फोन ‘हैक’ की राजनीति: आक्रामकता की बजाय संयम जरूरी

ललित गर्ग
ललित गर्ग

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के लगातार आक्रामक होने के मध्य में देश के कुछ प्रमुख विपक्षी नेताओं के आईफोन (फोन ‘हैक’)पर निगरानी किये जाने का मामला एक नया राजनीतिक विवाद खड़ा कर रहा है। इसे सरकार प्रायोजित बताकर सरकार को घेरने की कोशिशें भी एकाएक उग्र हो गयी है। एप्पल कम्पनी ने इन फोन धारकों को ईमेल सन्देश भेज कर लिखा है कि आपके फोन को किसी ‘मालवेयर वायरस’ से सरकार द्वारा सर्वेक्षण में रखा जा रहा है जिसके माध्यम से आपकी सारी गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है। मगर इसके साथ ही सरकार ने ऐसी किसी कार्रवाई से इन्कार करते हुए पूरे मामले की सूचना प्रौद्योगिकी मन्त्रालय की संसदीय समिति से जांच कराने की घोषणा कर दी है और कहा है कि ऐसा ही एक ई-मेल सन्देश वाणिज्य मन्त्री पीयूष गोयल को भी आया है। फोनों पर निगरानी का आरोप सरकार के लिए भी गंभीर चिन्ता का विषय है क्योंकि यह ऐसा मामला है जिसमें सत्ता से बेदखल होनेे जैसी स्थितियां बनती है। जब तक मामले की पूरी जांच नहीं हो जाती, किसी को भी दोषी ठहराना जल्दीबाजी होगी। पक्ष-विपक्षी दल चुनावी माहौल को धुंधलाने या विवादास्पद बनाने की बजाय उसे स्वस्थ बनाने में सहयोग करें, यह स्वस्थ एवं आदर्श लोकतंत्र की बुनियाद है। किसी की स्वतंत्रता का हनन लोकतंत्र की पवित्रता को ही समाप्त कर देती है।
निश्चित ही किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार की ओर से विपक्षी नेताओं की निजता भंग करने का कोई भी मामला सामने आता है, तो स्वाभाविक ही सरकार को घेरा जाना चाहिए एवं जबाव मांगा जाना चाहिए। लेकिन बिना बुनियाद के ऐसे विवाद खड़े करना उचित नहीं है। अच्छी बात इस मामले में यह है कि सरकार ने इन आरोपों को पूरी गंभीरता से लिया है और तत्परता से निर्णय लेते हुए न केवल पूरे मामले की विस्तृत जांच के आदेश दे दिए गए हैं बल्कि आईफोन कंपनी से भी जांच में शामिल होने को कहा गया है। सभी पक्षों के लिए जरूरी है कि निष्कर्ष निकालने की जल्दबाजी करने के बजाय मामले की बारीक और विश्वसनीय जांच सुनिश्चित करने में सहयोग करें। यह न केवल विपक्षी दलों के नेताओं की निजता से जुड़ा मामला है बल्कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा एवं प्रतिबद्धता का भी मामला है।


हालांकि यह साफ करना भी जरूरी है कि मौजूदा मामले में अभी बात सिर्फ संदेह की है। आईफोन पर ऐपल की ओर से भेजे गए ये मेसेज ऑटो जेनेरेटेड थे, जिनकी प्रामाणिकता को लेकर कंपनी भी आश्वस्त नहीं है। उसका कहना है कि इनमें से कुछ मेसेज फॉल्स अलार्म के भी हो सकते हैं। इसके बावजूद विपक्षी नेताओं की आशंकाएं निराधार है या आधारभूत है, यह तो जांच के निष्कर्षों से ही पता लगेगा। मेसेज विपक्षी दलों के नेताओं और कुछ सत्ता विरोधी माने जाने वाले पत्रकारों के ही फोन पर आने का आरोप निराधार है क्योंकि ऐसा ही मेसेज एक केन्द्रीय मंत्री को भी मिला है। सूचना टैक्नोलॉजी क्रान्ति होने के बाद चीजें काफी बदल चुकी हैं अतः आरोपों का स्वरूप भी बदल चुका है। इससे पहले दो वर्ष पूर्व भी देशवासियों ने ‘पेगासस’ वायरस का पूरा कर्मकांड देखा है जिसकी जांच सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एक विशेष समिति ने की थी। इस मामले को लेकर दो साल पहले संसद में भी जमकर हंगामा हुआ था। लेकिन उसमें आरोप सिद्ध नहीं हो पाये थे। ऐसे में जब विपक्षी नेताओं के फोन की हैकिंग का यह नया आरोप लगा है तो उसे पूरी गंभीरता से लेने की जरूरत है। इस मामले को लेकर आरोप-प्रत्यारोप से बचते हुए सत्य के उजागर होने तक इंजतार करना चाहिए। सरकार की तरफ से यह भी कहा गया है कि वह पूरे प्रकरण की जांच में एप्पल कम्पनी के उच्च पदाधिकारियों को भी पूछताछ के लिए बुला सकती है। इस मामले में मूल सवाल निजी स्वतन्त्रता का उठता है जिसे सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों का मूल अधिकार मान चुका है। लोकतांत्रिक प्रणाली में सभी को लिखने, बोलने, सोचने और करने की स्वतंत्रता होती है।


