पृथ्वी केवल हमारी नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की धरोहर है
वाराणसी, सोयेपुर। पर्यावरण संरक्षण की बढ़ती वैश्विक चुनौतियों और जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए डॉ. घनश्याम सिंह महाविद्यालय, सोयेपुर में भूगोल विभाग द्वारा “ओजोन परत, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण – 21वीं सदी की आवश्यकता” विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का सफल आयोजन किया गया। इस कार्यशाला का उद्देश्य विद्यार्थियों, शोधार्थियों और शिक्षकों को पर्यावरणीय समस्याओं और उनके समाधान के प्रति जागरूक करना था।
कार्यशाला का शुभारंभ माँ सरस्वती और महाविद्यालय के प्रेरणापुंज स्व. डॉ. घनश्याम सिंह तैलचित्र पर पुष्पार्चन एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ डॉ. विपुल कुमार शुक्ला के वैदिक मंगलाचरण से हुआ । अतिथियों का स्वागत करते हुए महाविद्यालय के प्रबंधक नागेश्वर सिंह ने अपने स्वागत वक्तव्य में कहा कि वर्तमान समय में पर्यावरण को बचाना हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर हम आज इस दिशा में उचित कदम नहीं उठाते हैं तो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करना कठिन होगा।

विषय प्रवर्तन करते हुए कार्यशाला के संयोजक डॉ.आनंद सिंह ने संक्षिप्त परिचय एवं विषयवस्तु को स्थापित कर इस तरह के आयोजनों की आवश्यकता एवं महत्व पर प्रकाश डालते कहा कि 21वीं सदी में पर्यावरण संरक्षण केवल विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता है। आज की यह कार्यशाला नए विचारों, व्यवहारिक समाधानों और सामूहिक संकल्पों को जन्म देगी। हम सब मिलकर यह प्रण लें कि “पृथ्वी केवल हमारी नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की धरोहर है”।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो.पृथ्वीश नाग (पर्यावरण वैज्ञानिक) ने ओजोन परत के महत्व और इसके क्षरण के कारणों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे कुछ मानवीय गतिविधियों से निकलने वाली गैसें ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रही हैं, जिससे धरती पर पराबैंगनी किरणों का खतरा बढ़ रहा है। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों, जैसे कि बढ़ता तापमान, अनियमित वर्षा और प्राकृतिक आपदाओं पर भी चिंता व्यक्त की।साथ ही उनका ध्यान नकारत्मक प्रभाव की अपेक्षा सकारात्मक स्वरूप ग्रहण करने पर रहा।उनका सम्पूर्ण ध्यान जलवायु परिवर्तन से होने वाले लाभ पर था।

सारस्वत अतिथि प्रो. ए. एस.रघुवंशी ने ओज़ोन क्षरण एवं जलवायु परिवर्तन की प्रतिपूर्ति हेतु उपाय सुझाये। और साथ ही यह भी कहा कि अपने प्रयोगों द्वारा प्राप्त असंभावित परिणामों को अनदेखा नहीं करना चाहिए । प्रो.ए. आर. सिद्दकी ने पर्यावरण संरक्षण के लिए साहित्य,समाज और भौगोलिक अध्ययन को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने स्थानीय स्तर पर पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए वेदों और उपनिषदों की सार्वभौमिकता के सकारात्मक पक्षों को पर्यावरण के संदर्भ में उजागर करते हुए आधुनिक समय में उनकी उपयोगिता और प्रभाव पर अभिनव विचार प्रस्तुत किये।
प्रो.अंजू सिंह ने सनातन परंपरा के संवाहक वेद और उपनिषदों से सन्दर्भ ग्रहण करते हुए पर्यावरण संरक्षण पर सविस्तार चर्चा की उन्होने हमारी परंपरा में नीम और पीपल के वृक्ष का महत्व बताते हुए हमारे पर्यावरण और जीवन मे उसकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला। साथ ही पर्यावरण संरक्षण के बेहतर उपाय हेतु उंन्होने पेड़ लगाने और ऊर्जा के गैर-परंपरागत स्रोतों का इस्तेमाल करने की अपील की।

विशिष्ट वक्ता प्रो. तारकेश्वर सिंह ने पर्यावरण संरक्षण के व्यावहारिक उपायों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि हमें अपनी दैनिक आदतों में बदलाव लाना होगा, जैसे प्लास्टिक का उपयोग कम करना। साथ ही उन्होंने ओजोन क्षरण से होने वाले असाध्य रोगों के विषय में छात्रों को अवगत कराया और उनसे अपील की कि वे सिर्फ ज्ञान अर्जित न करें, बल्कि उसे अपने जीवन में उतारकर समाज में बदलाव के वाहक बनें।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो. हौशिला प्रसाद ने ओजोन क्षरण की प्रतिपूर्ति हेतु समय-समय पर समाज को जागरूक करने हेतु होने वाले कार्यक्रमों को बढ़ावा देने साथ ही उनमें होने वाली चर्चाओं के लाभ पर अपना विचार प्रस्तुत किया। विज्ञान के व्यवहारिक ज्ञान को तार्किक और धार्मिक संयोजन के द्वारा पर्यावरणीय अध्ययन की सारगर्भिता को विद्यार्थियों,शोधार्थियों एवं अध्यापकों के मध्य सहज रूप में स्थापित किया।

