लुई ब्रेल : जिसने नेत्रहीनों के लिए शिक्षा के द्वार खोले

20 जून, 1952, पेरिस से थोड़ी दूर बसे एक गांव कूप्रे में सुबह से ही लोग जुट रहे थे। सरकारी अधिकारियों एवं नेताओं की गाड़ियों का काफिला भी गांव की ओर बढ़ा चला जा रहा था। गांव के निवासी स्त्री, पुरुष और बच्चे भी आश्चर्यचकित हो भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं। भीड़ एक कब्रिस्तान जाकर एक सभा में बदल जाती है। एक खास कब्र को सजाया गया है। एक अधिकारी ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज फ्रांस की सरकार ने ब्रेल लिपि के जनक लुई ब्रेल के सम्मान का दिन घोषित किया गया है। सभा में खुशी की लहर छा गयी और कर तल ध्वनि से गगन गुंजित हो गया। तब पूरे राजकीय सम्मान एवं प्रतिष्ठा के साथ धार्मिक संस्कारोंपरांत कब्र से शव को निकाला गया। उपस्थित जन समुदाय ने अपनी गलती स्वीकार की और धार्मिक रस्में पूर्ण कर लुई के सम्मान में राष्ट्रीय धुन बजा उन्हें दफनाया गया।

उपस्थित लोगों ने उनके महनीय मानवीय योगदान को स्वीकृति देते हुए अपने भूल के लिए प्रायश्चित किया। यह लुई ब्रेल की मृत्यु के सौ साल के बाद का एक सम्माननीय दृश्य था। नेत्रहीनों के लिए प्रकृति के अप्रतिम सौदर्य का दर्शन अछूता और रसानुभूति से परे था, क्योंकि वे न तो देखकर आनन्द उठा सकते थे और न ही पढ़कर। दृष्टिहीनों के लिए यह दुनिया अंधकारमय, नीरस और बेरंग थी। नेत्रहीन भी काव्य, कहानी, नाटक को पढ़कर आनन्द सागर में डूब सकें, ऐसा सहज सम्भव हुआ है एक विशेष लिपि में अंकित पाठ्य सामग्री के द्वारा, जिसे विश्व ब्रेल लिपि के नाम से जानता है। ब्रेल लिपि के जनक हैं फ्रांस के शिक्षाविद् लुई ब्रेल। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 2019 से 4 जनवरी को विश्व ब्रेल दिवस के रुप में मनाया जा रहा है।

लुई ब्रेल का जन्म फ्रांस के एक गांव में 4 जनवरी, 1809 को पिता साइमन रेले ब्रेल एवं माता मोनिक ब्रेल के परिवार में हुआ था। पिता के आर्थिक संसाधन सीमित थे एवं आजीविका का एकमात्र साधन उनका मोचीगिरी का ही काम था। वह चमड़े का काम करने के साथ ही फ्रांस के शाही परिवार एवं अमीरों के घोड़ों की काठी एवं जीन बनाने का काम किया करते थे। लेकिन कठोर श्रम एवं समय साध्य काम होने के बावजूद भी उनकी कमाई इतनी न थी कि छह सदस्यों के परिवार का भरण-पोषण एवं उचित देखरेख संभव हो पाती। और जैसा कि परंपरागत रोजगार करने वाले परिवारों में होता है कि अपने पारंपरिक कार्य से बच्चों को जोड़े रखने एवं सिखाने की दृष्टि से छोटी उम्र से ही अपने साथ काम पर ले जाते हैं।

साइमन रेले ने भी ऐसा ही किया और अपनी मोची की दूकान पर तीन वर्ष के बालक लुई ब्रेल को साथ ले जाने लगे। स्वभावतः बालक जिज्ञासु एवं चंचल होते हैं। दुकान पर चमड़े के काम में प्रयुक्त होने वाले लोहे के औजारों यथा चाकू, सूजा, हथौड़ी, कटर, आरी आदि से बालक संपर्क में आया। वह पिता की मदद करते हुए उनसे खेलने लगता। एक दिन पिता की अनुपस्थिति में खेलते समय सूजा उछल कर बालक की आंख में जा लगा और खून की धार फूट पड़ी। बालक को घर पहुंचाया गया और आंख साफ कर जड़ी-बूटी युक्त घरेलू औषधि का लेपन कर पट्टी बांध दी गई और यह सोचा गया कि अपने आप जल्दी ही ठीक हो जाएगी। लेकिन उचित चिकित्सा के अभाव या अभिभावकों की लापरवाही के चलते घायल संक्रमित आंख का दुष्प्रभाव दूसरे आंख पर भी पड़ने लगा। आठ वर्ष का होते-होते बालक ने अपनी दृष्टि पूरी तरह खो दी।

