-15 अप्रैल चंद्रगुप्त मौर्य जयंती पर विशेष-
चंद्रगुप्त मौर्य पहला शासक था, जिसने एक संगठित राज्य की नींव डाली। राष्ट्र निर्माता चंद्रगुप्त मौर्य का स्थान भारत के इतिहास में बहुत ऊंचा है। साधारण से परिवार में जन्म लेकर नेपोलियन की ही भांति चंद्रगुप्त भी अपने बाहुबल के पराक्रम से भारत का सम्राट बना। चंद्रगुप्त मौर्य को ठाठबाट तथा सुंदरता से बड़ा प्रेम था। शिकार उसका प्रिय व्यसन था। इस काम के लिये उसने शिकार के वन बनवा रखे थे। उसे पशुओं की लड़ाई देखने का भी बड़ा शौक था। वह एक महान विजेता, कुशल शासक, राजनीतिज्ञ तथा प्रतिभाशाली व्यक्ति था। यूनानियों को भारत से निकाल कर उत्तरभारत के छोटे छोटे राज्यों को संगठित करके इतना विशाल साम्राज्य बनाने का श्रेय चंद्रगुप्त को ही है। दक्षिण विजय का भी प्रमाण उपलब्ध है। अपनी शासन व्यवस्था का सुंदर संगठन करके चंद्रगुप्त ने अपने महान व्यक्तित्व का परिचय दिया। चंद्रगुप्त एक दयालु प्रजापालक तथा न्यायप्रिय शासक था। कृषि, व्यापार, वाणिज्य तथा दण्ड व्यवस्था के विकास में चंद्रगुप्त ने सराहनीय कार्य किया। मेगस्थनीज का कहना है कि उसके शासन ने प्रजासुखी थी। लोग संपन्न थे और अपराध नहीं होते थे।लोगों का जीवन पवित्र एवं शुद्ध था। चंद्रगुप्त का नाम भारतीय सम्राटों में बहुत ऊंचा है।
जिस समय सिंकदर पश्चिमी भारत को विजीत कर रहा था, उस समय पूर्वी भारत में राजनैतिक अराजकता फैली हुई थी। केवल मगध का राज्य ही एकमात्र शक्तिशाली राज्य था। मगध राज्य की सैनिक शक्ति से भयभीत होकर ही सिकंदर के सैनिकों ने आगे बढ़ने से इंकार कर दिया था, जिसके कारण सिकंदर को अपनी विजय अधूरी छोड़कर ही वापस लौटना पड़ा था। मगध राज्य के शासक काफी अलोकप्रिय थे। साथ ही इधर एक व्यक्ति मगध राज्य को पराजित करने की योजना बना रहा था। उस महान व्यक्ति का नाम चंद्रगुप्त मौर्य था। चंद्रगुप्त की जाति के संबंध में विद्वानों में बहुत मतैक्य है। बहुत से विद्वान उसे किसी नीच जाति का मानते हैं। कुछ विद्वान उसे क्षत्रिय मानते हैं। वहीं कुछ उसे मगध सम्राट नंद का बेटा, जो मुरा नाम की शुद्र स्त्री से उत्पन्न हुआ मानते हैं। कुछ भी हो चंद्रगुप्त एक महान वीर, योग्य तथा पराक्रमी शासक था। चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म ई. सन से लगभग तीन सौ पैतालीस वर्ष पूर्व हुआ था। इसका पालन पोषण माता ने किया था। कुछ लोगों का मत है, चंद्रगुप्त मगध सम्राट के यहां काम करता था। पर कुछ कारणों से राजा से उसकी खटपट हो गई। अतः उसे नौकरी छोड़नी पड़ी। चाणक्य नाम का एक ब्राम्हण भी नंद राजा का दुश्मन था, क्योंकि राजा नदं ने उसका अपमान कर दिया था। इस प्रकार चंद्रगुप्त और चाणक्य दोनों नंदवंश को उखाड़ फेंकना चाहते थे। संयोग से चंद्रगुप्त की भेंट चाणक्य से हो गई।
