केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने ‘नवाचार की सुगमता’, ‘शोध की सुगमता’ और ‘विज्ञान की सुगमता’ को बढ़ाने के लिए नीतिगत सुधारों की घोषणा की

भारत में शोध के माहौल को सुव्यवस्थित करने के उद्देश्य से एक प्रमुख नीतिगत बदलाव में, केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार); पृथ्वी विज्ञान और प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने रविवार को “नवाचार की सुगमता” और “शोध की सुगमता” को बढ़ाने के लिए नीतिगत सुधारों की एक श्रृंखला की घोषणा की। इसमें देश भर के नवोन्मेषकों, शोधकर्ताओं, विद्वानों, वैज्ञानिकों और संस्थानों को लंबे समय से प्रतीक्षित राहत मिलेगी।

राष्ट्रीय राजधानी में राष्ट्रीय मीडिया केंद्र में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में डॉ. जितेंद्र सिंह ने उन निर्णयों के बारे में बताया, जो शैक्षणिक और शोध संस्थानों को उनके दिन-प्रतिदिन के कामकाज में सबसे अधिक आने वाली बाधाओं में से कई को हटाने में सक्षम बनाएंगे। विशेष रूप से खरीद में देरी और वित्तीय आधार के आसपास। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत सहयोग और समर्थन के बिना ऐसे अहम निर्णय लेना संभव नहीं हो सकते थे।

यह घोषणा प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय के नेतृत्व में व्यापक परामर्श के बाद की गई है। इसमें देश भर के 13 आईआईटी और कई शोध निकायों से जानकारी ली गई है।

घोषित किए गए सबसे महत्वपूर्ण निर्णयों में से एक संस्थागत प्रमुखों को खरीद शक्तिया देना है। वैज्ञानिक संगठनों के निदेशकों और विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को अब विशेष शोध उपकरणों और सामग्रियों के लिए गैर-जीईएम (सरकारी ई-मार्केटप्लेस) खरीद करने का अधिकार दिया जाएगा – यह वर्त्तमान नियमों से हटकर है। इसके अनुसार उपयुक्त वस्तुएं उपलब्ध न होने पर भी जीईएम खरीद अनिवार्य थी।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, “हमने लालफीताशाही को खत्म करने की कोशिश की है।” “यह एक ऐसा कदम है जो इस देश के विज्ञान प्रमुखों पर भरोसा करता है। मोदी सरकार का संदेश स्पष्ट है- हम आप पर भरोसा करते हैं, हम आपको महत्व देते हैं और हम आपके लिए प्रतिबद्ध हैं।”

सरकार ने सामान्य वित्तीय नियमों (जीएफआर) के अंतर्गत प्रमुख वित्तीय सीमाओं को भी संशोधित किया है। प्रत्यक्ष खरीद की सीमा को ₹1 लाख से बढ़ाकर ₹2 लाख कर दिया गया है, जबकि विभागीय समितियों के माध्यम से खरीद की सीमा को ₹1 से 10 लाख से बढ़ाकर ₹2 से 25 लाख कर दिया गया है। इसी तरह सीमित निविदा पूछताछ और विज्ञापित निविदाओं की सीमा को ₹50 लाख से बढ़ाकर ₹1 करोड़ कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त संस्थानों के प्रमुख अब 200 करोड़ रुपये तक की वैश्विक निविदा पूछताछ (जीटीई) को मंजूरी दे सकते हैं – पहले यह अधिकार केवल केंद्रीय अधिकारियों के लिए आरक्षित था।

नई नीतियाँ शोध विद्वानों और संकाय की लंबे समय से चली आ रही शिकायतों का जवाब हैं, जिन्हें अक्सर छूट की धीमी प्रक्रियाओं और बोझिल खरीद नियमों के कारण देरी का सामना करना पड़ता था। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की एक हालिया रिपोर्ट, पीएसए के कार्यालय की एक प्रस्तुति के साथ में बताया था कि कैसे मूल रूप से पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाए गए नियम अनजाने में वैज्ञानिक प्रगति में बाधा बन रहे थे।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने स्पष्ट किया कि ये सुधार अधिक लचीलापन प्रदान करते हैं, लेकिन वे विश्वास और जवाबदेही की नींव पर बने हैं। उन्होंने कहा, “इस स्वायत्तता के साथ एक बड़ी जिम्मेदारी भी आती है। हम यह सुनिश्चित करने के लिए विज्ञान समुदाय की अखंडता पर भरोसा कर रहे हैं कि इस लचीलेपन का विवेकपूर्ण तरीके से उपयोग किया जाए।”

इस कदम को भारत को एक नवाचार-संचालित अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करने के व्यापक राष्ट्रीय प्रयास के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि अंतरिक्ष और परमाणु क्षेत्रों में इसी तरह के उदारीकरण ने मजबूत परिणाम दिए हैं। “हमने अंतरिक्ष क्षेत्र को खोला और आज हम 8 बिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था को देख रहे हैं, जो पाँच गुना बढ़ने के लिए तैयार है। इन सुधारों का उद्देश्य आर एंड डी  इकोसिस्टम में उस सफलता को दोहराना है।”

उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के साथ इन सुधारों के संरेखण को भी रेखांकित किया, जो अंतर्विषयक लचीलेपन और छात्र-नेतृत्व वाले शैक्षणिक ट्रजेक्टरी को प्रोत्साहित करता है। उन्होंने कहा, “अगर हम छात्रों को अपने सीखने के रास्ते चुनने की अनुमति दे रहे हैं, तो हमें उस महत्वाकांक्षा का समर्थन करने के लिए अनुसंधान इकोसिस्टम को भी सक्षम करना चाहिए।”

नीतिगत परिवर्तनों से अनुसंधान परियोजनाओं में देरी को बहुत कम करने, उच्च-स्तरीय उपकरणों तक पहुँच में सुधार करने और युवा स्कॉलर्स, स्टार्ट-अप और इनोवेटर्स को प्रेरित करने की उम्मीद है, जो अक्सर वर्तमान बाधाओं के साथ अपनी निराशा व्यक्त करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लेते थे।

मोदी सरकार के 11 साल पूरे होने पर, इस घोषणा को विज्ञान, नवाचार और युवा-नेतृत्व वाले विकास पर केन्द्रित करने के रूप में देखा जा रहा है – मुख्य विषय जो डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि “भारत की भविष्य की वैश्विक भूमिका के लिए अभिन्न अंग हैं।”

यह प्रेस कॉन्फ्रेंस जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. राजेश एस. गोखले, केंद्र सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. ए. के. सूद और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अतिरिक्त सचिव सुनील कुमार की उपस्थिति में हुआ। इसमें संबंधित विभागों के वैज्ञानिकों और वरिष्ठ अधिकारियों भी शमिल हुए।

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