लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा में आम जन को आर्थिक एवं सामाजिक उन्नति के समान अवसरों की उपलब्धता एवं क्रियान्वयन को प्रमुखता दी गयी है। शिक्षा, स्वास्थ्य एवं संस्कृति के विकास के लिए प्रत्येक नागरिक एवं समाज को स्वतंत्रता होती है। लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा भारत वर्ष के लिए नवल विचार नहीं है क्योंकि यहां राज व्यवस्था में यह चिंतन प्राचीन काल से ही प्रभावी रहा है। रामराज्य में प्रजा हर प्रकार से सुखी थी। रामायण में रामराज्य का वर्णन जन हितकारी राज्य का अद्भुत उदाहरण है। महाभारत में शान्तिपर्व में भी मृत्यु शैय्या पर लेटे भीष्म ने युधिष्ठिर को राजधर्मानुशासन का पाठ पढ़ाते हुए जन सामान्य के सुख-सुविधाओं का ध्यान रखने का उपदेश दिया है तो विष्णुगुप्त चाणक्य ने भी अपने राजनीति विषयक ग्रंथ अर्थशास्त्र में लोकहितैषी राजा के गुण एवं आदर्श का वर्णन किया है।
वास्तव में लोक कल्याणकारी राज्य का पथ लोकतांत्रिक निर्वाचन प्रक्रिया की भूमि से ही गुजरता है। क्योंकि लोकतंत्र में तानाशाही और निरंकुश सत्ता अधिनायक के लिए कोई जगह नहीं होती। इस प्रणाली में जनता को लोक हितैषी प्रतिनिधि चुनने एवं लोक हितकारी शासन सत्ता स्थापित करने का अधिकार होता है। साथ ही अपेक्षानुरूप प्रदर्शन करने में अक्षम होने पर जनता सत्ता को परवर्तित करने का अवसर एवं हक भी रखती है। और यह सम्भव होता है चुनाव अंतर्गत गोपनीय मतदान प्रक्रिया द्वारा, जिसका संचालन भारत निर्वाचन आयोग करता है। मतदान के प्रति जन जागरूकता एवं मतदाता भागीदारी बढ़ाने हेतु प्रत्येक वर्ष 25 जनवरी को राष्ट्रीय मतदाता दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष देश 14वां मतदाता दिवस मना रहा है।
लोकतंत्र के बारे में अब्राहम लिंकन का वह कथन प्रकाश स्तंभ बन चुका है जिसमें कहा गया है कि लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए जनता द्वारा चुनी गयी शासन प्रणाली है। यह प्रणाली तभी सार्थक सिद्ध होगी जब समाज लोकतांत्रिक प्रक्रिया से अवगत होते हुए मतदान की महत्ता को समझे। वह अपने एक वोट की प्रतिष्ठा, माहात्म्य एवं गुरुता तभी समझ सकेगा जब वह 17 अप्रैल, 1999 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की सरकार का एक वोट से गिर जाना समझ पायेगा। अत: मतदाताओं में मतदान करने के प्रति उत्साह जगा निर्भय होकर मतदान करने, मतदान केंद्रों के अधिकारिता क्षेत्र में 18 वर्ष की उम्र पूरी कर चुके युवक-युवतियों का पंजीकरण कर नये मतदाता बनाते हुए फोटोयुक्त मतदाता पहचान पत्र उपलब्ध कराने तथा प्रत्येक मतदान केंद्र एवं बूथ में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए 25 जनवरी को प्रति वर्ष राष्ट्रीय मतदाता दिवस मनाया जाता है।
समाज जागरण के लिए इस दिन विविध कार्यक्रमों का आयोजन सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं एवं संगठनों द्वारा किया जाता है। विविध क्षेत्रों के प्रतिष्ठित लोकप्रिय नायकों के मतदान करने सम्बंधी प्रेरक वायस एवं वीडियो संदेश, वृत्तचित्र एवं लघु फिल्म आदि का प्रसारण रेडियो एवं टेलीविजन पर किया जाता है। स्कूल, कालेज एवं विश्वविद्यालयों में वाद-विवाद प्रतियोगिता, निबंध लेखन, क्विज काम्पटीशन, रंगोली, चित्रकारी एवं रेखांकन, भाषण एवं संगोष्ठियों का आयोजन करके मतदान के महत्व से जन सामान्य को परिचित कराते हुए अपने मत के उचित प्रयोग हेतु जागरूक किया जाता है। शपथ भी दिलाई जाती है। मतदाता दिवस के आयोजन हेतु हर वर्ष एक थीम निर्धारित कर तदनुसार कार्यक्रम किये जाते हैं। 2024 की थीम है – वोट जैसा कुछ नहीं, वोट जरूर डालेंगे हम। तो 2023 में – वोटिंग बेमिसाल है, मैं अवश्य वोट देता/देती हूं, थीम निर्धारित थीं।
