भारत ने 46वीं अंटार्कटिक संधि परामर्श बैठक (एटीसीएम-46) और 26वीं पर्यावरण संरक्षण समिति (सीईपी-26) की सफलतापूर्वक मेजबानी की

भारत ने 20 मई से 30 मई, 2024 तक केरल के कोच्चि में 46वीं अंटार्कटिक संधि परामर्श बैठक (एटीसीएम-46) और 26वीं पर्यावरण संरक्षण समिति (सीईपी-26) की सफलतापूर्वक मेजबानी की।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री श्री किरेन रिजिजू ने अंटार्कटिक अनुसंधान स्टेशन, मैत्री-II स्थापित करने की भारत की योजना की घोषणा की।

एटीसीएम-46 का आयोजन वसुधैव कुटुम्बकम अर्थात् एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य – की विस्तृत थीम के साथ किया गया था। यह अंटार्कटिक संधि प्रणाली के साथ गहराई से प्रतिध्वनित होता है, जो शांति, वैज्ञानिक सहयोग और मानव जाति के लिए अंटार्कटिका के संरक्षण को प्रोत्साहित करता है। एटीसीएम-46 का उद्घाटन पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री माननीय श्री किरेन रिजिजू, राजदूत पवन कपूर, सचिव (पश्चिम), विदेश मंत्रालय, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज, बेंगलुरु के निदेशक डॉ शैलेश नायक ने किया। राष्ट्रीय सुरक्षा बोर्ड के पूर्व उप सलाहकार राजदूत पंकज सरन को 46वें एटीसीएम का अध्यक्ष चुना गया। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में वैज्ञानिक जी-सलाहकार डॉ विजय कुमार मेजबान देश सचिवालय के प्रमुख थे।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव और भारतीय प्रतिनिधिमंडल (मेजबान देश) के प्रमुख डॉ. एम. रविचंद्रन ने बताया कि भारत शीघ्र ही मैत्री-II की स्थापना के लिए व्यापक पर्यावरणीय मूल्यांकन प्रस्तुत करेगा। उन्होंने कहा, “भारत में 46वें एटीसीएम और 26वें सीईपी की सफल मेजबानी अंटार्कटिका के अनूठी ईको सिस्टम की रक्षा करने और वैश्विक पर्यावरणीय स्थिरता को प्रोत्साहित करने हमारे सामूहिक संकल्प को रेखांकित करती है। हम यह संवाद, सहयोग और ठोस कार्रवाई के माध्यम से सुनिश्चित कर सकते हैं कि अंटार्कटिका आने वाली पीढ़ियों के लिए शांति, विज्ञान और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक बना रहे।”

एटीसीएम-46 की स्मृति में माईस्टाम्प का विमोचन

एटीसीएम-46 और सीईपी-26 का आयोजन भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा गोवा के राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर) के माध्यम से अर्जेंटीना स्थित अंटार्कटिक संधि सचिवालय के सहयोग से किया गया। इस कार्यक्रम में पक्षों द्वारा अंटार्कटिक संधि (1959) और अंटार्कटिक संधि के लिए पर्यावरण संरक्षण पर प्रोटोकॉल (मैड्रिड प्रोटोकॉल, 1991) की फिर से पुष्टि की गई। एटीसीएम और सीईपी अंटार्कटिक मामलों के लिए महत्वपूर्ण वैश्विक मंच का आयोजन वार्षिक रूप से किया जाता है, जो पृथ्वी के सबसे प्राचीन और नाजुक ईको सिस्टम को संरक्षित करने की दिशा में सामूहिक और ठोस संवाद और कार्रवाई निर्धारित करते हैं। एक अतिरिक्त कार्य समूह ने इस वर्ष दक्षिणी श्वेत महाद्वीप के लिए पर्यटन ढांचे के विकास पर चर्चा की।

20 से 24 मई, 2024 तक आयोजित सीईपी-26 ने अनेक विषयों पर चर्चा की और अंटार्कटिका में पर्यावरण प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन में योगदान दिया। समिति ने समुद्री बर्फ परिवर्तन के प्रबंधन निहितार्थों पर भविष्य के कार्य को प्राथमिकता देने, प्रमुख गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभाव आकलन को बढ़ाने, सम्राट पेंगुइन की रक्षा करने और अंटार्कटिका में पर्यावरण निगरानी के लिए एक अंतरराष्ट्रीय ढांचा विकसित करने पर सहमति व्यक्त की। सीईपी के परामर्श के बाद पक्षों ने एएसपीए (अंटार्कटिक विशेष रूप से संरक्षित क्षेत्रों) के लिए 17 संशोधित और नई प्रबंधन योजनाओं को अपनाया और ऐतिहासिक और स्मारक स्थलों की सूची में कई संशोधन और परिवर्धन किए। एटीसीएम ने अक्षय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने तथा अत्यधिक रोगजनक एवियन इन्फ्लूएंजा के जोखिमों को कम करने के लिए जैव सुरक्षा उपायों को मजबूती से लागू करने के काम को सुनिश्चित करने के प्रयासों को भी प्रोत्साहित किया।

