संवेदना, सच्चाई और समकालीनता का संगम
निमिष अग्रवाल एक ऐसे लेखक हैं जिनका साहित्य से नाता बचपन से ही रहा है। तीन बार स्नातकोत्तर, विभिन्न व्यवसायों में व्यस्त रहते हुए भी उन्होंने लेखन, संपादन और प्रकाशन को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाए रखा। उनके पहले उपन्यास ‘बुझाये न बुझे’ ने पाठकों के बीच एक विशेष स्थान बनाया। उनकी लेखनी में परंपरा से टकराने, वर्जनाओं को तोड़ने और सामाजिक ढकोसलों को बेनकाब करने का साहस साफ झलकता है। डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित पुस्तक हंड्रेड डेट्स (लघुकथाएं) जिसके लेखक निमिष अग्रवाल है। ‘हंड्रेड डेट्स’ कोई पारंपरिक प्रेम कहानियों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी किताब है जो इंसानी ज़िंदगी के सौ रंगों को सौ छोटे-छोटे कथाओं के माध्यम से दर्शाती है। यह संग्रह जीवन के बहुआयामी अनुभवों को लेखक की विशिष्ट दृष्टि से प्रस्तुत करता है—कभी करुणा से, कभी तीखे व्यंग्य से, और कभी तीव्र आत्मावलोकन से।
निमिष अग्रवाल लघुकथाओं के ज़रिये देह और मन की पहेलियों को पाठकों के सामने रखते हैं। वे स्पष्ट करते हैं कि जैसे भूख और प्यास जैविक आवश्यकता हैं, वैसे ही इंद्रिय सुख भी इंसानी स्वभाव का हिस्सा हैं। काम, मोह और वासना के जाल को वे न तो नकारते हैं और न ही उसका महिमामंडन करते हैं—बल्कि उसे एक यथार्थ रूप में समझने की कोशिश करते हैं।
उनकी एक धारणा स्पष्ट रूप से उभरती है—पानी, रोटी और वासना का त्रिकोणीय गणित, जिसे वश में करना आम इंसान के लिए कठिन है। यह साहसिक प्रस्तुति पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता बनती है। लेखक यह भी समझाते हैं कि हमारे दृश्यमान शरीर के भीतर एक सूक्ष्म शरीर भी होता है—जिसे हम मन कहते हैं। दोनों एक-दूसरे पर प्रभाव डालते हैं। इसी द्वंद्व से ज़िंदगी की जटिलताएँ पैदा होती हैं। संत रविदास की पंक्तियाँ ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ इस मनोवैज्ञानिक सत्य को स्थापित करने में लेखक की मदद करती हैं।

निमिष की लेखनी केवल भोग-विलास या मानसिक द्वंद्व तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वह एक दार्शनिक दृष्टिकोण भी सामने रखती है। वे अंधेरे को दूर करने के लिए आत्मा और शरीर दोनों को जलाने की बात करते हैं। “यदि बाहर अँधेरा है तो दिल को शमां की तरह जलाना होगा और भीतर अँधेरा है तो देह को मोमबत्ती की तरह गलाना होगा।”
यह पंक्ति पुस्तक की विचारशीलता को उजागर करती है और पाठक को आत्ममंथन के लिए प्रेरित करती है।
‘हंड्रेड डेट्स’ केवल रिश्तों की उलझनों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वह सामाजिक पुनर्निर्माण की आकांक्षा भी जगाती है। एक अन्य संवाद में लेखक ज़िक्र करते हैं:
“इस पुरानी बेवफ़ा दुनिया का रोना कब तलक,
आइये मिलजुल कर इक दुनिया नई पैदा करें।”
यह सोच स्पष्ट रूप से सामाजिक पुनर्विचार की मांग करती है। लेखक चाहते हैं कि हम नए सिरे से रिश्तों, सामाजिक मूल्यों और जीवन दृष्टिकोण का पुनर्निर्माण करें।
निमिष अग्रवाल की भाषा सहज, संप्रेषणीय और प्रभावशाली है। कथाएं लघु होते हुए भी अपनी गहराई में पूर्ण हैं। लेखक लघुकथा को केवल घटनाक्रम नहीं बनाते, बल्कि हर कहानी एक विचार, एक भाव, एक मनोस्थिति की प्रस्तुति है। कहीं-कहीं शायराना अंदाज़ पाठकों को भावुक भी करता है और सोचने पर मजबूर भी।
‘हंड्रेड डेट्स’ आज के समाज की वास्तविकताओं को बिना लाग-लपेट के सामने लाती है। प्रेम, दैहिक संबंध, स्त्री स्वतंत्रता, सामाजिक ढकोसले, और मानसिक संघर्ष जैसे मुद्दों को लेखक बड़ी सहजता से उठाते हैं। उनकी कहानियां न तो उपदेश देती हैं और न ही पाठक पर कोई विचार थोपती हैं—वे बस एक आइना दिखाती हैं, और उस आईने में झांकना पाठक की ज़िम्मेदारी बन जाती है।
निमिष अग्रवाल का ‘हंड्रेड डेट्स’ एक प्रयोगधर्मी कृति है। यह न केवल लघुकथा विधा को एक नया विस्तार देती है, बल्कि आज के सामाजिक, मानसिक और व्यक्तिगत यथार्थ को भी बेबाकी से प्रस्तुत करती है। प्रेम, पीड़ा, दैहिक आकांक्षाएं, सामाजिक बेड़ियां, और आत्मिक खोज—इन सभी को एक ही सूत्र में पिरोना लेखक की सबसे बड़ी उपलब्धि है। यह पुस्तक उन पाठकों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है जो लघु कथा के माध्यम से गहरे जीवन-दर्शन, सामाजिक विश्लेषण और भावनात्मक अनुभूतियों को समझना चाहते हैं। यह उम्मीद की जा सकती है कि ‘हंड्रेड डेट्स’ साहित्य के क्षेत्र में लघुकथा विधा को एक नई दिशा देने में सफल होगी।
पुस्तक: हंड्रेड डेट्स (लघुकथाएं)
लेखक: निमिष अग्रवाल
प्रकाशक: डायमंड पॉकेट बुक्स


