पाठकों आपको नाम पढ़कर कुछ तो अजीब मन में ख्याल आ रहा होगा कि विषय ऐसा क्यों लिखा गया ? विषय को ऐसा नाम देने की सबसे खास वजह है कि हमें बाहर-भीतर, आसपास, सभी जगह नजर दौड़ानी होगी न केवल प्राकृतिक पर्यावरण की ओर अपितु अंतर्मन के आँकलन की ओर भी ! जितना पॉल्यूशन हमारे चारों तरफ़ प्रकृति में मानवीय विकास के साइड इफेक्ट के रूप में दिखाई दे रहा है उससे कहीं अधिक मानव मन के भीतर घर कर चुका है आंतरिक और बाह्य दोनों ही रूपों में घातक बनता जा रहा है। बाहर जहरीली गैसों से वायुमंडल का विनाश हमें शारीरिक क्षति पहुँचाता है, सर्दी,खाँसी,ज्वर,साँस की बीमारी के साथ-साथ नई-नई बीमारियाँ उत्पन्न करता जा रहा है। कई बीमारियाँ तो लाइलाज हैं जिनकी रोगनाशक दवाएँ बनते-बनते न जाने कितने वर्ष लगेंगे। निरंतर इसके कुप्रभाव हमारे जीवन को अत्यधिक प्रभावित कर रहे हैं। दिन-प्रतिदिन इसका खतरा मानव जीवन पर कहर बन रहा है । नव पीढ़ी का खान-पान इतना बदल गया है जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता शून्य के बराबर हो गई है। आजकल भागदौड़ भरी ज़िंदगी में ज़रा से खाँसी-जुखाम-बुखार के लिए तुरंत एन्टीबायोटिक लेकर लोग काम पर दौड़ जाते हैं। जंक फूड खाना, कृत्रिम एयर प्युरिफायर में रहना और न जाने कैसे-कैसे बदलाव जीवन शैली में अपना चुके हैं और इन सबका परिणाम अनायास ही भुगत भी रहे हैं। न जाने क्यों इस धरती पर रहने वाला हर मनुष्य स्वार्थी और अपने-अपने की रट लगाकर बैठ गया है। प्रकृति का बाह्य स्वरूप अपनी सुख-सुविधाओं के अनुरूप बदलता ही जा रहा है थम ही नहीं रहा। क्या इसकी लालसा का अंत होगा भी ?
निरंतर भूकंप आना,प्राकृतिक आपदाओं के दुष्परिणाम भुगतना,सुविधाओं की चाह पर विनाश को न देखना। मानवीय मूल्यों को भूल, भावनाओं को कुचल, सृष्टि के विनाश को नकार बस भागते जाना! क्या जरूरी है इतना भागना, कहाँ गए सब संस्कार? क्या अंधी हो गई है मानवता ? भीतर क्रोध, लालच, अहं, स्वार्थ, छल का पॉल्यूशन भर कर बैठा है और वही अपने व्यवहार में दिखा रहा है ? जब भीतर इतना पॉल्यूशन भरा हुआ है तो बाहर व्यावहारिकता कैसे बदलेगी ! आप आज की ज़िंदगी को जिएँ कुछ इस तरह कि वर्तमान जीवन शैली में कुछ सुधार हो सके और आपके घरों की संतानों को स्वस्थ मन और स्वस्थ तन मिल सके। एक श्रेष्ठ स्वच्छ समाज के निर्माण कर्ता हम ही तो हैं । यदि सब अपनी-अपनी ओर से एक-एक प्रयास सच्चे दिल से शुरू कर देंगे तो अवश्य ही हर ओर सुधार दिखेगा आपको।
यदि सिर्फ अपना-अपना समेटेंगे तो हर घर का हर मन सिर्फ स्वार्थी बनेगा और स्वार्थी मन अपना-अपना सॉल्यूशन खोजेगा सबका नही| ये तो आपको सोचना है कि भीतर-बाहर पनपते और पलते पॉल्यूशन से बदलते परिवेश में जो भयावह स्थिति उत्पन्न हो चुकी है उसका सॉल्यूशन अपनेआप से आप कैसे निकालेंगे क्योंकि जिस केंद्र बिन्दु से पॉल्यूशन शुरू हुआ हैं वहीं इसका सॉल्यूशन भी है।