प्रवासी कामगारों से मजबूत होती अर्थव्यवस्था

इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन (आईओएम) की 7 मई 2024 को जारी विश्व प्रवासन रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2024 में भारत विदेशों में काम करने वाले भारतीय कामगारों से सबसे ज्यादा धन पाने वाले देशों के रूप में सूचीबद्ध हुआ है। मैक्सिको, चीन, फिलीपींस व फ्रांस जैसे देश भी इस सूची में भारत की तुलना में नीचले पायदानों पर है। भारत के लिये यह गौरव की बात है और इससे दुनिया की आर्थिक महाशक्ति बनने के भारत के प्रयासों को भी बल मिलेगा। नया भारत एवं सशक्त भारत के निर्माण में विदेशों में रह रहे भारतीय कामगारों ने अपने खून-पसीने की कमाई से अर्जित धनराशि में से वर्ष 2022 में 111 बिलियन डॉलर अपने देश भेजे हैं। यह आंकड़ा जहां विश्व में भारतीय श्रमशक्ति की गौरवपूर्ण गाथा को दर्शाता है, वहीं देश की अर्थव्यवस्था में उनके अमूल्य योगदान को दिखाता है।

आईओएम की ताजा रिपोर्ट वैश्विक प्रवास पैटर्न में महत्त्वपूर्ण बदलावों का खुलासा करती है, जिसमें विस्थापित लोगों की रिकॉर्ड संख्या और अंतर्राष्ट्रीय प्रेषण में बड़ी वृद्धि शामिल है। पूरे विश्व में अनुमानित 281 मिलियन अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों के साथ, संघर्ष, हिंसा, आपदा और अन्य कारणों से विस्थापित व्यक्तियों की संख्या आधुनिक रिकॉर्ड में उच्चतम स्तर तक बढ़ गई है, जो 117 मिलियन तक पहुँच गई है, जो विस्थापन संकट को संबोधित करने की तात्कालिकता को रेखांकित करती है।

भारत में अनुमानित 1.8 करोड़ लोग अंतरराष्ट्रीय प्रवासी के रूप में काम करने के लिए विदेश जाते हैं। भारतीय अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों में सॉफ्टवेयर इंजीनियरों, डॉक्टरों आदि जैसे पेशेवरों का अनुपात बढ़ गया है। इनके वेतन ज्यादा होता है और वे बड़ी मात्रा में पैसा भारत भेजते हैं। इनके अलावा भारतीय कामगार भी बड़ी संख्या में विदेशों में अपने श्रम से धन अर्जित करके न केवल अपने परिवारों का पालन-पोषण करते हैं बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। निश्चित रूप से यह उन कामगारों के भारत के प्रति आत्मीय लगाव एवं देशप्रेम को ही दर्शाता है। भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में योगदान करने वाले इन श्रमवीरों के प्रति देश कृतज्ञ है। निश्चित रूप से इसका भारतीय अर्थव्यवस्था में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, वहीं दुनिया में भारतीय श्रम-शक्ति एवं प्रतिभाएं अपनी क्षमता, कौशल एवं प्रतिभा से विपुल आर्थिक, सामाजिक एवं विकासमूलक योजनाओं की नयी संभावनाओं के द्वार खोलती है, जिससे दुनिया में भारत की ताकत को नये पंख लगते हैं।

भारतीय कामगारों, विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिभाओं एवं कौशल के लिए शीर्ष प्रवासन गलियारे संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका और सऊदी अरब हैं जबकि राजनीतिक कारणों से भारत में प्रवेश करने वाले प्रवासियों की सबसे अधिक संख्या बांग्लादेश से आती है। प्रश्न है कि भारतीय कामगार एवं प्रतिभाएं जितनी बड़ी संख्या में विदेशों में जाकर अपनी क्षमताओं एवं प्रतिभा का लोहा मनवा रही है, विदेशी प्रतिभाएं उतनी संख्या में भारत नहीं आ रही है। वोट बैंक बढ़ाने के लिये बांग्लादेश आदि पडौसी देशों से गरीब एवं मुसलमानों का बड़ी संख्या में देश में आना, यहां के विकास को अवरोध करता है। इस तरह के लोगों के आने से देश में जनसंख्या बढ़ रही है, वही उनका भारत के विकास में योगदान नगण्य है और उनका भारत से कोई मजबूत एवं आत्मीय रिश्ता भी कायम नहीं हो पाता है, यह एक समस्या के रूप में भारत के विकास को बाधित करता है।