आईटी मंत्रालय के सूत्रों ने कहा है कि केंद्रीय ऑनलाइन सुरक्षा एजेंसी सीईआरटी-इन (भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम) आईफोन ‘हैकिंग’ प्रयासों के विपक्ष के दावे की जांच करेगी और वही हैकिंग और फ़िशिंग जैसे साइबर सुरक्षा खतरों का जवाब देने के लिए जिम्मेदार राष्ट्रीय एजेंसी है। महुआ मोइत्रा, प्रियंका चतुर्वेदी, राघव चड्ढा, शशि थरूर, पवन खेड़ा और सीताराम येचुरी सहित कई विपक्षी नेताओं ने मंगलवार को दावा किया कि उन्हें एप्पल अलर्ट मिला है जिसमें उनके आईफोन में राज्य प्रायोजित हैकिंग की चेतावनी दी गई है। आईफोन निर्माता एप्पल ने मंगलवार को कहा था कि वह विपक्षी दलों के कुछ सांसदों को भेजे गए चेतावनी संदेश को किसी विशिष्ट सरकार-प्रायोजित सेंधमारों से नहीं जोड़ती और वह इस बारे में जानकारी नहीं दे सकती है कि ऐसी चेतावनियों का कारण क्या है। कारणों का पता तो विस्तृत जांच के बाद ही सामने आयेगा, तब तक पक्ष एवं विपक्ष को शांत रहते हुए विवेक का परिचय देना चाहिए। क्योंकि यह भारत, भारतीय लोकतंत्र एवं लोकतांत्रिक व्यवस्था के व्यवस्थित संचालन से जुड़ा मामला है। ताजा मामला इसलिये भी बहुत गंभीर है क्योंकि ऐसे मामलों में सत्ताएं बदलती देखी गयी है। इसलिये ऐसे मामलों एवं आरोपों में गंभीरता बरतना जरूरी है।


इस तरह के राजनेताओं एवं राजनीतिक दलों के निजता भंग के कम उदाहरण ही भारत में देखने को मिले हैं लेकिन जब भी किसी सरकार पर इस प्रकार के आरोप लगे तो उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी है। सबसे बड़ा उदाहरण 80 के दशक का है जब कर्नाटक की वीरप्पा मोइली सरकार ‘टेप कांड’ में फंस गई थी तो उसे सत्ता से बेदखल होना पड़ा था। डा. मनमोहन सिंह सरकार पर भी फोन टेप करने के आरोप लगे थे। पूरी दुनिया का सबसे सशक्त और उदार लोकतन्त्र माने जाने वाले अमेरिका के वाटर गेट कांड में रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने अपनी प्रतिद्वन्द्वी डेमोक्रेटिक पार्टी के मुख्यालय पर जासूसी यन्त्र लगा कर उसकी गतिविधियों को जानने की कोशिश की थी। निक्सन भले ही इस मामले पर लम्बी टालमटोल करते रहे हो मगर भारत सरकार ने तो एप्पल फोन कांड का भंडाफोड़ होते ही इसकी जांच कराने की घोषणा कर दूध का दूध, पानी का पानी करने की अपनी संकल्पबद्धता दर्शा दी है। इस हकीकत को भी हमें ध्यान में रखकर ही इस मामले में और टीका-टिप्पणी करनी होगी।


भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। लोकतंत्र एक जीवित, निष्पक्ष एवं आदर्श तंत्र है, जिसमें सबको समान रूप से अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुसार चलने, गतिविधियों को संचालित करने की पूरी स्वतंत्रता है। लोकतंत्र की नींव ही निजता की सुरक्षा करने के सिद्धान्तों पर टिकी है, इस व्यवस्था में प्रत्येक नागरिक संविधान के दायरे में स्वयंभू होता है। अतः इस मुद्दे पर विपक्षी नेताओं की चिन्ता वाजिब मानी जा सकती है मगर इसके साथ ही सरकार की तरफ से तत्परता से व्यक्त इस मामले में संलिप्त न होने की साफगोई बयान को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। यदि सरकार ने इस मामले में तुरन्त कार्रवाई की है तो उसकी नीयत पर भी शक करने की कोई वजह दृष्टिगोचर नहीं होती। सरकार किसी की भी निजता को भंग करने का आरोप स्वयं कर लगता हुआ देख बिन बुलाये संकट को कैसे आमंत्रित कर सकती है? क्योंकि इस तरह का कोई भी काम पूर्ण रूप से असंवैधानिक व गैर कानूनी होती है। ऐसी अराजकता, अव्यवस्था एवं एकाधिपत्य लोकतंत्र का ही विलुप्त कर सकता है।

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