11 मार्च महान सम्राट हिंदू ह्रदय पृथ्वीराज चौहान पुण्यतिथि
– सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
पृथ्वीराज चौहान भारतीय इतिहास मे एक बहुत ही अविस्मरणीय नाम है! चौहान वंश में जन्मे पृथ्वीराज आखिरी हिन्दू शासक भी थे। महज 11 वर्ष की उम्र मे, उन्होने अपने पिता की मृत्यु के पश्चात दिल्ली और अजमेर का शासन संभाला और उसे कई सीमाओ तक फैलाया भी था, परंतु अंत मे वे राजनीति का शिकार हुये और अपनी रियासत हार बैठे, परंतु उनकी हार के बाद कोई हिन्दू शासक उनकी कमी पूरी नहीं कर पाया। पृथ्वीराज को राय पिथोरा भी कहा जाता था। पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही एक कुशल योध्दा थे, उन्होंने युध्द के अनेक गुण सीखे थे। उन्होने अपने बाल्य काल से ही शब्धभेदी बाण विद्या का अभ्यास किया था। पृथ्वीराज चौहान धरती के महान शासक पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 मे हुआ। पृथ्वीराज अजमेर के महाराज सोमेश्वर और कपूरी देवी की संतान थे। पृथ्वीराज का जन्म उनके माता पिता के विवाह के 12 वर्षो के पश्चात हुआ। यह राज्य मे खलबली का कारण बन गया और राज्य मे उनकी मृत्यु को लेकर जन्म समय से ही षड्यंत्र रचे जाने लगे, परंतु वे बचते चले गए। परंतु मात्र 11 वर्ष की आयु मे पृथ्वीराज के सिर से पिता का साया उठ गया था, उसके बाद भी उन्होने अपने दायित्व अच्छी तरह से निभाए और लगातार अन्य राजाओ को पराजित कर अपने राज्य का विस्तार करते गए।
पृथ्वीराज के बचपन के मित्र चंदबरदाई उनके लिए किसी भाई से कम नहीं थे। चंदबरदाई तोमर वंश के शासक अनंगपाल की बेटी के पुत्र थे।। उन्होने पृथ्वीराज चौहान के सहयोग से पिथोरगढ़ का निर्माण किया, जो आज भी दिल्ली मे पुराने किले नाम से विद्यमान है।
अजमेर की महारानी कपुरी देवी अपने पिता अंगपाल की इकलौती संतान थी। इसलिए उनके सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी, कि उनकी मृत्यु के पश्चात उनका शासन कौन संभालेगा। उन्होने अपनी पुत्री और दामाद के सामने अपने दोहित्र को अपना उत्तराअधिकारी बनाने की इच्छा प्रकट की और दोनों की सहमति के पश्चात युवराज पृथ्वीराज को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। सन 1166 मे महाराज अंगपाल की मृत्यु के पश्चात पृथ्वीराज चौहान की दिल्ली की गद्दी पर राज्य अभिषेक किया गया और उन्हें दिल्ली का कार्यभार सौपा गया। पृथ्वीराज चौहान और उनकी रानी संयोगिता का प्रेम आज भी राजस्थान के इतिहास मे अविस्मरणीय है। दोनों ही एक दूसरे से बिना मिले केवल चित्र देखकर एक दूसरे के प्यार मे मोहित हो चुके थे। वही संयोगिता के पिता जयचंद्र पृथ्वीराज के साथ ईर्ष्या भाव रखते थे, तो अपनी पुत्री का पृथ्वीराज चौहान से विवाह का विषय तो दूर दूर तक सोचने योग्य बात नहीं थी। जयचंद्र केवल पृथ्वीराज को नीचा दिखाने का मौका ढूंढते रहते थे, यह मौका उन्हे अपनी पुत्री के स्वयंवर मे मिला। राजा जयचंद्र ने अपनी पुत्री संयोगिता का स्वयंवर आयोजित किया | इसके लिए उन्होने पूरे देश से राजाओ को आमंत्रित किया, केवल पृथ्वीराज चौहान को छोड़कर। पृथ्वीराज को नीचा दिखाने के उद्देश्य से उन्होने स्व्यंवर मे पृथ्वीराज की मूर्ति द्वारपाल के स्थान पर रखी। परंतु इसी स्वयंवर मे पृथ्वीराज ने संयोगिता की इच्छा से उनका अपहरण भरी महफिल मे किया और उन्हें भगाकर अपनी रियासत ले आए। और दिल्ली आकार दोनों का पूरी विधि से विवाह संपन्न हुआ। इसके बाद राजा जयचंद और पृथ्वीराज के बीच दुश्मनी और भी बढ़ गयी।