दुुनिया में भारतीय श्रम एवं कौशल की बड़ी मांग है। क्योंकि भारतीय मजबूर मेहनती, ईमानदार एवं कार्यनिष्ठ होते हैं। विकसित देशों में श्रमिकों की भारी कमी के बीच खेती, निर्माण और विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में काम करने के वास्ते भारतीय कामगारों को विदेश भेजने के लिए विकसित देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते करने का भारत सरकार का इरादा है। भारत सरकार उन देशों के साथ एग्रीमेंट करने जा रही है, जहां आबादी तेजी से घट रही है। वैसे हम पहले ही जापान और फ्रांस के साथ लेबर सप्लाई एग्रीमेंट कर चुके हैं। इजरायल के साथ भी एक करार है, जिसके तहत हजारों भारतीय वहां खेती और मजदूरी के लिए भेजे जा रहे हैं। यूनान ने भारत से संपर्क किया है कि वह कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 10,000 कामगारों को उसके यहां भेजे।

विदेशों से धन भेजने के आकंड़े का बढ़ना दर्शाता है कि प्रवासियों का अपनी मातृभूमि के बीच कितना मजबूत, आत्मीय व स्थायी संबंध है। लेकिन इसके साथ ही भारत सरकार का दायित्व बनता है कि इस उपलब्धि की खुशी मनाते वक्त प्रवासियों के सामने आने वाली चुनौतियों को भी पहचाना जाए और उनका समाधान किया जाये। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि प्रवासी कामगारों को वित्तीय शोषण, प्रवासन लागत के कारण बढ़ते ऋण दबाव, नस्लीय भेदभाव व कार्यस्थल पर दुर्व्यवहार जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जिनके निराकरण के लिए गंभीर प्रयास करने की जरूरत है। दुनिया की महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत अपने प्रवासी कामगारों की समस्याओं के समाधान के लिये संबंधित देशों से रणनीतिक तरीकों से रास्ता निकालना चाहिए। निस्संदेह, भारत सरकार को प्रवासी कामगारों की समस्याओं के समाधान के लिये हमारे दूतावासों के जरिये विशेष कदम उठाने चाहिए।

दरअसल, खाड़ी सहयोग परिषद के राज्यों में जहां बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी कार्यरत हैं, उनके अधिकारों का उल्लंघन जारी है। खासकर कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय कामगारों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। विशेष तौर पर अर्द्ध-कुशल श्रमिकों और अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों के कई तरह के संकटों को बढ़ा दिया था। बड़ी संख्या में उनकी नौकरियां खत्म हुई, वेतन नहीं मिला। सामाजिक सुरक्षा के अभाव में कई लोगों को कर्ज में डूबना पड़ा। जिसके चलते बड़ी संख्या में ये कामगार स्वदेश लौटे।

अंतर्राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों की तरफ भारतीय छात्रों के बढ़ते रुझान की ओर भी आईओएम की अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट इशारा कर रही हैं। बहरहाल, प्रवासन के बदलते परिदृश्य में प्रवासी भारतीयों के अधिकारों व हितों की रक्षा के लिये ठोस प्रयासों की जरूरत है। किसी भी तरह श्रमिकों का शोषण न हो और सामाजिक सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को संबोधित करने की जरूरत है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि भारतीय कामगारों के लिये सुरक्षित व व्यवस्थित प्रवासन मार्ग संभव हो सके। यह समावेशी विकास की पहली शर्त भी है। हमारा नैतिक दायित्व बनता है कि विदेशों में कामगारों के हितों की रक्षा के साथ ही भारत में रह रहे उनके परिवारों का भी विशेष ख्याल रखा जाए। जिससे उनका देश के प्रति लगाव और गहरा हो सके।

सरकार कामगारों को विदेश भेजने की पहल में काफी सक्रिय दिख रही है। कम से कम दो जरूरी बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए। पहला, जिन कामगारों की बात की जा रही है वे ज्यादा पढ़े-लिखे या कुशल नहीं हैं, ऐसे में यह जरूरी है कि इन लोगों का चयन पारदर्शी तरीके से हो। अगर जरूरत पड़े तो इस प्रक्रिया में किसी तीसरे भरोसेमंद पक्ष को भी शामिल किया जाए। दूसरी बात, अलग-अलग देशों में जैसे-जैसे भारतीय मजदूरों की संख्या बढ़ेगी, भारत को अपनी राजनयिक मौजूदगी बढ़ाने पर विचार करना चाहिए ताकि वहां काम करने वाले भारतीयों की परेशानियों का जल्दी समाधान हो सके। सरकार की इस पहल का स्वागत कई कारणों से अवश्य किया जाना चाहिए। भारत में कुशल और मेहनती कामगारों की तादाद बहुत ज्यादा है। कई वर्षों से संगठित और अनौपचारिक तरीके से ये कामगार कई देशों में जाते रहे हैं और इसका अंदाजा विदेश से भारत भेजी जाने वाली राशि से मिलता है। भारत भी अपने व्यापारिक साझेदार देशों के साथ किए जाने वाले विभिन्न समझौतों में भी कामगारों की आवाजाही की वकालत करता रहा है।

ललित गर्ग
ललित गर्ग

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