उल्लेखनीय है कि 25 जनवरी, 1950 को भारत निर्वाचन आयोग की स्थापना एक स्वायत्त संवैधानिक संस्था के रूप में की गयी थी। आयोग की 61वीं वर्षगांठ के अवसर पर 25 जनवरी, 2011 को प्रथम राष्ट्रीय मतदाता दिवस का शुभारंभ तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल द्वारा किया गया था। तब से प्रत्येक वर्ष सम्पूर्ण देश में इस दिवस को उत्सव की तरह मनाते हुए व्यापक स्तर पर विविध कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। ध्यातव्य है कि चुनाव आयोग के कार्यों में लोक सभा, राज्य सभा, विधान सभाओं सहित राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के चुनाव करवाना शामिल है। सहयोग के लिए प्रत्येक प्रदेश में राज्य निर्वाचन आयोग भी गठित है जो विभिन्न पंचायतों एवं नगर निकायों आदि के चुनाव कराता है। आयोग की इस 75 साल की सांस्थानिक यात्रा में तमाम उतार चढ़ाव आये, अच्छे-बुरे अनुभवों से भी गुजरना हुआ। लेकिन चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष, गतिशील, पारदर्शी, सर्व समावेशी, लोकतांत्रिक एवं न्यायपूर्ण बनाये रखने तथा बेहतरी के लिए सतत साधनारत रहा है। इसीलिए आज हम आयोग के कार्यों में स्तरोन्नयन एवं गुणवत्तापूर्ण बदलाव महसूस कर पा रहे हैं।
बहुसदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र की जगह एकल सदस्यीय निर्वाचन बनाने, साधारण छपी हुई मतदाता सूची के स्थान पर कम्प्यूटरीकृत फोटो युक्त मतदाता सूची प्रकाशित करने, सचित्र मतदाता पहचान पत्र निर्गत करने तथा कागज के मतपत्र की जगह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से मतदान कराने तथा मतदाता द्वारा अपने मतदान को ईवीएम में डालने के बाद देखने हेतु विविपैट इस्तेमाल करने जैसे सुधारवादी कदम उठाये गये हैं। सनद रहे कि वर्ष 1982 में पहली बार केरल के परावुर विधानसभा चुनाव में प्रयोग के तौर पर 50 केंद्रों पर ईवीएम का प्रयोग हुआ था। आयोग द्वारा मतदान प्रक्रिया को सरल करने तथा मतदान केंद्र मतदाता के निवास क्षेत्र के यथा सम्भव निकट बनाने के सराहनीय प्रयास हुए हैं। मतपत्रों से मतदान प्रक्रिया के दौरान न केवल मतपत्र लूटने, बूथ कैप्चरिंग, हत्या एवं लड़ाई-झगड़े की घटनाएं आम हुआ करती थीं बल्कि मतदानकर्मियों को भी ढेर सारे मतपत्र एवं बैलेट बाक्स ढोने पड़ते और मतपत्रों के पृष्ठ भाग में हस्ताक्षर-मोहर करने पड़ते थे जो मानसिक एवं शारीरिक रूप से थकान भरा काम होता था।
तब प्रत्येक बूथ पर मतदाता संख्या भी अपेक्षाकृत अधिक हुआ करती थी। अब प्रत्येक बूथ पर मतदाताओं की संख्या कम करते हुए मतदान का समय भी बढ़ाया गया है जिसका सर्वाधिक लाभ बढ़े हुए मतदान प्रतिशत के रूप में लगातार देखने को मिल रहा है। आयोग ने प्रत्येक क्षेत्र में चाहे वह सूदूर दक्षिण में समुद्र तटीय एवं द्विपीय स्थान हों या लेह-लद्दाख, कारगिल एवं लाहौल स्पीति जैसे बर्फ की चादर ओढ़े रहने वाले हिमाचल काश्मीरी भू भाग, आंखों की दृष्टि की सीमा से आगे तक फैले रेगिस्तानी प्रदेश हों या फिर सेवन सिस्टर्स के वनवासी रहवास, आयोग ऐसी प्रत्येक जगह मतदान केंद्र तैयार करने में सिद्ध हुआ है। स्मरणीय है कि हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति जिले का टशीगंग भारत ही नहीं बल्कि विश्व का सबसे ऊंचाई पर स्थित मतदान केंद्र है। यह समुद्र तल से 15256 फीट (4650 मीटर) की उंचाई पर चीनी सीमा से मात्र 10 किमी अंदर स्थित है, जहां गत लोकसभा निर्वाचन में केवल 49 मतदाता थे।
ज्ञातव्य है कि यहां सांस लेने में भी परेशानी होती है। एक संदर्भ देना समीचीन होगा कि आयोग के दसवें आयुक्त टी.एन. शेषन का छह वर्ष का कार्यकाल चुनाव सुधारों एवं आयोग के संवैधानिक नियमानुकूल सख्त रवैये के लिए जाना जाता है। शेषन ने ही मतदान के लिए मतदाता पहचान पत्र को अनिवार्य किया था और 1996 के चुनावों में पहली बार मतदाता पहचान पत्र का प्रयोग किया गया। कड़ाई से आचार संहिता लागू करने एवं प्रत्याशियों की खर्च सीमा तय करने का भी काम किया। मतदाताओं को अपने पक्ष में मतदान हेतु लुभाने के तमाम प्रलोभनों, प्रचार हेतु धर्म स्थलों के प्रयोग करने पर रोक लगाई। सही मायनों में आमजन तब पहली बार आयोग की शक्ति एवं सामर्थ्य को समझ पाया था।
देश की सर्वोच्च शक्ति संविधान निर्देशित लोकतंत्र में निहित है और सुदृढ एवं समर्थ लोकतंत्र का आधार मतदाता हैं, जनता है। वास्तव में राष्ट्रीय मतदाता दिवस लोकतंत्र के प्रति आस्था एवं विश्वास की समृद्धि का पर्व है। कोउ नृप होय हमै का हानी के विरागी भाव से मुक्त होकर प्रत्येक निर्वाचन में मतदाताओं की अधिकतम भागीदारी सुनिश्चित हो, हर काम छोड़कर पहले सपरिवार मतदान फिर जलपान का भाव प्रबल हो, स्वयं तो मतदान करें ही साथ ही मित्र, परिचित एवं पड़ोसियों को भी मतदान हेतु प्रेरित करने का सतत प्रयत्न हो, तभी मतदाता दिवस मनाने की सार्थकता सिद्ध होगी।