मानव जीवन के लिए पक्षियों का जीवन अत्यावश्यक

-राष्ट्रीय पक्षी दिवस- 5 जनवरी, 2025-

 पक्षियों का हमारे जीवन में विशेष स्थान रहा है। ये पक्षी अद्भुत हैं, वे विशेष रूप से खतरे में रहने वाले एक विशाल समूह भी हैं। ये हमारे ग्रह के पर्यावरणीय स्वास्थ्य के बैरोमीटर हैं। तथ्य यह है कि अवैध पालतू व्यापार, बीमारी और आवास के नुकसान के कारण बहुत सी पक्षी प्रजातियाँ खतरे में हैं, इसका मतलब है कि पक्षियों की ज़रूरतों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाना पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है। पक्षियों ने हमेशा हमारे दिलों में आकर्षण, प्रेम और आराधना का स्थान रखा है। एक खास तरह का विस्मय होता है जिसे केवल तोतों या‌ कबूतर के झुंड को उड़ते हुए देखने पर ही महसूस किया जा सकता है। दुर्भाग्य से, अधिकांश ​पक्षी या तो लुप्तप्राय हैं या संरक्षित हैं, यह ज्यादातर पेड़ों के नुकसान या अवैध पालतू व्यापार के कारण है।

पक्षियों को अक्सर अतीत की जीवित कड़ियाँ माना जाता है, क्योंकि वे डायनासोर के विकास से सबसे करीबी रूप से जुड़े हुए हैं। ये पारिस्थितिकी तंत्र में कीस्टोन प्रजातियाँ होती हैं, जो इसके स्वास्थ्य और जीवन शक्ति के प्रतीक हैं। उदाहरण के लिए, कठफोड़वा द्वारा छोड़े गए छेद अक्सर कई अन्य जानवरों के लिए घरों के रूप में उपयोग किए जाते हैं। इसका मतलब है कि अगर कठफोड़वा के पास भोजन का स्रोत खत्म हो गया – या सही प्रकार के पेड़ खत्म हो गए – तो, उनके चोंच मारने के कौशल पर निर्भर सभी भी खत्म हो जाएँगे। राष्ट्रीय पक्षी दिवस यानी नेशनल बर्ड डे हर साल 5 जनवरी को मनाया जाता है। कहा जाता है कि पहली बार बोर्न फ्री यूएसए और एवियन वेलफेयर ने 2002 पक्षी दिवस मनाया था। साल 2023 में यह सिर्फ किसी एक देश में नहीं, बल्कि कई देशों में राष्ट्रीय पक्षी दिवस मनाया जाने लगा। आज के समय में लगभग विश्व का हर देश 5 जनवरी को राष्ट्रीय पक्षी दिवस मनाता है। राष्ट्रीय पक्षी दिवस भले ही अपेक्षाकृत नया हो, जिसकी स्थापना 2002 में हुई थी, लेकिन पक्षियों को जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, वे इनके जगत के लिए कोई नई बात नहीं है।  ‌‌‌

दुनिया में पक्षियों की 9,800 से ज्यादा प्रजातियाँ हैं, और जबकि अब आपको शहरों में गौरैया, कौवे, मैना सहित कई पक्षी नहीं देखने को मिलते हैं। इसके अलावे दुनिया भर से पक्षियों के अनेक जातियां विलुप्त हो चुकी है और कुछ विलुप्ति के कगार  पर पहुंच चुके हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि थोड़ा प्रयास और धैर्य से पक्षियों को देखने के बेहतरीन नतीजे नहीं मिलेंगे। राष्ट्रीय पक्षी दिवस पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों के लिए‌ मनाया जाता है। राष्ट्रीय पक्षी दिवस पक्षी गणना के साथ मेल खाने वाला है, जो तीन सप्ताह तक चलता है।

 तोता मैना की कहानी तो पुरानी पुरानी हो गई।……दो पंछी दो तिनके  देखो लेके चले हैं कहां, ये बनाएंगे एक आशियां…. । पिंजरे के पंछी रे तेरा दर्द न जाने कोय…! जैसे गाने से लेकर उल्लुओं की बुद्धिमत्ता और नाशपाती के पेड़ों में दुनिया के सभी तीतरों तक, पक्षी हमारी संस्कृति में हर जगह मौजूद हैं, और हमें चिंतन करने और प्रेरित होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। उड़ान महत्वाकांक्षा का एक रूपक है, लेकिन यह अभिमान और उतरने की अनिवार्यता का भी प्रतीक है। पक्षी हमें दुनिया में अपने स्थान के बारे में गंभीरता से सोचने पर मजबूर करते हैं। 

दुनिया की करीब 10,000 पक्षी प्रजातियों में से 1,480 से ज़्यादा विलुप्त होने के खतरे में हैं। 223 प्रजातियां गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं। पक्षियों की संख्या में चौंकाने वाली दर से गिरावट आ रही है। पक्षियों की कई प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं।  पक्षियों के अस्तित्व को खतरे में डालने वाले कुछ प्रमुख कारण ये हैं-जलवायु परिवर्तन,आवास विनाश, बढ़ती कृषि भूमि,वाणिज्यिक प्रयोजन,प्रदूषण,जल स्रोतों की कमी, रसायन और कीटनाशक आधारित खेती एवं अवैध शिकार सहित वायु प्रदूषण। पक्षी प्राथमिक पराग और बीज वाहकों में से हैं। यदि हम वनों की कटाई जारी रखते हैं, तो” पक्षी अपना आवास खो देंगे; जिससे प्राकृतिक बीज वितरण तंत्र रुक जाएगा। और यह बदले में, हमारे भोजन चक्र के लिए खतरा पैदा करेगा। इसके अलावा, मांसाहारी पक्षी कीटों और पतंगों के प्राकृतिक दुश्मन हैं, जिन्हें अगर नियंत्रित नहीं किया गया, तो वे न केवल खेतों में फसल को नष्ट कर देंगे, बल्कि भंडारण घरों में भी। कभी सोचा है कि हम बदले में अपना पेट कैसे भरेंगे? इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, पक्षियों के महत्व को समझें !”भारत में हाल ही में हुए एक केस स्टडी में पाया गया है कि गिद्धों की संख्या में भारी गिरावट के कारण रेबीज के मामले बढ़ रहे हैं। और सिर्फ रेबीज ही नहीं। प्रकृति के सफाईकर्मी पक्षी हमारे ग्रह को साफ रखते हैं और बदले में प्लेग, डेंगू, मलेरिया और हैजा जैसी महामारियों को फैलने से रोकते हैं। अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है। अब हमें इन प्यारे मेरे और पर्यावरण रक्षण पंछियों के बारे में निश्चित ही सोचा होगा। अब नहीं सोचेंगे तो देर हो जाएगी। इनके बारे में नहीं तो कम से कम अपने ही अच्छे दिनों को सो करके अब अपने साथ-साथ नाव के इन पंछियों के संसार को बचाने का जतन आज से अभी से अब से शुरू कर दें। वरना वह दिन दूर नहीं जब सारा जगत सारा आकाश सुना हो जाएगा। पंक्षियों का संगीत भरा कलरव  कहीं नहीं सुनाई देंगा। आपका आसमान बेजान, निर्जीव और बे आवाज कलरव रहित रह जाएगा। 

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
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