दोनों ने मिलकर नंदवंश के नाश की योजना बनानी शुरू की। दोनों ने कुछ थोड़ी सेना इकट्ठी की और मगध पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में इनकी पराजय हो गई। फलस्वरूप चाणक्य तथा चंद्रगुप्त दोनों को मगध छोड़ना पड़ा। मगध से भागकर चंद्रगुप्त चाणक्य के साथ पंजाब की ओर चला गया। उन दिनों सिकंदर पंजाब के राज्यों को जीत रहा था चंद्रगुप्त ने सोचा कि यदि सिंकदर नंद राज्य को जीत ले और फिर भारत से वापस चला जाये, तो मैं नंदराज्य पर अधिकार जमा लूं। इस विचारसे चंद्रगुप्त सिकंदर से मिला। पर उसकी बात से सिकंदर चिढ़ गया। और उसने अप्रसन्न होकर चंद्रगुप्त को मार डालने की आज्ञा दे दी, पर चंद्रगुप्त किसी तरह सिकंदर के चंगुल से भाग निकला।
सिकंदर के वापिस जाने के बाद पंजाब में ही रहकर चंद्रगुप्त ने सेना इकटठी करनी शुरु कर दी। चाणक्य ने भी उसकी पूरा ‘सहायता की दोनों ने मिलकर पंजाब के राजाओं को भी उकसाया। इस प्रकार चंद्रगुप्त के पास काफी विशाल सेना हो गई। और साथ ही वह पंजाब की जनता तथा राजाओं में लोकप्रिय हो गया। सेना -इकट्ठी करके चंद्रगुप्त ने सिकंदर के उन सेनापतियों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। जिन्हें सिकंदर लौटते समय उन राज्यों का गवर्नर बना गया था, जो उसने जीते थे। चंद्रगुप्त ने अपनी सेना के बल से उत्तर पश्चिमी भारत से यूनानियों को मार भगाया। इस प्रकार पंजाब पर उसका पूर्ण अधिकार हो गया। इसके बाद चाणक्य ने काश्मीर की पहाड़ियों के राजा पर्वतेश्वर से संधि कर ली, ताकि एक विशाल सेना लेकर मगध के साम्राज्य पर आक्रमण किया जा सके।
इस प्रकार एक विशाल सेना लेकर चंद्रगुप्त मगध के नंद शासक पर आक्रमण करने चला। नंद राज्य का सेनापति भद्रशाल था। वह अपनी सेना लेकर युद्ध क्षेत्र में आ गया पर चंद्रगुप्त के सामने वह ठहर नहीं सका। चंद्रगुप्त इस युद्ध में विजयी रहा। इसके बाद नंदवंश के अन्य लोगों का भी वध कर दिया गया। इस प्रकार मगध पर अधिकार हो जाने के बाद संपूर्ण उत्तरी भारत पर चंद्रगुप्त का अधिकार हो गया। इन युद्धों में चाणक्य ने चंद्रगुप्त की बड़ी सहायता की थी। इन युद्धों की विजय में जहां चंद्रगुप्त की वीरता का महत्व है वहां चाणक्य की कूटनीति तथा बुद्धि का भी है। इस प्रकार चंद्रगुप्त मौर्य मगध का सम्राट बना। चाणक्य को उसने अपना प्रधानमंत्री बनाया। मगध के सिंहासन पर बैठने के बाद चंद्रगुप्त ने अपनी सेना का बहुत सुंदर संगठन किया। उसकी सेना में छह लाख पैदल बीस हजार घुडसवार और नौ हजार लडाकू हाथी थे।
चंदगुप्त का राज्य मगध और पंजाब तक सीमित नहीं था। जूनागढ़ के शिलालेख से तो यह भी प्रमाण मिलता है कि सौराष्ट्र भी उसके राज्य के अधीन था। कुछ इतिहासविदों का कहना है कि छह लाख सेना लेकर चंद्रगुप्त दक्षिण विजय को गया एवं वहां भी उसने अधिकार स्थापित किया। चंद्रगुप्त के शासन कार्य में उसका प्रधानमंत्री चाणक्य उसकी बड़ी सहायता करता था। चंद्रगुप्त की शासन व्यवस्था बहुत अच्छी थी। उसके संपूर्ण शासन को आठ अंगों में बांटा जा सकता है। केंद्रीय शासन, प्रांतीय शासन, नगर शासन, जनपद ग्रामीण शासन, सैनिक प्रबंध, न्याय व्यवस्था, अर्थ विभाग, गुप्तचर विभाग ।