अब बालक के लिए सूरज के प्रकाश में कोई रंग न थे। उसके लिए दुनिया अब केवल अंधेरे का एक गोला थी। परिवार एवं समाज में वह दया एवं सहानुभूति का पात्र बन गया लेकिन उसे यह निरीह जीवन स्वीकार न था। उसका अन्तर्मन उसे पढ़ने के लिए कचोटता रहता। पर तत्कालीन समय में नेत्रहीनों की शिक्षा-दीक्षा के लिए कोई विशेष संसाधन एवं व्यवस्थाएं न थी। पेरिस में एक अंध विद्यालय अवश्य था पर वहां सामान्य परिवारों के बालकों का प्रवेश हो पाना बहुत कठिन था। बालक लुई में कुछ नया करने की लगन थी, साथ ही शिक्षा प्राप्ति का जज्बा एवं संकल्प भी। उसके निरन्तर आग्रह को स्वीकार कर पिता उसे एक परिचित पादरी के पास ले गए, जिनकी सिफारिश और मदद से लुई ब्रेल का नामांकन पेरिस के अंध विद्यालय ‘रॉयल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइंड’ में 1821 में हो गया।

तब तक नेत्रहीनों को पढ़ाने के लिए कोई विशेष लिपि व्यवहार में नहीं थी। आधे-अधूरे प्रयासों से उपलब्ध सामग्री से उक्त विद्यालय में बच्चों को इतिहास, भूगोल एवं गणित की सामान्य जानकारी दी जाती थी। एक दिन शाही सेना का एक पदाधिकारी चार्ल्स बार्बियर, जो सैनिकों के लिए रात में भी टटोलकर पढ़ सकने वाली पठन सामग्री तैयार करने में जुटा हुआ था, उक्त विद्यालय में प्रशिक्षण हेतु आया। उन्होंने एक दिन संवाद करते हुए बताया कि अपने सैनिकों को अंधेरे में भी पढ़े जा सकने वाले गुप्त संदेशों को एक खास लिपि में अंकित कर भेजता है। उस लिपि में 12 बिंदुओं को 6-6 की दो पंक्तियों पर रखा जाता है जिसे सैनिक टटोलकर पढ़ लेते हैं। लेकिन एक बहुत बड़ी कमी थी कि उसमें विराम या गणितीय चिह्नों का अंकन सम्भव न था और चार्ल्स उसे बेहतर करने के लिए कुछ शोध कर रहा था। बालक लुइ सेनानायक चार्ल्स के काम से प्रभावित हुआ और उनकी कूट लिपि को पढ़ने-समझने के लिए पादरी की मदद से चार्ल्स से भेंट की। बातचीत के बाद बालक लुई ने लिपि में कुछ संशोधन करने के सुझाव दिये। चार्ल्स बालक के सुझावों को सुन हतप्रभ था और तुरन्त ही स्वीकार कर लिया जिससे सैनिकों तक संदेश पहुंचाना अब और सरल हो गया।

चार्ल्स बार्बियर की कूट लिपि को पढ़-समझ कर बालक लुई ब्रेल नेत्रहीनों के लिए उपयोगी एक खास लिपि को विकसित करने की साधना में जुट गया। आखिर 1829 में, आठ सालों की अनथक साधना का परिणाम एक विशेष विकसित लिपि के रूप में हुआ जिसे दुनिया ब्रेल लिपि से जानती है, जिसमें 6 उभरे बिंदुओं के आधार पर 64 अक्षर, विराम एवं गणित चिह्नों सहित संगीत के नोटेशन बनाना भी सम्भव हो गया। ब्रेल लिपि विकसित हो जाने से नेत्रहीनों के लिए पढ़ना एवं मनोभावों को अभिव्यक्त करना सहज संभव हो गया था। लेकिन ब्रेल लिपि को समाज एवं सरकार द्वारा मान्यता नहीं मिली। उसे सेना द्वारा प्रयोग किए जाने वाला कूट रचित अंकन ही समझा गया। लुई ब्रेल जीवन भर ब्रेल लिपि की मान्यता हेतु संघर्ष करते रहे। साथ ही लिपि के प्रचार-प्रसार में भी सतत समर्पित रहे।

विश्व को ब्रेल लिपि के रूप में अमूल्य उपहार देने वाला यह महान व्यक्तित्व 43 वर्ष की अल्पायु में ही 6 जनवरी, 1852 को लौकिक जीवन पूर्ण कर यमलोक की अनंत की यात्रा पर प्रस्थान कर गया। लुई ब्रेल की मृत्यु के 16 वर्ष बाद 1868 में फ्रांस की सरकार ने ब्रेल लिपि को मान्यता प्रदान की। धीरे-धीरे ब्रेल लिपि सम्पूर्ण विश्व प्रचलित हो गयी। भारत में भी ब्रेल लिपि के माध्यम से नेत्रहीनों के लिए पढ़ने एवं प्रशिक्षण के लिए तमाम विद्यालय एवं प्रशिक्षण केंद्र खोले गए। 4 जनवरी, 2009 को लुई ब्रेल के 200वें जन्मदिन के अवसर पर भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी कर उनको अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। वास्तव में जीवन रहते हुए वह जिस सम्मान और प्रतिष्ठा के हकदार थे वह उनको नहीं मिला लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनके योगदान को सिर माथे लिया गया। संपूर्ण जग उनका ऋणी है और ऋणी रहेगा।

प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
प्रमोद दीक्षित मलय
शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »