कोच्चि में ‘चैलेंजेस एंड प्रॉस्‍पेक्टिव सॉल्‍यूशंस इन इनलैंड वाटरवेज एंड शिपबिल्डिंग’ पर सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें सामुद्रिक अमृत काल विजन 2047 की परिकल्पना के अनुसार समुद्री क्षेत्र के समग्र विकास पर जोर दिया गया

केन्‍द्रीय पत्‍तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय (एमओपीएसडब्ल्यू) ने कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) और भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) के साथ मिलकर हाल ही में कोच्चि, केरल में दो दिवसीय सम्मेलन (23-24 अप्रैल) का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में ‘चैलेंजेस एंड प्रॉस्‍पेक्टिव सॉल्‍यूशंस इन इनलैंड वाटरवेज एंड शिप बिल्डिंग’ (अंतर्देशीय जलमार्ग और जहाज निर्माण में चुनौतियां और संभावित समाधान) विषयक समुद्री क्षेत्र के महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार करने के लिए विभिन्न राज्य विभागों, उद्योग विशेषज्ञों तथा हितधारकों को आमंत्रित किया गया। सम्मेलन में चार व्यावहारिक सत्र शामिल थे, जिनमें समुद्री उद्योग को कार्बन से मुक्‍त करने, अंतर्देशीय जल परिवहन और जहाज निर्माण में महत्वपूर्ण चुनौतियों पर विचार करना शामिल था। प्रतिभागियों ने प्रमुख चुनौतियों को साझा करने में सक्रिय रूप से भाग लिया और घरेलू जहाज निर्माण को बढ़ावा देने के अलावा, जलमार्गों में कार्गो मोडल शिफ्ट को तेजी से हासिल करने के लिए सरकार द्वारा संभावित पहल का सुझाव दिया।

कोच्चि में सम्मेलन में चल रही गोलमेज चर्चा

पत्‍तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री आर लक्ष्मणन ने कहा कि कोच्चि में दो दिवसीय सम्मेलन ने अंतर्देशीय जलमार्गों के हरित परिवर्तन, एक समर्पित क्षेत्रीय समुद्री विकास कोष की स्थापना, घरेलू जहाज निर्माण को बढ़ावा देने आदि सहित भारत की प्रमुख प्राथमिकताओं पर समृद्ध चर्चा को सफलतापूर्वक आयोजित किया। यह सामुद्रिक अमृत काल विजन 2047 में निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में समुद्री हितधारकों के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों की पहचान करने और उनका समाधान करने के लिए मंत्रालय द्वारा ऐसी कई बैठकों के आयोजन की एक कड़ी है।

उद्घाटन सत्र में अंतर्देशीय जलमार्ग क्षेत्र में पत्‍तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के कार्बन से मुक्ति के प्रयासों को उजागर किया गया, जिसका नेतृत्व आईडब्‍ल्‍यूएआई और सीएसएल द्वारा पत्‍तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के हरित नौका दिशानिर्देशों के अनुरूप ग्रीन हाइड्रोजन ईंधन सेल अंतर्देशीय जहाजों की तैनाती द्वारा किया जा रहा है। पायलट लर्निंग द्वारा विस्तार योजनाओं की जानकारी के साथ, एनडब्ल्यू-1 पर तत्काल तैनाती के लिए वाराणसी को प्रायोगिक स्‍थल के रूप में चुना गया है। उल्‍लेखनीय है कि बंकरिंग आदि जैसी सुविधाओं के लिए संभावित हितधारकों के साथ चर्चा चल रही है। इसके अलावा, यह भी बताया गया कि अपने कम उत्सर्जन गुणों के कारण, मेथनॉल को वैश्विक स्तर पर एक्जिम जहाजों के लिए प्रमुख हरित ईंधन में से एक माना जाता है। मायरस्‍क द्वारा मेथनॉल संचालित जहाजों की तैनाती का हालिया मामला इसका उदाहरण है। इसके साथ अंतर्देशीय जहाजों के हरित परिवर्तन की दिशा में एक प्रगतिशील कदम के रूप में देश में मेथनॉल समुद्री इंजनों के स्वदेशी विकास की संभावनों का पता लगाने का सुझाव दिया गया।

दोपहर के सत्र में सामुद्रिक अमृत काल विजन 2047 में उल्लिखित लगभग 70-75 लाख करोड़ रुपये की विशाल निवेश आवश्यकता को रेखांकित करते हुए, भारत के नौवहन क्षेत्र की तत्काल वित्तपोषण आवश्यकताओं पर चर्चा की गई। इसके बावजूद देश के अनुमानित व्यापार और आर्थिक विस्तार का समर्थन करने की पर्याप्त आवश्यकता है, हालांकि बैंक ऋण और विदेशी निवेश सहित आगामी वित्त स्रोतों का अभाव है। चर्चा में भारतीय समुद्री हितधारकों, विशेष रूप से नौवहन क्षेत्र के हितधारकों के सामने आने वाली विभिन्न वित्तपोषण चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया।

इन चुनौतियों में कम ब्याज दरों के साथ-साथ दीर्घकालिक वित्‍तपोषण की अनुपलब्धता भी शामिल है, जो सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, आरबीआई क्रेडिट एकाग्रता मानदंडों के अनुसार निश्चित क्षेत्रीय ऋण सीमा की उपस्थिति एक बड़ी बाधा उत्पन्न करती है, जो प्रत्येक बैंक के व्यक्तिगत कंपनियों या कंपनियों के नेटवर्क के जोखिम को सीमित करके ऋण की उपलब्धता को प्रतिबंधित करती है। इसके अलावा, बैंकों/वित्तीय संस्थानों (एफआई) द्वारा परिसंपत्ति-आधारित वित्तपोषण की कमी के कारण नौवहन क्षेत्र के ऋण लेकर काम करने वाले हितधारकों के लिए अड़चन पैदा होती है।

