राष्ट्रीय झंडा पर्व दिवस पर-
– सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
ध्वज की महत्ता एक राष्ट्र की आजादी का परिचायक सहित उसकी अस्मिता और शान का परिचायक होती है। प्रत्येक राष्ट्र की अपनी एक पहचान होती है और वह पहचान उसके झंडा अर्थात राष्ट्रीय ध्वज से होती है। राष्ट्र की स्वाधीनता एवं उसकी अस्मिता का प्रतीक होता है। भारत का ध्वज तिरंगा आज विश्व में पूरी शान से अपनी पताका फहरा रहा है। हमारे राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण की भी बड़ी महत्वपूर्ण कहानी है। आईये आज जो हमारा तीन रंगो वाला और बीच में अशोक चक्र की उपस्थिति वाला यह ध्वज अपने अस्तित्व में कब और कैसे आया इसकी जानकारी लें।
जैसा कि हम सभी यह जानते है कि राष्ट्रीय ध्वज एकता और स्वतंत्रता व सामान्य उद्येश्य का प्रतीक होता है। आपको क्या यह जानकारी है, कि हमारा राष्ट्रीय झंडे का वर्तमान स्वरूप कई परिवर्तनों के बाद ही आज के वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सका है। सिलसिलेवार कमशः झंडे के बदलते क्रम अनुसार
इसकी शाखा निम्न है-
1. प्रथम स्वरुप- सात अगस्त 1906 का कलकत्ता में फहराया जाने वाले झंडे में तीन समानांतर आड़ी पटिटवा थीं. जिनमें ऊपर हरे रंग की पट्टी में आठ सफेद कमल बने हुये थे। पीली पट्टी थी जिसमें “वंदे मातरम” नीले रंग में लिखा हुआ था। और सबसे नीचे वाली लाल पट्टी में बाघ और सफेद सूर्य और पतला चंद्रमा और एकतार अंकित था।
2. दूसरा स्वरुप- दूसरा ध्वज स्टुटगार्ट (जर्मनी) में 22 अगस्त 1907 को मदाम बामा और उनके अनुयायी द्वारा फहराया गया। वह ध्वज पहले ध्वज जैसा ही श्री वसु “वंदेमातरम” कर दिया गया था। इस ध्वज को बाद में एक गुजराती स्वतंत्रता सेनानी द्वारा कृपा भारत लाया गया। पुणे स्थित एक समाचार पत्र के (पुस्तकालय) में आज भी इस ध्वज को देखा सकता है।
3. तीसरा स्वरूप-1917 में ध्वज को भिन्न रूप में बनाया गया। उसमें और बाहरी पट्टी जोड़ दी गई थी। जिसमें पांच लाल और 4 हरी पटिया थी सात सितारों को इन पत्तियों की ओर से छापा गया था। भाई ऊपर कोने में चांद और तारा तथा दाएं और ऊपर कोने में ब्रिटिश ध्वज का छोटा सा आकार बनाया गया था और यही प्रविष्टि इस ध्वज को अलोकप्रिय बना गया अधिसंख्य भारतीयों को यह ध्वज बिल्कुल भी पसंद नहीं आया था।