वास्तु, शिल्प और निर्माण के देवता भगवान विश्वकर्मा

-17 सितंबर देव शिल्पी विश्वकर्मा जयंती पर विशेष-

भगवान विश्वकर्मा को देवशिल्पी यानी की देवताओं के वास्तुकार के रूप में पूजा जाता है। त्रिलोका या त्रिपक्षीय उन्हें त्रिलोका या त्रिपक्षीय युग का भी निर्माता माना जाता है। साथ ही विश्वकर्मा जी में अपने शक्ति से देवताओं के उड़ान रथ, महल और हथियार का भी निर्माण किया था। यहाँ तक की रावण की लंका और कृष्ण की द्वारका पुरी जगन्नाथ जी का मंदिर और ना जाने कितने शिल्पों को साकार और निर्मित किया था। ये सभी विश्वकर्मा भगवान द्वारा ही बनाया गया था। न सिर्फ स्वर्ग बल्कि उन्हें इस पूरे सृष्टि का निर्माता माना जाता है। उन्होंने सत्य युग में सोने की लंका जहाँ असुर राज रावण रहा करता था, त्रेता युग में द्वारका शहर, जहाँ श्री कृष्ण थे, द्वापर युग में हस्तिनापुर शहर का निर्माण जो पांडवों और कौरवों का राज्य था। इन सभी का निर्माण और वास्तु, शिल्प भगवान श्री विश्वकर्मा द्वारा किया गया।  विश्वकर्मा पूजा लगभग सभी दफ्तरों और कार्यालयों में मनाया जाता है, परन्तु इंजिनियर, आर्किटेक्ट, चित्रकार, मैकेनिक, वेल्डिंग दुकान वालें, या कारखानों में इसको मुख्य तौर से मनाया जाता है। इस दिन ऑफिस और कारखानों के लोग अपने कारखानों और कार्यालयों की अच्छे से साफ़-सफाई करते हैं, और विश्वकर्मा भगवान के मिट्टी की मूर्तियों को पूजा के लिए सजाते हैं। घरों में भी लोग अपने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, घर और गाडी मोटर की पूजा करते हैं। उत्तर भारत में यह पूजा बड़े उल्लास के साथ मनाई जाती है।

इस पूजा में आदि शिल्पकार और वास्तुकार “भगवान विश्वककर्मा” की पूजा की जाती है। इस दिन सभी राजमिस्त्री, बुनकर, कारीगर जो लोहे और अन्य धातुओं से वस्तु निर्माण करते है, इंजीनियर, राजमिस्त्री, मजदूर, शिल्पकार, कामगार, हार्डवेयर, इलेक्ट्रिशियन, टेक्निशियन, ड्राइवर, बढ़ई, वेल्डर, मैकेनिक, सभी औद्योगिक घराने के लोग इस पूजा को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन कारखानों, वर्कशाप की साफ़ सफाई की जाती है। गुब्बारे, रंग बिरंगे कागजों से कार्यस्थल को सजाया जाता है। औजारों की सफाई, रंगाई पुताई की जाती है।

सभी लोग सुबह नहाकर पूजा स्थल पर भगवान विश्वकर्मा की फोटो लगाते हैं। उस पर फूल माला चढ़ाते हैं। धूप, दीपक, अगरबत्ती जलाकर उनकी पूरी विधि विधान से पूजा करते हैं। सर्वप्रथम पूजा के समय यह मंत्र बोलकर भगवान विश्वकर्मा का आह्वान करते हैं -“ॐ श्री श्रीष्टिनतया सर्वसिधहया विश्वकरमाया नमो नमः मंत्र का उच्चारण पूरा कर हवन करने के बाद आरती पढ़ते है। फिर सभी को प्रसाद दिया जाता है। सभी कारीगरों को इस पूजा का इंतजार रहता है। इस दिन दुकान या फैक्ट्री में काम नही होता है। सिर्फ पूजा की जाती है। इस पूजा के अगले दिन “भगवान विश्वककर्मा” की मूर्ति स्थापित की जाती है। फिर भगवान से आशीर्वाद मांगते है और कहते है की शिल्प करते समय, कोई भवन, इमारत बनाते समय कोई दुर्घटना न हो। इस दिन श्रम की पूजा भी की जाती है। बिना श्रम के कुछ भी नया निर्माण कर पाना संभव नही है।

शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि भगवान विष्णु की नाभि- कमल से ब्रह्मा जी उपन्न हुए थे। उन्होंने सृष्टि की रचना की। उनके पुत्र धर्म के सातवें पुत्र थे भगवान विश्वककर्मा। उनको जन्म से ही वास्तुकला में महारत प्राप्त थी इसलिए मनुष्य के जीवन में सदैव विश्वकर्मा पूजा का महत्व है। यदि मनुष्य के पास शिल्प ज्ञान न हो तो वह कोई भी भवन, इमारत नही बना पायेगा । इसलिए भगवान विश्वकर्मा को “वास्तुशास्त्र का देवता ” भी कहा जाता है। इनको “प्रथम इंजीनियर”, “देवताओं का इंजीनियर” और “मशीन का देवता” भी कहा जाता है।

विष्णुपुराण में विश्वकर्मा को देवताओं का “देव बढ़ई” कहा गया है। यह पूजा करने से अनेक फायदे है। इससे व्यापार में तरक्की होती है। पूजा करने से मशीन खराब नही होती है। व्यापार में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होती है। जिस व्यक्ति के पास एक कारखाना होता है, उसके पास अनेक कारखाने हो जाते हैं।

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
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