मैं उन भाग्यशाली लोगों में से एक हूं जिन्होंने महान संत देवरहा बाबा के दर्शन किए। दरअसल उस समय मेरी उम्र 9 साल की थी। मेरे माता-पिता राजस्थान के मेहंदीपुर बालाजी से लौट रहे थे। इसी बीच में वापसी में मथुरा वृंदावन घूमने के लिए हमें लेकर गए। वहां जाकर किसी से देवरहा बाबा के बारे में पता चला तो उनके दर्शन के लिए हम दोनो भाइयों को लेकर यमुना किनारे मचान बनाकर रह रहे देवरहा बाबा के दर्शन के लिए पहुंचे।
मुझे याद है कि मेरे से करीब एक साल छोटा भाई मनोज व मैं एक पुल से अपने माता-पिता का हाथ पकड़कर नीचे उतरे थे। सामने एक रेतीले मैदान में देवरहा बाबा की लकड़ी की मचान थी जिसमें बनी कुटिया में देवरहा बाबा अपने कुछ शिष्यों के साथ रहते थे। मुझे आज भी स्पष्ट तौर पर याद है मचान के नीचे थोड़ी दूरी पर करीब 40 -50 लोग पहले से ही बाबा की प्रतीक्षा में बैठे हुए थे। जबकि बाबा के कुछ सेवादार सभी भक्तों को बता रहे थे कि बाबा अभी थोड़ी देर में दर्शन देंगे। करीब आधा घंटे बाद मचान पर बनी कुटिया के भीतर से संत देवरहा बाबा निकलकर बाहर आए। एकदम दुबली पतली काया और शरीर के ऊपरी हिस्से में कोई वस्त्र नहीं थाए लंबी जटाएं, कमर में मृग की छाला पहने बाबा का दर्शन आज भी मेरे मन मस्तिष्क में बसा हुआ है। सभी भक्त देवरहा बाबा के जयकारे लगाने लगे। बाबा पूर्वी भाषा में बहुत धीरे से बोले सभी लोग बैठ जाओ और थोड़ा आगे आ जाइए।

हालांकि इससे पहले मचान के ठीक पास आने से उनके सेवादार हमें रोक रहे थे। बाबा बड़े प्यार से वहां मौजूद सभी भक्तों को निहारा। हम दोनों भाई भी बाबा को एकटक देखे जा रहे थे। बच्चे थे लेकिन संतों के दर्शन करते रहते थे और परिवार का वातावरण भी पूर्ण आध्यात्मिक था इसलिए आस्था और भक्ति की पूरी समझ थी। इसी बीच बाबा ने वहां उपस्थित लोगों को ईश्वर से मिलने के मार्ग को बताते हुए प्रवचन दिया जिसमें संस्कृत के शब्दों की बहुलता के कारण हमें कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन इतना याद है कि बाबा ने कहा था कि प्रेम से ही ईश्वर को पाया जा सकता है और जीवों पर परोपकार कर हम ईश्वर को पा सकते हैं। बाल मन में केवल इतनी ही पंक्तियां समझ आई। इसके बाद बाबा ने इशारे से सभी को बुलाना शुरू किया और पैरों से आशीर्वाद दिया। हम दोनों भाई भी अपने मम्मी-पापा के साथ मचान के नीचे पहुंचे तो बाबा ने हमारी आंखों में झांकते हुए हमें पैरों के माध्यम से आशीर्वाद दिया और कहा खूब पढ़ो।
अखबार में पढकर पता चला कि देवरहा बाबा कुछ समय बाद ही यानी 19 जून 1990 को ब्रह्मलीन हो गए। बाबा की उम्र को लेकर आज तक कोई नहीं जान पाया। लोग कहते हैं कि उनकी उम्र का कोई आकलन नहीं हो सका। वे लगभग 400 साल से अधिक आयु के बताए गए। देवरहा बाबा ने कई भविष्यवाणी की थी जिसमे राम मंदिर निर्माण की भविष्यवाणी भी शामिल थी। यह भविष्यवाणी उन्होंने 1989 फरवरी माह के प्रयागराज कुंभ में कही थी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था। बताते हैं कि इमरजेंसी के बाद का आम चुनाव इंदिरा गांधी बुरी तरह हार गई तो निराश होकर देवरहा बाबा की शरण में पहुंची। तब बाबा ने इंदिरा गांधी को अंगूठे की जगह हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया। इंदिरा गांधी ने बाबा के हाथ के इस पंजे को कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बना दिया और दो साल बाद 1980 में प्रचंड बहुमत के साथ दोबारा प्रधानमंत्री बनी।
देवरहा बाबा पर दिव्य शक्तियां और साधना थी। वे एक सिद्ध पुरुष थे। वे भगवान राम के उपासक थे। आज भी आध्यात्मिक क्षेत्र में उनका नाम बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है। देवरहा बाबा का निवास स्थान देवरिया जिले के नाथ नाडोली गांव के लार रोड पर था। बाबा की कृपा सदैव मेरे ऊपर बनी रही। ये निजि अनुभव का विषय हैं।
