भारत सरकार के पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (एमडीओएनईआर) द्वारा आयोजित राजदूतों की बैठक पूर्वोत्तर भारत को वैश्विक निवेश एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग के नए केंद्र के रूप में उभारने की दिशा में एक अहम पड़ाव साबित हुई। इस महत्वपूर्ण आयोजन में 80 से अधिक देशों के राजदूतों, उच्चायुक्तों और वरिष्ठ राजनयिक प्रतिनिधियों ने भाग लेकर क्षेत्र की असीम संभावनाओं को लेकर गहरी रुचि दिखाई।

इस भव्य आयोजन का मुख्य उद्देश्य उत्तर पूर्वी क्षेत्र (एनईआर) की प्रचुर संभावनाओं को वैश्विक मंच पर प्रदर्शित करना, द्विपक्षीय संबंधों को सशक्त बनाना और सतत विकास के लिए निवेश को आकर्षित करना था।
पूर्वोत्तर: आर्थिक और भू-राजनीतिक दृष्टि से भारत की नई शक्ति
कार्यक्रम में मुख्य भाषण देते हुए पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री श्री ज्योतिरादित्य एम. सिंधिया ने पूर्वोत्तर को भारत की विकास यात्रा की “अमूल्य संपत्ति” बताया। उन्होंने कहा कि आठों पूर्वोत्तर राज्यों में प्राकृतिक संसाधनों, सांस्कृतिक विविधता और रणनीतिक स्थिति की दृष्टि से ऐसी अनोखी विशेषताएं हैं, जो उन्हें कनेक्टिविटी, व्यापार और नवाचार का केंद्र बना सकती हैं।
उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि यह क्षेत्र भारत की “एक्ट ईस्ट नीति” के केंद्र में है और दक्षिण पूर्व एशिया के लिए प्रवेशद्वार के रूप में स्थापित हो रहा है। श्री सिंधिया ने विदेशी प्रतिनिधियों से अपील की कि वे पूर्वोत्तर में उपलब्ध विशाल संसाधनों और अनछुए अवसरों का लाभ उठाते हुए इसमें साझेदारी करें।
‘अष्टलक्ष्मी’ पूर्वोत्तर: बुनियादी ढांचे और निवेश की भूमि
राज्य मंत्री डॉ. सुकांत मजूमदार ने प्रधानमंत्री के नेतृत्व में पिछले एक दशक में क्षेत्र में हुए बुनियादी ढांचे के विस्तार पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सड़क, रेल, हवाई और जलमार्ग संपर्क में हुई ऐतिहासिक प्रगति ने पूर्वोत्तर को एक मजबूत निवेश गंतव्य में तब्दील कर दिया है।
उन्होंने यह भी दोहराया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर को भारत की “अष्टलक्ष्मी” करार देते हुए इसके तेजी से औद्योगिकीकरण की दिशा में कार्य किया है। उन्होंने निवेशकों से आग्रह किया कि वे इस क्षेत्र की असीम क्षमताओं को खोजें और भारत के विकसित राष्ट्र बनने की यात्रा में भागीदार बनें।
राजनयिकों को मिला स्पष्ट संदेश: निवेश कीजिए, विकास कीजिए
इस अवसर पर अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री पेमा खांडू ने राज्य की अद्वितीय ताकतों को उजागर करते हुए क्षेत्र की विशिष्टता को सामने रखा।
विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने अपने वीडियो संदेश में पूर्वोत्तर को भारत की विकास नीति का अगुवा बताया। उन्होंने कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट परियोजना जैसे महत्त्वपूर्ण प्रयासों का उल्लेख करते हुए पूर्वोत्तर की रणनीतिक स्थिति को दक्षिण पूर्व एशियाई बाजारों तक भारत की पहुंच का मजबूत साधन बताया।
अवसरों की बहार: आईटी से लेकर पर्यटन तक, पूर्वोत्तर है निवेश का स्वर्ग
एमडीओएनईआर के सचिव श्री चंचल कुमार ने अपने प्रस्तुतीकरण में पूर्वोत्तर में निवेश के बहुआयामी अवसरों का विवरण प्रस्तुत किया। उन्होंने आईटी, स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा, कौशल विकास, पर्यटन, हस्तशिल्प, बुनियादी ढांचे और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में अपार संभावनाओं को रेखांकित किया।
उन्होंने स्पष्ट किया कि मंत्रालय अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसियों और राजनयिक मिशनों के साथ मिलकर कार्य करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिससे क्षेत्र में रोजगार, मानव पूंजी और आधुनिक अवसंरचना का विकास सुनिश्चित हो सके।
पूर्वोत्तर: रणनीतिक और सांस्कृतिक धरोहर का संगम
विदेश मंत्रालय के सचिव (पूर्व) श्री पेरियासामी कुमारन ने इस क्षेत्र को भारत का रणनीतिक केंद्र बताते हुए कहा कि यह भूटान, नेपाल, म्यांमार, चीन और बांग्लादेश जैसी सीमावर्ती देशों के साथ जुड़ाव रखता है। उन्होंने कहा कि यह भारत-आसियान सहयोग को नई दिशा देने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
उन्होंने इस बैठक को रचनात्मक संवाद, साझेदारी और निवेश को साकार करने का एक अत्यंत प्रभावी मंच बताया।
पूर्वोत्तर निवेशक शिखर सम्मेलन की तैयारी का एक अहम पड़ाव
यह बैठक आगामी उत्तर पूर्व निवेशक शिखर सम्मेलन (23-24 मई, 2025) की पूर्व-शिखर गतिविधियों में से एक थी। इसने अंतरराष्ट्रीय साझेदारों और भारतीय हितधारकों के बीच संवाद की नींव रखी है। भाग लेने वाले प्रतिनिधियों ने असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, नगालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा द्वारा प्रस्तुत अवसरों में गहरी रुचि दिखाई।
यह आयोजन न केवल निवेश और विकास की संभावनाओं को सामने लाने वाला मंच बना, बल्कि यह साबित कर गया कि पूर्वोत्तर अब भारत के भविष्य की नींव का एक मजबूत स्तंभ है। जिस ऊर्जा, प्रतिबद्धता और सहयोग का प्रदर्शन इस बैठक में हुआ, वह भारत को वैश्विक निवेश के नक्शे पर मजबूती से स्थापित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।