भारत, जहां किशोरों की आबादी दुनिया में सबसे अधिक है, अब एक ऐसी लड़ाई का नेतृत्व कर रहा है जो वर्षों से करोड़ों लोगों की सेहत पर असर डालती आई है—एनीमिया के खिलाफ संघर्ष। यह सिर्फ एक स्वास्थ्य समस्या नहीं, बल्कि महिलाओं, बच्चों और किशोरों के पोषण और जीवन की गुणवत्ता से जुड़ी एक गहरी चुनौती है।

एनीमिया क्या है?
एनीमिया मुख्य रूप से आयरन की कमी से उत्पन्न होता है, जिसमें शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा घट जाती है और शरीर के विभिन्न अंगों तक ऑक्सीजन पहुंचने की क्षमता कम हो जाती है। फोलेट, विटामिन B12 और विटामिन A की कमी भी इसके प्रमुख पोषण संबंधी कारण हैं। भारत में यह समस्या पोषण की कमी, समय से पहले गर्भधारण, अपर्याप्त मातृ देखभाल और आयरन युक्त आहार तक सीमित पहुंच के कारण और भी गंभीर बन जाती है।

एनीमिया की स्थिति: आंकड़ों में सच्चाई
- 67.1% बच्चे और 59.1% किशोरियाँ भारत में एनीमिया से प्रभावित हैं (NFHS-5)।
- 4 में से 3 भारतीय महिलाओं के भोजन में आयरन की मात्रा अपर्याप्त होती है।
- 2019 में, दुनिया भर में 539 मिलियन गैर-गर्भवती महिलाएं और 32 मिलियन गर्भवती महिलाएं एनीमिया से ग्रस्त थीं।
लक्षण और प्रभाव
एनीमिया थकावट, चक्कर आना, सांस फूलना, हाथ-पैर ठंडे होना, और सिरदर्द जैसे लक्षणों से पहचाना जा सकता है। इसका सबसे अधिक प्रभाव शिशुओं, किशोर लड़कियों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं पर पड़ता है। बच्चों में यह संज्ञानात्मक और मोटर विकास को प्रभावित करता है, जबकि वयस्कों में कार्यक्षमता घटती है। गर्भावस्था के दौरान यह प्रसव संबंधी जटिलताओं और समय से पहले जन्म का कारण बन सकता है।
एनीमिया मुक्त भारत: एक ठोस रणनीति

भारत सरकार ने 2018 में ‘एनीमिया मुक्त भारत’ (AMB) कार्यक्रम की शुरुआत की, जो 6x6x6 रणनीति पर आधारित है:
- 6 लक्ष्य समूह:
- 6-59 महीने के बच्चे
- 5-9 वर्ष के बच्चे
- 10-19 वर्ष के किशोर लड़के और लड़कियां
- गर्भवती महिलाएं
- स्तनपान कराने वाली महिलाएं
- 15-49 वर्ष की प्रजनन आयु की महिलाएं
- 6 मुख्य गतिविधियां:
- आयरन और फोलिक एसिड का नियमित अनुपूरण
- साल में दो बार कृमि मुक्ति
- वर्ष भर चलने वाले व्यवहार परिवर्तन अभियान
- डिजिटल उपकरणों द्वारा एनीमिया की जांच और उपचार
- सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में पोषक तत्व युक्त खाद्य अनिवार्य
- गैर-पोषणीय कारणों (मलेरिया, हीमोग्लोबिनोपैथी आदि) की पहचान और इलाज
- 6 संस्थागत तंत्र:
जिसमें स्कूल, आंगनवाड़ी, स्वास्थ्य केंद्र, डिजिटल प्लेटफॉर्म, पोषण अभियान और स्कूल स्वास्थ्य कार्यक्रम शामिल हैं।
महत्वपूर्ण उपलब्धि
FY 2024-25 की दूसरी तिमाही में 15.4 करोड़ बच्चों और किशोरों को आयरन और फोलिक एसिड की खुराक दी गई। डिजिटल डिवाइसों की मदद से अब वास्तविक समय में एनीमिया की स्थिति की निगरानी और डाटा संग्रहण किया जा रहा है।
रोकथाम और इलाज
एनीमिया की रोकथाम और इलाज संभव है, बशर्ते इसकी जड़ों पर काम किया जाए:
- आयरन, फोलेट, विटामिन B12 और विटामिन A से भरपूर संतुलित आहार
- समय पर कृमि मुक्ति
- स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं से सलाह लेकर नियमित सप्लीमेंट लेना
नीतिगत हस्तक्षेप और समर्पण
हालांकि स्वास्थ्य राज्य का विषय है, लेकिन केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान की है। राष्ट्रीय आयरन प्लस पहल (NIPI) और साप्ताहिक आयरन फोलिक एसिड अनुपूरण (WIFS) जैसी योजनाएं जमीनी स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू की जा रही हैं।

निष्कर्ष: एक एनीमिया मुक्त भारत की ओर
भारत ने एनीमिया को हराने के लिए जो समर्पण और संगठन दिखाया है, वह सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में वैश्विक उदाहरण बन चुका है। ‘एनीमिया मुक्त भारत’ कार्यक्रम के तहत, सरकार ने सशक्त नीति, बहुस्तरीय रणनीति और डिजिटल नवाचारों की बदौलत लाखों लोगों तक सही पोषण और जागरूकता पहुंचाई है।
आज भारत न केवल एनीमिया को जड़ से खत्म करने की दिशा में अग्रसर है, बल्कि वह एक ऐसा मॉडल भी बन रहा है जिसे दुनिया फॉलो कर रही है। निरंतर प्रयास, जागरूक नागरिकों का सहयोग और मजबूत नीतिगत दिशा के साथ एक स्वस्थ और सक्षम भारत का सपना अब जल्द ही हकीकत बन सकता है।