एटीसीएम-46 और सीईपी-26 के अवसर पर एनसीपीओआर (एमओईएस) ने कई अन्य कार्यक्रम आयोजित किए। इसने 20 मई, 2024 को कोरियाई ध्रुवीय अनुसंधान संस्थान और ध्रुवीय सहयोग अनुसंधान केंद्र, कोबे विश्वविद्यालय के साथ मिलकर ‘बदलते अंटार्कटिका और आगे की चुनौतियां’ शीर्षक से एक संगोष्ठी का आयोजन किया, जिसमें ‘अंटार्कटिका गवर्नेंस में चुनौतियां’ और ‘अंटार्कटिका भविष्य के लिए साझा जिम्मेदारियां और प्रतिबद्धताएं’ विषय पर दो पैनल चर्चाएं शामिल थीं।

स्कूली विद्यार्थियों द्वारा डिज़ाइन किया गया प्रजाति-समृद्ध अंटार्कटिका को दर्शाता एक भित्ति चित्र

भारतीय डाक के सहयोग से एटीसीएम-46 लोगो के साथ कस्टमाइज्ड माईस्टैम्प जारी किया गया।

स्कूली बच्चों द्वारा डिजाइन की गई ‘प्रजातियों से समृद्ध अंटार्कटिका’ थीम वाली एक भित्तिचित्र का अनावरण जर्मनी, एएसओसी और उसके सहयोगियों के सहयोग से किया गया, जिसका उद्देश्य युवा मन में अंटार्कटिका के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। कोच्चि, केरल के कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए एक आउटरीच प्रयास के रूप में ‘अंटार्कटिक तालमेल: कूटनीति के माध्यम से वैज्ञानिक प्रगति को बढ़ावा देना, अनुसंधान के माध्यम से सहयोग को बढ़ावा देना’ पर एक पैनल चर्चा आयोजित की गई थी। एनसीपीओआर के निदेशक डॉ. थंबन मेलोथ ने कोच्चि में उच्च स्तरीय अंटार्कटिक बैठकों की सफलतापूर्वक मेजबानी करने के लिए अपनी टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा, “अंटार्कटिका मामलों में हमारी सक्रिय और रणनीतिक भागीदारी भारत की ध्रुवीय कार्यक्रम और मेजबान के रूप में इसकी भूमिका वैश्विक साझेदारी को बढ़ावा देने और वैश्विक मंच पर पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य को आगे बढ़ाने में हमारे समर्पण को दर्शाती है।”

पक्षों ने अनेक महत्वपूर्ण अंटार्कटिक विषयों पर भी चर्चा की, जिसमें दायित्व, जैविक संभावना, सूचना का आदान-प्रदान, शिक्षा और जागरूकता, एक बहु-वर्षीय रणनीतिक कार्य योजना, सुरक्षा, निरीक्षण, विज्ञान, भविष्य की विज्ञान चुनौतियां, वैज्ञानिक सहयोग, जलवायु परिवर्तन निहितार्थ और पर्यटन प्रबंधन आदि शामिल हैं। एक महत्वपूर्ण परिणाम अंटार्कटिका में पर्यटन और गैर-सरकारी गतिविधियों को विनियमित करने के लिए एक महत्वाकांक्षी, व्यापक, लचीला और गतिशील ढांचा विकसित करने के निर्णय को अपनाना था। पक्षों ने कनाडा और बेलारूस से परामर्श स्थिति अनुरोधों पर भी चर्चा की, लेकिन कोई आम सहमति नहीं बन पाई।

भारत ने अंटार्कटिक मामलों पर वैश्विक बैठक में 56 देशों के 400 से अधिक प्रतिनिधियों की मेजबानी की, जिसमें विज्ञान, नीति, गवर्नेंस, लॉजिस्ट्रिक्स, संचालन, पर्यावरण प्रबंधन आदि सहित अंटार्कटिका के विभिन्न मामलों पर चर्चा करने के लिए राजनयिकों, वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को एक साथ लाया गया। ये बैठकें आभासी दर्शकों के साथ व्यक्तिगत उपस्थिति की थीं।

कोच्चि, केरल में एटीसीएम-46 और सीईपी-26 की झलकियां

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