15 नवंबर गुरु नानक देव जयंती
वह चौदहवी शताब्दी का समय था जब सिक्ख धर्म अस्तित्व में आया। सिक्ख धर्म का जन्मदाता गुरु नानक को माना जाता है। इस धर्म में उनके बाद नौ गुरु हुए, जिन्होंने इस धर्म की स्थापना के बाद उसे सतत रूप से आगे बढ़ाया। गुरुनानक का जन्म 1469 ई. गुजरांवाला जिले में तलवंडी नामक छोटे से गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम कालूराम था तथा माता का नाम तू था। ऐसा कहा जाता है कि नानक बचपन से ही धीर गंभीर प्रवृत्ति के थे। बुद्धि भी कुशाग्र थी, वे प्रायः दुनिया की ओर से उदासीन रहते थे। नानक को हिन्दी, संस्कृत, फारसी में अच्छा अधिकार प्राप्त था। सिर्फ सोलह वर्ष की उम्र में ही इनका विवाह हो गया। इनके दो ही लड़के थे जिनका नाम श्रीचंद एवं लक्ष्मीदास थे। नानक उन्हें भी साधु संत की संगत में रहने को करते इसलिए कट्टर धार्मिक विचारों और साधू संतो की संगत उनके गृहस्थःजीवन में भी कोई बाधा नहीं खड़ा कर सका था। नानक के काल में भेदभाव, आडम्बर, कपट आदि कर बड़ा बोलबाला था। यह सब देखकर वे बड़े क्षुब्ध रहते थे। वे हमेशा उक्त विसंगतियों से समाज के सुधार का सोचा करते। गंभीर चिंतन मनन के बाद ही उन्हें एक सुनिश्चित विचारधारा एवं सिद्धांत के अंतर्गत जीवन यापन की प्रेरणा प्राप्त हुई थी।
नानक सत्यमार्ग की खोज में उत्कंठित थे। इसी समय अर्थात युवा आयु में उन्होंने गृहस्थ त्याग अर्थात घरबार को छोड़कर सन्यास धारण कर लिया। इसी दरम्यान उन्हें सत्यमार्ग का ज्ञान प्राप्त हुआ। नानक ने अपनी अपनी शिक्षाओं और उपदेशों से समाज में लोगों को आडंबर पूर्ण क्रिया कलापों से बाहर निकालने को प्रेरित करना प्रारंभ किया। नानक ने सिक्ख धर्म की स्थापना की, जो प्रारंभ में तो बिल्कुल धर्म पर अधारित था। पश्चात उस समय की विषम परिस्थितियों एवं सत्ता लोलुपता एवं भ्रष्ट राजाध्यक्षों के अत्याचारों से त्रस्त होकर बाद के गुरुआरें ने सिक्ख धर्म को धार्मिक के साथ सैनिकता का भी अमली जामा पहनाया ।
नानक अपने को भगवान का दूत मानते थे, और उनका कहना था कि इश्वर एक है, नानक उसका दूत और नानक जो कुछ कहता है सत्य कहता है। नानक की शिक्षायें इस प्रकार है:-
नानक ने कहा कि धार्मिक आचरण या शुद्ध आचरण से ही सत्यज्ञान की प्राप्ति हो सकती है। नानक का कहना था कि, जो सत्यज्ञान की प्राप्ति के लिए गुरु का बहुत महत्व है। एक गुरु की महिमा को उन्हानें बहुत महत्व दिया। नानक की शिक्षा थी कि सत्यज्ञान की प्राप्ति के लिए इश्वर के “सत्यनाम” का निरंतर जाप करना चाहिए। वे आवागमन को मानते थे, और कहते थे कि जब तक मनुष्य को आत्मा, को सत्य का ज्ञान नहीं हो जायेगा, तब तक वह आवागमन के चक्कर में पड़ी दुःख भोगते रहेगी।
नानक, ऊंच नीच भेदभाव, मूर्तिपूजा, पाखंड तथा अंध विश्वासों के विरुद्ध थे। वे सन्यास को भी ठीक नहीं मानते थे उनका कहना था कि शुद्ध आचरण तथा पवित्र जीवन ही जीव की मुक्ति का साधन है। उनकी दृष्टि में हिन्दू, मुसलमान, कुरान और रामायण सब बराबर थे।