20 अक्टूबर दीपावली पर विशेष
कार्तिक अमावस्या के दिन सुख समृद्धि का पर्व दीपावली मनाया जाता है। इसकी तैयारी एक पखवाड़े पूर्व से शुरू हो जाती है। दीपावली पूरे पांच दिन चलती है जो धनतेरस से प्रारंभ होती है और भाई दूज के साथ समाप्त होती है। यह हिन्दुओं का मुख्य त्यौहार है इसको अब सभी धर्म के लोग मनाने लगे है। इसलिये इसको राष्ट्रीय पर्व की भी संज्ञा दी जाती है। दीवाली के पूर्व घर की साफ सफाई, रंग रोगन कर उसे झकाझक कर आकर्षक रूप दिया जाता है।
इस दिन नये कपड़े, पटाखे, मिठाईयां, लाई, बताशे की खरीदारी कर लक्ष्मी पूजा की तैयारी की जाती है। फिर दीवाली के दिन शाम होते ही चारो तरफ दीप की रौशनी अमावस्या की काली रात्रि को चीरती हुई जगमगा देती है। दीवाली पर्व का संबंध कई पौराणिक गाथाओं से भी जुड़ा हुआ है। लंकापति रावण को मारकर राम चौदह वर्षों के वनवास के बाद जब अयोध्या पहुंचते है तब अयोध्या वासियो ने उनका दीप जलाकर स्वागत किया था! इसी दिन राजा बलि ने जब लक्ष्मीजी को बंदी बना लिया था तो, भगवान विष्णु ने वामन का रूप धारण कर उन्हें छुड़वाया था!

दीपावली के एक दिन पूर्व नरकासुर भी मारा गया था! इसी दिन भारत के तीन महान विभूतियों महावीर स्वामी, स्वामी दयानंद सरस्वती और स्वामी रामतीर्थ ने अपने शरीर का त्याग किया। इन तीनों महानुभाव ने मनुष्यों को ज्ञान का प्रकाश दिया! स्वामी रामतीर्थ का जन्म भी इसी दिन हुआ था! स्वतंत्रता की अलाव जगाने वाली महारानी लक्ष्मी बाई ने अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते दीपावली के दिन ही अपने प्राणों की आहूति दे दी थी! वहीं दीपावली कार्तिक अमावस्या के दिन आदि शंकराचार्य के निर्जीव शरीर पर पुनः प्राणों का संचार होने के कारण हिन्दुओं ने इस खुशी में दीपोत्सव मनाकर अपनी भावनाओं का प्रदर्शन किया! भूदान आंदोलन के महान संत विनोवा भावे का निधन भी दीपावली के दिन हुआ था।
भारत के ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों में अनेकता में एकता के लिये दीपावली पर्व का बड़ा महत्त्व है। दीपावली सुख समृद्धि, रिद्धि-सिद्धि-बुद्धि का प्रतीक समझा जाता है। इसके दूसरे दिन अन्नकूट (गोवर्धन पूजा) का पर्व मनाया जाता है। लक्ष्मी को वैभव और धन की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।
“लक्ष्यति इति लक्ष्मी” अर्थात लक्ष्मी वह है, जो स्वयं को लक्षित करती है। “लक्ष्मी सम्पत्ति -शौभ्यो” लक्ष्मी शोभा, संपत्ति प्रदायिनी है। लक्ष्मी वह शक्ति है जो हमारी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। ये परिश्रमी व कर्मठ व्यक्ति को ही प्राप्त होती है आलसी को नहीं! जो एकाग्रचित हो अपने कर्म में लगा रहता है, लक्ष्मी उसी पर प्रसन्न रहती है। आलसी लोगों को लक्ष्मी वरदान नहीं शाप देती है, चाहे वह लक्ष्मी की नित्य प्रार्थना ही क्यों न करते हों!

