मुफ्त योजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी – “क्या हम परजीवियों की एक नई श्रेणी बना रहे हैं?”

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावों से पहले राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त योजनाओं (Freebies) की घोषणा करने की प्रथा पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि इससे लोग काम करने के इच्छुक नहीं रह जाते। अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि क्या इससे देश में “परजीवियों की एक नई श्रेणी” तैयार हो रही है?

सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणियां

  1. काम करने की इच्छा पर असर – न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और ए.जी. मसीह की पीठ ने शहरी क्षेत्रों में बेघर लोगों के अधिकार पर सुनवाई के दौरान कहा कि लोगों को बिना काम किए राशन और पैसा मिल रहा है, जिससे वे काम नहीं करना चाहते।
  2. समाज की मुख्यधारा से अलगाव – अदालत ने सवाल किया, “क्या हम उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करने और देश के विकास में योगदान देने के बजाय परजीवी नहीं बना रहे?”
  3. चुनावों से पहले घोषित मुफ्त योजनाएं – न्यायमूर्ति गवई ने महाराष्ट्र की ‘लाडकी बहन’ योजना का उदाहरण दिया, जिसके तहत 21 से 65 वर्ष की महिलाओं को ₹1,500 प्रति माह दिए जाते हैं। उन्होंने कहा, “चुनावों से ठीक पहले ऐसी योजनाएं घोषित की जाती हैं, जिससे लोग काम करने से बचते हैं।”

संतुलन की जरूरत

  • पीठ ने कहा कि सरकार की नीतियां समाज के कमजोर वर्गों को सहायता प्रदान करने के लिए होनी चाहिए, लेकिन इनका संतुलन भी बनाए रखना जरूरी है।
  • अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने बताया कि केंद्र सरकार शहरी गरीबी उन्मूलन मिशन को अंतिम रूप दे रही है, जिसमें बेघर लोगों को आश्रय देने की योजना होगी। अदालत ने सरकार से इस पर समयसीमा तय करने और राज्यों से जानकारी जुटाने को कहा।

फ्री राशन पर भी सवाल

  • यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त योजनाओं पर चिंता जताई हो। दिसंबर 2024 में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा था कि 81 करोड़ लोग राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत मुफ्त या सब्सिडी वाले राशन पर निर्भर क्यों हैं?
  • प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन देने के सवाल पर अदालत ने कहा था, “आखिर कब तक मुफ्त योजनाएं दी जाएंगी? रोजगार के अवसर और कौशल विकास क्यों नहीं किए जा रहे?”

दिल्ली हाईकोर्ट का रुख

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने मुफ्त योजनाओं के खिलाफ एक पूर्व न्यायाधीश की याचिका सुनने से इनकार कर दिया।
  • न्यायमूर्ति एस.एन. ढींगरा ने अपनी याचिका में कहा कि आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और बीजेपी द्वारा दिल्ली चुनावों से पहले मुफ्त योजनाओं की घोषणाएं भ्रष्ट आचरण (Corrupt Practices) के दायरे में आती हैं और इन्हें असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए।
  • हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट जाने की सलाह दी।

राजनीतिक विवाद

  • मुफ्त योजनाओं का मुद्दा अब राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया है।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और अन्य दलों पर लोगों को मुफ्त सुविधाएं देकर वोट खरीदने का आरोप लगाया है।
  • दूसरी ओर, विपक्षी पार्टियों ने महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे उठाते हुए कहा कि टैक्सपेयर के पैसे का इस्तेमाल लोगों की ज़िंदगी आसान बनाने के लिए किया जाना गलत नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 6 हफ्ते बाद करेगा।

Source: NDTV

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