राष्ट्रीय अनुसंधान और विकास एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए उद्योग और शिक्षा जगत के साथ साझेदारी महत्वपूर्ण: डॉ. जितेंद्र सिंह

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि यदि भारत वैश्विक अनुसंधान और नवाचार केंद्र के रूप में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है, तो उद्योग, शिक्षा संस्थानों और सरकार के बीच सहयोग को अनिवार्य रूप से प्राथमिकता देनी होगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि तेजी से विकसित हो रहे वैश्विक अनुसंधान परिदृश्य में भारत के लिए यह विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता है।

राष्ट्रीय अनुसंधान और विकास एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए उद्योग और शिक्षा जगत के साथ साझेदारी महत्वपूर्ण: डॉ. जितेंद्र सिंह

वे उद्योग-अकादमिक भागीदारी 2025 पर आयोजित वैश्विक शिखर सम्मेलन में बोल रहे थे, जिसका विषय था: अनुसंधान एवं विकास के एक महाशक्ति के रूप में भारत के उदय को गति देना: साझेदारियां बनाना, उत्कृष्टता को बढ़ावा देना। डॉ. सिंह ने रेखांकित किया कि भारत की विज्ञान, प्रौद्योगिकी और रणनीतिक क्षेत्रों में विकास आकांक्षाएं तभी मजबूत हो सकती हैं, जब संयुक्त दायित्वों पर आधारित साझा इकोसिस्टम तैयार किया जाए।

अनुसंधान नीति में परिवर्तन और निजी संस्थानों की बढ़ती भूमिका

डॉ. सिंह ने भारत की अनुसंधान नीति में आए परिवर्तनों का उल्लेख करते हुए बताया कि रणनीतिक क्षेत्रों में निजी भागीदारी को बढ़ाना सरकार की प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा अनुसंधान पारंपरिक रूप से सरकारी नियंत्रण में रहे, लेकिन हाल के निर्णय निजी क्षेत्र की क्षमताओं पर बढ़ते भरोसे का संकेत हैं। यह परिवर्तन न केवल अनुसंधान के नए अवसरों को जन्म देगा, बल्कि नवाचार-आधारित विकास को भी गति प्रदान करेगा।

उन्होंने कहा कि भारत को उन अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से सीखने की आवश्यकता है, जिनका अनुसंधान ढांचा गैर-सरकारी निवेश से संचालित होता है। इस संदर्भ में सरकार की भूमिका धीरे-धीरे सुविधाकर्ता के रूप में परिवर्तित हो रही है, जहां अनुसंधान का नेतृत्व उद्योग, अकादमिक जगत और स्टार्टअप मिलकर करेंगे।

राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन और नवाचार को प्रोत्साहन

अपने संबोधन में डॉ. सिंह ने राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन और हाल ही में घोषित अनुसंधान निधि तंत्र को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि ये पहल वैज्ञानिक अनुसंधान में निजी निवेश को प्रोत्साहन देंगी। उन्होंने बताया कि सरकार का लक्ष्य सिर्फ शोध परियोजनाओं का समर्थन करना नहीं, बल्कि दीर्घकालिक शोध संबंध स्थापित करना है, जिससे स्टार्टअप्स और उद्योग शैक्षणिक अनुसंधान को व्यावहारिक अनुप्रयोगों में बदल सकें।

उभरते शहर और नए शोधकर्ता भारत के नवाचार के केंद्र

डॉ. सिंह ने कहा कि टियर-2 और टियर-3 शहरों के युवा अब भारत की नवाचार यात्रा के सक्रिय भागीदार हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म तक आसान पहुँच और सूचना उपलब्धता ने उन्हें वैश्विक स्तर के अनुसंधान में भागीदारी के लिए सक्षम बनाया है। इस संदर्भ में उन्होंने यह भी बताया कि घरेलू पेटेंट दाखिल करने वाले युवा शोधकर्ताओं और उद्यमियों की संख्या में वृद्धि भारत के नवाचार आधार को सुदृढ़ कर रही है।

संरचित सहयोग की दिशा में कदम

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इनस्पेस और जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में मौजूद ऐसे संस्थागत प्लेटफॉर्म साझेदारी को संरचित, पारदर्शी और पारस्परिक लाभकारी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इससे अकादमिक संस्थानों द्वारा किए गए अनुसंधान को सीधे औद्योगिक समाधान में बदला जा सकेगा। इस तरह के इंटरफेस सुनिश्चित करेंगे कि वैज्ञानिक शोध केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित न रहे, बल्कि समाज और बाजार की वास्तविक जरूरतों को पूरा करे।

सीआईआई उद्योग-अकादमिक भागीदारी संग्रह और प्रदर्शनी

कार्यक्रम के दौरान डॉ. सिंह ने सीआईआई उद्योग-अकादमिक भागीदारी संग्रह 2025 का विमोचन किया। इसके बाद उन्होंने स्टार्टअप्स, अनुसंधान संस्थानों और विभिन्न शैक्षणिक निकायों द्वारा विकसित उत्पादों तथा नवीन तकनीकों की प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया। इस प्रदर्शनी में अभिनव समाधान, अनुसंधान उत्पाद और प्रायोगिक तकनीकें प्रदर्शित हुईं, जो शिक्षा और उद्योग के बीच उभरती साझेदारी की दिशा को मजबूत करती हैं।

दीर्घकालिक साझेदारी ही भविष्य की नींव

अपने उद्बोधन के अंत में डॉ. सिंह ने कहा कि भारत की वैज्ञानिक उन्नति का भविष्य अनुसंधान संस्थानों, उद्योग, स्टार्टअप और सरकार के बीच दीर्घकालिक साझेदारियों पर निर्भर करेगा। उभरती प्रौद्योगिकियों, नवाचार और रणनीतिक स्वायत्तता के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए ऐसे सहयोग आवश्यक हैं। उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया कि भारत को अपनी अनुसंधान क्षमता को व्यापक बनाना होगा, सहयोग को संस्थागत रूप देना होगा और अनुसंधान के परिणामों का सामूहिक स्वामित्व बढ़ाना होगा।

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