नई दिल्ली: इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (ICC ANNEX) बेसमेंट लेक्चर हाल में मेरे आराध्य राम पुस्तक का लोकार्पण समारोह 13 जनवरी 2024 को 2 बजे किया जायेगा। जिसमें विशिष्ट अतिथि श्री सुरेन्द्र शर्मा (हास्य कवि) और कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री बालस्वरूप राही (प्रसिद्ध कवि एवं गीताकार)।
राम केवल भारत में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में पूजनीय हैं। सातों महाद्वीप में वाल्मीकि एवं वाल्मीकि कृत रामायण के प्रसंग स्थानीय साहित्य में मिलते हैं। शिलालेखों, सिक्कों, गुफाओं एवं मंदिरों के भग्नावशेषों में राम के साक्ष्य मिलते हैं। विश्व की अनेक भाषाओं में प्रचलित लोककथाओं में रामकथा प्रमुखता से सुनी सुनाई जाती है। इतना ही नहीं अनेक देशों में रामलीला का मंचन आज भी होता है। इन रामलीलाओं में स्थानीय संस्कृति के दर्शन होते हैं। वस्तुत:, राम किसी एक संप्रदाय, जाति, वर्ग, क्षेत्र, धर्म और संस्कृति के आराध्य देव नहीं है। वह तो सभी के देव हैं। आराध्य हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि राम केवल एक नाम नहीं बल्कि एक जीवन पद्धति हैं। जीवन शैली हैं। पुरूषोत्तम हैं।
डायमंड बुक्स द्वारा प्रकाशित बुक्स मेरे अराध्य राम जिसके लेखक डा- संदीप शर्मा है एक ऐसी ही पुस्तक है। यह पुस्तक युवाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि देश-दुनिया में जो भ्रांतियां व्याप्त है उनका निराकरण करती है यह पुस्तक। पुस्तक को सारगर्भित बनाने के लिए अनेक पुस्तकों के प्रसंग समाहित करने का प्रयास किया है। अनेक अध्यायों में अन्य पुस्तकों के संदर्भ हु-ब-हु रखने का दुस्साहस भी किया और वह इसलिए ताकि हमारे युवा पाठक राम, रामायण और रावण से संबंधित सभी तथ्यों को एक ही पुस्तक में पढ़ सकें। हमारे लिए वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस दोनों ही ग्रंथ धरोहर है। महत्वपूर्ण हैं। त्रेतायुग को समझने के लिए अतिमहत्वपूर्ण ग्रंथ है वाल्मीकि कृत रामायण। डा- संदीप शर्मा का कहना है कि युवाओं से मेरा विशेष आग्रह है कि वह सबसे पहले महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण का अध्ययन अवश्य करें। शेष पाठकों पर निर्भर है कि किसे प्राथमिकता देते हैं। सभी पूर्वग्रहों से मुक्त होकर इस पुस्तक का अध्ययन करने से सभी भ्रांतियां समाप्त होंगी, ऐसा मेरा विश्वास है।
इस शोधात्मक कार्य को पूरा करने में अनेक विद्वानों ने मदद की। मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के प्रख्यात प्रवक्ता डॉ शिवशंकर अवस्थी जी एवं डॉ. अवनिजेश अवस्थी, हिंदी प्रवक्ता, पी.जी.डी.ए.वी महाविद्यालय, दिल्ली का हार्दिक आभार व्यक्त करना अपना कर्तव्य समझता हूं, आपने समय-समय पर मेरी जिज्ञासाओं को शांत किया।
अंततः डायमंड बुक्स के स्वामी आदरणीय नरेन्द्र वर्मा जी को विशेष वंदन के साथ हार्दिक धन्यवाद देना अपना परम कर्तव्य समझता हूँ जिन्होंने इस पुस्तक का प्रकाशन करने का संकल्प लिया। सभी से मेरा विनम्र आग्रह है कि सभी पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर पाठक गण पुस्तक पढ़ेंगे तभी उन्हें ज्ञान और आनंद की प्राप्ति होगी। मैं ऐसी कामना करता हूं।