शहर की एक उपेक्षित धरोहर: खाकी बाबा मंदिर

बिलासपुर: शहर के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक भूगोल में कतियापारा, उदई चौक के पास स्थित अरपा नदी का तट हमेशा से धार्मिक और सामाजिक आस्थाओं का केंद्र रहा है। इसी तट पर वर्षों पहले बड़े मनोयोग से ठाकुर परिवार द्वारा निर्मित कराया गया खाकी बाबा काली मंदिर आज अपनी दुर्दशा पर स्वयं आंसू बहाता हुआ प्रतीत होता है। डोंगा घाट मंदिर के बगल गली के आगे अरपा तट कालीघाट के पास स्थित इस मंदिर में कभी दूर-दूर से श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए आते थे, लेकिन आज यह प्राचीन धरोहर जीर्ण-उपेक्षित अवस्था में खड़ी है।

इतिहास से जुड़ी आस्था, वर्तमान में उपेक्षा

स्थानीय लोगों के मुताबिक, यह मंदिर करीब 90 वर्ष पूर्व ठाकुर परिवार के स्व विजय सिंह और स्व राम नारायण सिंह द्वारा अत्यंत श्रद्धा और समर्पण के साथ बनवाया गया था। निर्माण के तत्काल बाद ही उन्होंने इसे आमजन की सेवा और धार्मिक कार्यों के लिए समर्पित कर दिया था।उस समय यह मंदिर अपने आध्यात्मिक प्रभाव और पूजा-पाठ की नियमित परंपरा के कारण विशेष पहचान रखता था। लेकिन आज स्थिति इसके ठीक विपरीत है।

वर्तमान में मंदिर की स्थिति जीर्णशीर्ण

पूर्व में मंदिर यह काफी विशाल आकार का होता था, अरपा नदी के कटाव के कारण बहुत सारे हिस्से जमीन्दोज होकर नदी में समा चुके हैं। जो आज देखे जा सकते हैं। बगल का कालीघाट भी बेजाकब्जे के कारण दिखाई नहीं देता। मंदिर भवन की दीवारें टूट रही हैं, छत झुकती दिखती है और आसपास की साफ-सफाई भी नदारद है। धार्मिक गतिविधियाँ यदाकदा होती हैं जिससे स्थानीय श्रद्धालुओं में गहरी निराशा व्याप्त है। वैसे मंदिर का गर्भगृह अभी भी अच्छी स्थिति में बना हुआ है। यहाँ काली माता की आदम कद विशाल मूर्ति स्थापित है, जो काफी अच्छी स्थिति में है। वहीं एक शिवलिंग भी स्थापित है। गर्भगृह के बाहर मंडप कक्ष में बजरंगबली की तीन साढे तीन फीट के मूर्ति स्थापित है, जहां स्थानीय निवासी घर पूजा करते हैं। स्थानीय निवासियों का दुख- “हमारी धरोहर खोती जा रही है”।आज जब बिलासपुर और छत्तीसगढ़ अपनी सांस्कृतिक पहचान को संजोने की बात करते हैं, तब खाकी बाबा मंदिर की यह उपेक्षित छवि गंभीर प्रश्न खड़े करती है। यह सिर्फ एक भवन नहीं बल्कि आस्था का केंद्र, इतिहास की विरासत और सामाजिक एकता का प्रतीक रहा है।

स्थानीय निवासियों का मत

डोगाघाट क्षेत्र के लोगों का कहना है कि इस मंदिर से उनकी बचपन की यादें, धार्मिक विश्वास और स्थानीय संस्कृति गहराई से जुड़ी हैं। प्रतिवर्ष यहां त्योहारों, विशेष रूप से काली पूजा और नवरात्रि में बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होते थे।लेकिन उपेक्षा की वजह से अब यह जगह अछूती, सुनसान और डरावनी होती जा रही है। कई श्रद्धालु कहते हैं कि-“हमने अपने जीवन में इस मंदिर को हमेशा भरे-पूरे और जीवंत देखा है। आज इसकी यह अवस्था देखकर बहुत दुःख होता है।”

असामाजिक तत्वों का अतिक्रमण-एक गंभीर चिंता

स्थानीय लोगों ने यह भी बताया कि मंदिर की बदहाल स्थिति का फायदा उठाकर कुछ असामाजिक तत्वों ने यहां डेरा बना लिया था। उनकी उपस्थिति न सिर्फ धार्मिक माहौल को दूषित कर रही थी बल्कि मंदिर के पवित्रता-स्थल को भी अपवित्र कर रही थी। इससे आसपास के परिवार खुद को असुरक्षित महसूस करते, तभी मंदिर में श्रद्धालुओं का आना भी कम हो गया।वर्तमान में लोगों के विरोध पर असामाजिक तत्वों की गतिविधि कुछ कम है।

