत लोगों ने खुश होने का दावा किया है। जीवन संतुष्टि पर आधारित यह ‘इप्सोस ग्लोबल हैप्पीनेस सर्वे’ बताता है कि दुनिया भर में 73 प्रतिशत लोग संतुष्ट हैं। वैसे दुख या खुशी एक ऐसी अवस्था है, जिस पर किसी सर्वे के जरिये एकमत नहीं हुआ जा सकता। फिर भी, ऐसी सूचियों से सकारात्मक प्रेरणा लेते हुए प्रसन्न समाज की संरचना के लिये तमाम तरह के प्रयास करने में ही भलाई है।
खुशहाली सूचकांक के लिए अर्थशास्त्रियों एवं विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की एक टीम व्यापक स्तर पर शोध करती है, यह टीम समाज में सुशासन, प्रति व्यक्ति आय, स्वास्थ्य, जीवित रहने की उम्र, भरोसा, सामाजिक सहयोग, परोपकार, दान भावना, स्वतंत्रता और उदारता आदि को आधार बनाती है। रिपोर्ट का मकसद विभिन्न देशों के शासकों को आईना दिखाना है कि उनकी नीतियां लोगों की जिंदगी खुशहाल बनाने में कोई भूमिका निभा रही हैं या नहीं? हमारा शीर्ष नेतृत्व आजादी के बाद से ही निरन्तर आदर्शवाद और अच्छाई का झूठ रचते हुए सच्चे आदर्शवाद के प्रकट होने की असंभव कामना करता रहा है, इसी से जीवन की समस्याएं सघन होती गयी है, नकारात्मकता का व्यूह मजबूत होता गया है, खुशी एवं प्रसन्न जीवन का लक्ष्य अधूरा ही रहा है, इनसे बाहर निकलना असंभव-सा होता जा रहा है। दूषित और दमघोंटू वातावरण में आदमी अपने आपको टूटा-टूटा सा अनुभव कर रहा है। आर्थिक असंतुलन, बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, बिगड़ी कानून व्यवस्था एवं भ्रष्टाचार उसकी धमनियों में कुत्सित विचारों का रक्त संचरित कर रहा है। ऐसे जटिल हालातों में इंसान कैसे खुशहाल जीवन जी सकता है? इन गहन अंधेरों से बाहर निकलते हुए विगत एक दशक में सरकारों के कामकाज एवं नीतियों से एक आशावाद झलका है, कोरोना महामारी से निपटने में भी वर्तमान सरकारों की सकारात्मक भूमिका रही है। इसी से एक और खास बात सामने आयी है वह यह है कि तीन साल की महामारी का समग्रता में भारत की खुशी पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ा है।
भारत में खुशहाली को बढ़ावा देने में यहां की जनसंख्या सबसे बड़ी बाधा है। भारत जैसे विशाल और असमान विकास वाले देश के लिए 136वां स्थान कितना मायने रखता है? भारत में कई तरह का भारत है, एक अमीर व खुशहाल भारत है, तो उसमें एक गरीब भारत भी है। गरीब भारत भी विकास कर रहा है, लेकिन आबादी इतनी ज्यादा है कि अभी देश को समग्रता में खुशहाल देशों में अव्वल स्थान बनाने में वक्त लगेगा। सबसे खुशहाल देश फिनलैंड की आबादी महज 55 लाख है, उसके लिए विकास आसान है। भारत के मुम्बई, दिल्ली, कोलकता शहर में इसमें कहीं ज्यादा लोग रहते हैं। खुश देशों की सूची में दूसरे स्थान रहे डेनामार्क में 58.6 लाख लोग रहते हैं, तीसरे स्थान पर रहे देश आइसलैंड में तो महज 3.73 लाख लोग होते हैं। वैसे भी खुशी महसूस करना व्यक्ति के खुद की सोच पर निर्भर करता है। इसलिये प्रश्न है कि हमारी खुशी का पैमाना क्या हो? अधिकतर लोग छोटी-छोटी जरूरतें पूरी होने को ही खुशी मान लेते हैं। इससे उन्हें उस पल तो संतुष्टि मिल जाती है, उनका मन खिल जाता है। लेकिन यह खुशी ज्यादा देर नहीं टिकती, स्थायी नहीं होती। इच्छा पूरी होने के साथ ही उनकी खुशी भी कमजोर होने लगती है।
खुशी एवं प्रसन्नता हम सबकी जरूरत है, लेकिन प्रश्न है कि क्या हमारी यह जरूरत पूरी हो पा रही है, ताजा आकलन से तो यही सिद्ध हो रहा है कि हम खुशी एवं प्रसन्नता के मामले में लगातार पिछड़ रहे हैं। विडम्बनापूर्ण स्थिति तो यह है कि हमारा भारतीय समाज एवं यहां के लोग अपने ज्यादातर पड़ोसी समाजों से कम खुश है। खुशहाली की रिसर्च में खुशहाली को राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध भौतिक सुविधाओं से मापा जाता है। लेकिन खुशियां का दायरा इतना छोटा तो नहीं होता। विकास की सार्थकता इस बात में है कि देश का आम नागरिक खुद को संतुष्ट और आशावान महसूस करे। स्वयं आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ बने, कम-से-कम कानूनी एवं प्रशासनिक औपचारिकताओं का सामना करना पड़े, तभी वह खुशहाल हो सकेगा। डिजिलीकरण, आर्थिक नवाचार जैसी घटनाओं ने आम आदमी को अधिक परेशानी एवं कंकाली दी है। समस्याओं के घनघोर अंधेरों के बीच उनका चेहरा बुझा-बुझा है। न कुछ उनमें जोश है न होश। अपने ही विचारों में खोए-खोए, निष्क्रिय और खाली-खाली से, निराश और नकारात्मक तथा ऊर्जा विहीन। हाँ सचमुच ऐसे लोग पूरी नींद लेने के बावजूद सुबह उठने पर खुद को थका महसूस करते हैं, कार्य के प्रति उनमें उत्साह नहीं होता। ऊर्जा का स्तर उनमें गिरावट पर होता है। क्यों होता है ऐसा? कभी महसूस किया आपने? यह स्थितियां एक असंतुलित एवं अराजक समाज व्यवस्था की निष्पत्ति है। ऐसे माहौल में व्यक्ति एवं समाज खुशहाल नहीं हो सकता।

आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Translate »