धीरे-धीरे बोल कबीरा।
मन की आंखें खोल कबीरा।।
बिछड़े साथी मिल जाएंगे।
धरती बिलकुल गोल कबीरा।।
महल कुटी का भेद मिटेगा।
समता मधुरस घोल कबीरा।।
बचपन से क्यों गायब हैं अब।
कलरव खुशी किलोल कबीरा।।
शब्द कराते युद्ध-शांति, तो-
हृदय तराजू तोल कबीरा।।
परहित अपनी सांसें अर्पित।
जीवन है अनमोल कबीरा।

शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
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