नेफेड व जीपीसी के पल्सेस कन्वेंशन में शामिल हुए केंद्रीय मंत्री श्री मुंडा व श्री गोयल

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व जनजातीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा एवं उपभोक्ता मामले, खाद्य-सार्वजनिक वितरण, वाणिज्य एवं उद्योग तथा वस्त्र मंत्री श्री पीयूष गोयल ने राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (नेफेड) व ग्लोबल पल्स कन्फेडरेशन (जीपीसी) द्वारा आयोजित चार दिवसीय पल्सेस कन्वेंशन का आज औपचारिक शुभारंभ किया। इस अवसर पर इथियोपिया के व्यापार व उद्योग तथा क्षेत्रीय एकता मंत्री श्री कासाहु गोफे बलामी, उपभोक्ता मामलों के सचिव श्री रोहित कुमार सिंह, जीपीसी के प्रेसीडेंट श्री विजय अयंगर, नेफेड अध्यक्ष डॉ. बिजेंद्र सिंह, एमडी श्री रितेश चौहान, अतिरिक्त सचिव (कृषि) श्रीमती शुभा ठाकुर सहित केंद्र-राज्यों के वरिष्ठ अधिकारी, राष्ट्रीय सहकारी संघों के अध्यक्ष-एमडी, किसानों-व्यापारियों के राष्ट्रीय संघों के पदाधिकारी, मिलर्स, निर्यातक-आयातक व आपूर्ति श्रृंखला प्रतिनिधि मौजूद थे।

कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री श्री मुंडा ने कहा कि भारत, दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक व सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है। खेती-किसानी की बेहतरी व किसानों का जीवन स्तर ऊंचा उठाने के लिए भारत सरकार, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के कुशल नेतृत्व में बहुत जिम्मेदारी के साथ काम कर रही है। इस दृष्टिकोण के साथ प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, 10 हजार एफपीओ जैसी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। किसानों के लिए ऋण, एमएसपी पर खरीदी जैसे उपायों से भी सहायता की जा रही है। सरकार दलहन क्षेत्र में सतत कार्य करते हुए आयात पर निर्भरता कम करने व आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने के लिए घरेलू उत्पादन बढ़ाने के संबंध में लगातार प्रयास कर रही हैं। 2014 से, यानी एक दशक में दलहनी फसलों के विकास में केंद्र के अथक प्रयासों से काफी प्रगति हुई है।

भारत चने व कई अन्य दलहनी फ़सलों में आत्मनिर्भर बन चुका है, थोड़ी कमी तूर व उरद में बाकी है, जिसे 2027 तक पूरा करने की कवायद जारी है। इस दिशा में, नई किस्मों के बीजों की आपूर्ति बढ़ाई जा रही हैं, वहीं तूर-उड़द का रकबा बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया है। इस रबी सीजन में मसूर का रकबा करीब 1 लाख हेक्टेयर बढ़ा है। तूर की खरीद हेतु पोर्टल लांच किया गया है। इस पर पंजीयन करके किसान संपूर्ण बिक्री एमएसपी पर नेफेड या एनसीसीएफ को कर सकेंगे।

श्री मुंडा ने कहा कि देश में कृषि उत्पादन 332 मिलियन टन का लक्ष्य है, जिसमें अकेले 29.25 मिलियन टन दाल उत्पादन लक्ष्य है। गरीबों को राहत देने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम में कवर किए करीब 81.4 करोड़ लाभार्थियों को 5 साल के लिए मुफ्त खाद्यान्न दिया जा रहा है। यह हमारे कृषि क्षेत्र की प्रगति का प्रमाण है, जो खाद्यान्न के रिकॉर्ड उत्पादन के बल पर मुफ्त वितरण को संभव बना रहा है, वहीं वसुधैव कुटुंबकम की भावना से भारत दूसरे देशों को मानवीय सहायता के साथ द्विपक्षीय व्यवस्था के तहत खाद्यान्न उपलब्ध करा रहा है। उन्होंने बताया कि कृषि मंत्रालय के लिए बजट में दलहन क्षेत्र के, स्वास्थ्य व पर्यावरण के महत्व को समझते हुए महत्वपूर्ण वित्तीय परिव्यय की रिपोर्ट दी गई है। कृषि मंत्रालय घरेलू दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए सभी जिलों में क्षेत्र विस्तार व उत्पादकता वृद्धि के जरिये उत्पादन बढ़ाने के उद्देश्य से एनएफएसएम-दलहन को लागू कर रहा है। इसके अंतर्गत राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों के माध्यम से किसानों को मदद दी जाती है। दाल उत्पादन-उत्पादकता बढ़ाने के लिए, नई किस्मों के बीज मिनी किट वितरण, गुणवत्तापूर्ण बीज उत्पादन, केवीके द्वारा तकनीकी प्रदर्शन जैसी पहल भी एनएफएसएम में शामिल की है। दालों के गुणवत्तापूर्ण बीज की उपलब्धता बढ़ाने हेतु 2016-17 से एनएफएसएम के तहत दालों के 150 केंद्र खोले हैं, जिन्होंने 1 लाख क्विंटल से अधिक गुणवत्ता वाली दालों के बीज का उत्पादन किया है।

केंद्रीय मंत्री श्री मुंडा ने कहा कि दलहन फसल की उत्पादकता क्षमता बढ़ाने के लिए, आईसीएआर स्थान विशिष्ट उच्च उपज वाली किस्म के मिलान वाले उत्पादन पैकेज विकसित करने के लिए राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के सहयोग से बुनियादी व रणनीतिक अनुसंधान कर रहा है। सरकार के प्रयासों के फलस्वरूप व्यावसायिक खेती के लिए दालों की 343 उच्च उपज वाली किस्मों की शुरूआत भी हुई है। आने वाले खरीफ सीजन में क्लस्टर फ्रंड लाइन डिमांस्ट्रेशन द्वारा बहुत बड़े क्षेत्र में किस्मों व तकनीकों के प्रदर्शन की व्यवस्था की जा रही है, ताकि किसान नई किस्मों एवं तकनीकों से परिचित हो, उन्हें अपनाकर दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाएं। जरूरत इस बात की भी है कि उच्च गुणवत्ता जैसे ज्यादा प्रोटीन वाली चने की किस्म, जलवायु अनुकूल किस्में व ऐसी ही अन्य लाभप्रद तकनीकों का प्रसार तेजी से हो एवं बीज से उत्पाद तक वैल्यू श्रृंखला बने, इसलिए सरकार के प्रयासों के साथ ही निजी क्षेत्र की भी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। 

2027 तक दलहनी फसल उत्पादन में भारत को आत्मनिर्भर बनाने व विश्व में दलहनी फसलों के अनुसंधान एवं उपयोग में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए सभी को भागीदारी कर लक्ष्य हासिल करना है। अभी तक के प्रयासों से 2015-16 के दौरान दालों का उत्पादन 16.32 मिलियन टन के पहले स्तर से बढ़कर 26 मिलियन टन के स्तर तक पहुंच गया है। उत्पादन में इस जबरदस्त वृद्धि ने हमारी आयात निर्भरता को कम किया है। सरकार के ये प्रयास किसानों, लाभार्थियों के बीच जागरूकता के बिना अधूरे हैं। इसलिए, मंत्रालय मजबूत विस्तार सेवाओं के जरिये सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अथक प्रयास कर रहा है।

श्री मुंडा ने कहा कि दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए रोडमैप बनाया गया है, जिसमें बीज विकास अनुसंधान व उपज का आकलन करने सैटेलाइट इमेज जैसी अत्याधुनिक तकनीक प्रयोग, मृदा स्वास्थ्य, उपयुक्त समय सहित अनुकूलित सलाह प्रदान करने, सिंचाई, निराई-गुड़ाई के लिए प्रौद्योगिकी के साथ हरेक किसान के खेत की मैपिंग शामिल है। राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) से किसानों हेतु बहुत मजबूत, प्रतिस्पर्धी व पारदर्शी बाजार प्रदान किया जा रहा है, जो उपज का सर्वोत्तम मूल्य प्राप्त करने के लिए निष्पक्ष व पारदर्शी तरीके से लेनदेन करने हेतु व्यापक पहुंच प्रदान कर रहा है। यदि किसान खुले बाजार से लाभकारी मूल्य प्राप्त करने में सक्षम नहीं हैं, तो सरकार पीएम-आशा योजना लागू करती हैं, जिसके तहत किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाता है। श्री मुंडा ने कहा कि विशेषज्ञों व नीति-निर्माताओं के समर्थन से उम्मीद हैं कि यह आयोजन भारत के छोटे दलहन किसानों के विशाल नेटवर्क के साथ जानकारी साझा करने के माध्यम के रूप में काम करेगा। साथ ही लक्ष्य अनुरूप घरेलू उत्पादन और खपत को बढ़ावा देने में मदद करेगा।

केंद्रीय मंत्री श्री गोयल ने कहा कि दलहन उत्पादन 2014 में 17 मिलियन टन से बढ़कर अब 26 मिलियन टन से ज्यादा हो गया। यह किसानों की क्षमता-प्रतिबद्धता दर्शाता है। किसानों के उज्जवल भविष्य के लिए केंद्र सरकार हरसंभव उपाय कर रही है। सभी मंत्रालय मिलकर काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसानों को समर्थन देने व उपभोक्ताओं को उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए भारत दाल लांच की गई है। चार महीने की अल्पावधि में ही बाजार के लगभग 25 फीसदी हिस्से पर भारत दाल का कब्जा हो गया है।

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