कोच्चि में जल मेट्रो का संचालन

इन चुनौतियों के समाधान के रूप में पत्‍तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री आर लक्ष्मणन ने मंत्रालय के सक्रिय प्रयासों के बारे में जानकारी साझा की। मंत्रालय पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड, आरईसी, आईआरएफसी आदि जैसे स्थापित क्षेत्रीय वित्तीय संस्थानों के समान एक समर्पित समुद्री विकास कोष की स्थापना पर सक्रिय रूप से काम कर रहा है। इस कोष का उद्देश्य समुद्री क्षेत्र की अनूठी और पर्याप्त वित्‍तपोषण आवश्यकताओं को पूरा करना है। इसमें जहाज निर्माण, डीकार्बोनाइजेशन, हरित ऊर्जा अपनाने, प्रौद्योगिकी नवाचार और जनशक्ति प्रशिक्षण और विकास जैसी विशिष्ट पहलों के कार्यान्वयन को सक्षम करना शामिल है।

उद्योग हितधारकों ने इस पहल का भरपूर स्वागत किया और महत्वपूर्ण वित्तीय जरूरतों को पूरा करने तथा सामुद्रिक अमृत काल विजन 2047 में कल्पना की गई समुद्री क्षेत्र के समग्र विकास को बढ़ावा देने की इसकी क्षमता को पहचानते हुए बहुमूल्य प्रतिक्रिया प्रदान की।

कार्यक्रम के सायंकालीन एजेंडे में कोच्चि जल मेट्रो और भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) के तहत परियोजनाओं का अवलोकन शामिल था, जिसमें नदी क्रूज पर्यटन को बढ़ावा देने, अंतर्देशीय जलमार्गों के साथ शहरी जल परिवहन नेटवर्क को आगे बढ़ाने और तटीय विकास को बढ़ावा देने पर रणनीतिक फोकस पर प्रकाश डाला गया। सरकार आईडब्‍ल्‍यूटी को परिवहन के अधिक किफायती और पर्यावरण के अनुकूल साधन के रूप में मान्यता देती है।

सम्मेलन के दूसरे दिन के पहले सत्र में, अंतर्देशीय पोत ऑपरेटरों, क्रूज ऑपरेटरों, पोत निर्माताओं, जहाज प्रबंधन कंपनियों, कार्गो मालिकों, राज्य जल परिवहन विभागों और कोच्चि जल मेट्रो सहित विभिन्न क्षेत्रों के समस्‍त हितधारक, चुनौतियों का समाधान करने तथा संभावनाओं का पता लगाने के लिए एकत्र हुए। कार्गो आवाजाही को अनुकूलित करने के उद्देश्य से की गई पहलों के साथ-साथ एनडब्ल्यू-3, एनडब्ल्यू-8 और एनडब्ल्यू-9 पर यातायात पैटर्न पर चर्चाएं केंद्रित रहीं। ये प्रयास सामुद्रिक अमृत काल विजन 2047 में उल्लिखित अंतर्देशीय जल परिवहन (आईडब्ल्यूटी) की मॉडल हिस्सेदारी को 2030 तक 5 प्रतिशत और 2047 तक 7 प्रतिशत तक बढ़ाने के लक्ष्य के अनुरूप हैं।

 सम्मेलन सत्र के दौरान हितधारक अंतर्देशीय जल परिवहन मोडल शेयर को बढ़ाने के तरीकों की रणनीति बनाते हुए

दो दिवसीय सम्मेलन का अंतिम सत्र भारत की जहाज निर्माण क्षमता पर केंद्रित था, जिसमें वैश्विक हिस्सेदारी के एक प्रतिशत से भी कम के साथ 22वें स्थान पर इसकी वर्तमान वैश्विक रैंकिंग पर प्रकाश डाला गया। चर्चाओं में कार्गो आवाजाही के लिए विदेशी बेड़े पर देश की भारी निर्भरता को रेखांकित किया गया, जिसके परिणामस्वरूप पर्याप्‍त विदेशी मुद्रा खर्च हुई। हितधारक जहाज निर्माताओं और मालिकों के सामने आने वाली वित्तपोषण और परिचालन चुनौतियों को समझने और उजागर करने के लिए संवाद में संलग्‍न हैं। वे भारतीय बेड़े के आकार और स्वामित्व को बढ़ावा देने के लिए मौजूदा नीतियों और आवश्यक सुधारों में हस्तक्षेप की भूमिका पर जोर दे रहे हैं।

मुख्य विषयों में अवसंरचना को बढ़ाना, अनुसंधान और विकास प्रयासों को प्रोत्‍साहित करना और भारतीय जहाज निर्माण में अंतरराष्ट्रीय निवेश को आकर्षित करने के लिए सामुद्रिक अमृत काल विज़न 2047 के वैश्विक प्रचार की पैरवी करना शामिल है। प्रतिभागियों को आगे और विचार करने के लिए सम्मेलन के बाद अपनी चुनौतियों, पहलों और नीतिगत सुझावों को प्रस्तुत करने के वास्‍ते प्रोत्साहित किया गया। वर्ष 2047 तक शीर्ष 5 जहाज निर्माण देशों में से एक बनने की आकांक्षाओं के साथ, भारत रणनीतिक रूप से जहाज के स्वामित्व और टन भार को जिम्मेदारी से बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिससे जहाज निर्माण क्षेत्र के भीतर महत्वपूर्ण वाणिज्यिक अवसरों के द्वार खुल रहे हैं।

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