शासन और प्रशासन की ओर उम्मीद भरी नजरें

क्षेत्र के लोगों ने शासन-प्रशासन से तुरंत ध्यान देने की मांग की है। वे चाहते हैं कि-मंदिर का जिर्णोद्धार किया जाए,नियमित रूप से पूजा-पाठ और साफ-सफाई सुनिश्चित की जाए।

धरोहर बचाने जन सामान्य की अपील

अरपा तट पर स्थित इस प्राचीन धर्मस्थल को पर्यटन और धार्मिक धरोहर के रूप में विकसित किया जाए।अनेक स्थानीय निवासियों का कहना है कि यदि प्रशासन थोड़ी भी पहल करे तो यह मंदिर फिर से अपना पुराना वैभव प्राप्त कर सकता है।जनता की अपील है “हमारी सांस्कृतिक विरासत को बचाइए”। समाजसेवियों, युवाओं और बुजुर्गों का सामूहिक मानना है कि खाकी बाबा मंदिर केवल एक पूजा-स्थल नहीं, बल्कि बिलासपुर की सांस्कृतिक विरासत है।

समय आ गया धरोहर को संजोने का

खाकी बाबा मंदिर अरपा नदी तट के धार्मिक इतिहास का जीवंत प्रतीक रहा है। अब समय आ गया है कि शासन, प्रशासन, स्थानीय प्रतिनिधि और समाज मिलकर इसकी गरिमा को फिर से स्थापित करें।आज जब बिलासपुर और छत्तीसगढ़ अपनी सांस्कृतिक पहचान को संजोने की बात करते हैं, तब खाकी बाबा मंदिर की यह उपेक्षित छवि गंभीर प्रश्न खड़े करती है। यह सिर्फ एक भवन नहीं बल्कि आस्था का केंद्र, इतिहास की विरासत और सामाजिक एकता का प्रतीक रहा है।जरूरत है कि हम सब मिलकर इसकी ओर ध्यान दें, ताकि यह धरोहर भविष्य की पीढ़ियों के लिए गर्व का कारण बन सके। यह मंदिर अरपा नदी तट के धार्मिक इतिहास का जीवंत प्रतीक रहा है। अब समय आ गया है कि शासन, प्रशासन, स्थानीय प्रतिनिधि और समाज मिलकर इसकी गरिमा को फिर से स्थापित करें।

मंदिर के समीप रहने वाले कुमार सिंह ठाकुर का कहना है कि खाकी बाबा मंदिर काफी पहले ठाकुर परिवार द्वारा बनाया गया था मेरी उम्र आज छियासी वर्ष है फिर भी मुझे याद नहीं है कि यह और कितने वर्षों पूर्व बना था, लेकिन अपने समय में यह मंदिर काफी भव्य और आकर्षक हुआ करता था। अब देखरेख और प्रशासन की उपेक्षा के कारण यह मंदिर जर्जर अवस्था में पहुंच गया है। हम सभी चाहते हैं कि इस मंदिर का जीर्णोद्धार हो और मंदिर का पुराना स्वरूप फिर से मिल सके शासन और जन सहयोग मिले तो इस प्राचीन धरोहर की सुरक्षा हो सकेगी।

खाकी बाबा मंदिर परिसर के ठीक सामने निवासरत 60 वर्षीय महेश साहू का कहना है कि यह मंदिर हमारे शहर की आस्था केंद्र हुआ करता था। तब यहाँ नियमित पूजा और भजन कीर्तन के साथ लोगों आना-जाना लगा रहता था, जो अब दिखाई नहीं देता। उन्होंने बताया कि कई वर्ष पूर्व ये मंदिर अपने काफी बड़े क्षेत्र में स्थापित था।उपेक्षा और देखरख के अभाव में यह मंदिर धीरे-धीरे जिर्ण हो चुका है। कुछ वर्ष पूर्व मंदिर के ही एक गिरे हुए हिस्सों के अवशेष नदी में गिरे दिखाई देते हैं। बहुत ही सुंदर आकर्षक राधा कृष्ण की मूर्ति जो मंदिर में स्थापित थी वह नदी अंदर से मिली थी अब उसे उठाकर सुरक्षित रख लिया गया है। इनका कहना है कि मंदिर का जीर्णोद्धार हर हाल में होना चाहिए। शासन से मांग है कि इस प्राचीन धरोहर को सुरक्षित करें।

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
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