कोयला मंत्रालय ने 22 अप्रैल को नई दिल्ली में “रेल-समुद्र-रेल (आरएसआर) मोड के माध्यम से सतत कोयला परिवहन के अवसरों की खोज” विषय पर एक महत्वपूर्ण हितधारक परामर्श बैठक का आयोजन किया। इस बैठक का उद्देश्य कोयला परिवहन की पारंपरिक सीमाओं को तोड़ते हुए बहुआयामी और पर्यावरण-अनुकूल लॉजिस्टिक्स तंत्र को सशक्त बनाना था।

आरएसआर: भविष्य की ओर बढ़ता एक दूरदर्शी कदम
इस अवसर पर कोयला मंत्रालय के सचिव श्री विक्रम देव दत्त ने आरएसआर मॉडल को भारत के लॉजिस्टिक्स और ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक दूरदर्शी पहल बताया। उन्होंने कहा कि रेल और तटीय शिपिंग को जोड़ने वाला यह मॉडल परिवहन लागत को घटाने के साथ-साथ कार्बन उत्सर्जन को भी कम करेगा, जिससे यह मॉडल पर्यावरण के लिए भी अत्यंत अनुकूल है।
श्री दत्त ने दक्षिणी और पश्चिमी भारत में कोयले की बढ़ती मांग को देखते हुए स्मार्ट, हरित और लचीले ट्रांसपोर्ट नेटवर्क की आवश्यकता पर विशेष बल दिया। उन्होंने मंत्रालयों, राज्य सरकारों, कोल इंडिया, पत्तन प्राधिकरणों, बिजली उत्पादक कंपनियों और लॉजिस्टिक सेवा प्रदाताओं से बेहतर समन्वय की अपील की, जिससे आरएसआर मॉडल को सफलतापूर्वक लागू किया जा सके।
हितधारकों की भागीदारी से सजी चर्चाएं
इस बैठक में रेल मंत्रालय, पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय, विद्युत मंत्रालय, राज्य सरकारें, सीआईएल, वाणिज्यिक खनिक, जेनकोस और पत्तन संचालकों सहित विभिन्न हितधारकों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। चर्चा में इंटरमॉडल कनेक्टिविटी बढ़ाने, पत्तनों पर मशीनीकृत कोयला हैंडलिंग को बढ़ावा देने, रेक की उपलब्धता में सुधार और पत्तन शुल्क के युक्तिकरण जैसे अहम सुझाव सामने आए।
2030 तक 120 मिलियन टन कोयला आरएसआर से परिवहन का लक्ष्य
कोयला मंत्रालय ने आरएसआर मोड के तहत 2026 तक 65 मिलियन टन और 2030 तक 120 मिलियन टन कोयला परिवहन का लक्ष्य रखा है। इस दिशा में रेल मंत्रालय द्वारा टेलीस्कोपिक फ्रेट सर्कुलर जैसी योजनाएं मदद करेंगी, जिससे लॉजिस्टिक्स लागत में बड़ी बचत होगी। साथ ही, रेल सागर कॉरिडोर और पत्तनों से खदानों को जोड़ने वाला मजबूत रेल नेटवर्क इस लक्ष्य को साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
समन्वित प्रयासों से साकार होगा स्थायी विकास का सपना
पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय भी समर्पित कोयला बर्थ निर्माण और शुल्क अनुकूलन में सहयोग करेगा। मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि वह अंतर-मंत्रालयी समन्वय, नीति समर्थन और आधारभूत ढांचे में निवेश के माध्यम से आरएसआर मॉडल की पूरी क्षमता को सामने लाने के लिए प्रतिबद्ध है।
नया युग: दक्षता, स्थिरता और ऊर्जा सुरक्षा की ओर
यह पहल न केवल कोयला लॉजिस्टिक्स के स्वरूप को बदलने जा रही है, बल्कि भारत की ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय प्रतिबद्धता को भी नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएगी। कोयला मंत्रालय का यह कदम निश्चित रूप से देश को एक अधिक सतत, सशक्त और हरित भविष्य की ओर ले जाएगा।