– ललित गर्ग –
स्वास्थ्य के मोर्चे पर भारत का अनेक खतरों से रू-ब-रू होना चिन्ता में डाल रहा है। बढ़ती शारीरिक निष्क्रियता के साथ मधुमेह एवं उच्च रक्तचाप जैसे रोग दबे पांव इंसानों को घेर कर बड़ी चुनौतियां बन रहे हैं, जिन्हें बड़े खतरों के रूप में देखा जाना चाहिए। इन्हीं बढ़ते खतरों के बीच देश में कोलेस्ट्रॉल एक नई स्वास्थ्य चुनौती बनकर उभरा है। कार्डियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया की 22 सदस्यीय समिति ने अब अधिक कोलेस्ट्रॉल की वजह से होने वाले डिस्लिपिडेमिया को लेकर जो दिशा-निर्देश जारी किए हैं, वे इसी मायने में महत्वपूर्ण एवं स्वास्थ्य के मोर्चंे पर गंभीर हैं। शरीर का यह ऐसा विकार है, जिसका पता अक्सर खुद उसके शिकार को भी नहीं चल पाता, क्योंकि अक्सर इसके कोई स्पष्ट लक्षण नहीं दिखाई देते। नतीजा यह होता है कि वह धीरे-धीरे हृदय रोग और गंभीर स्थितियों में हृदयाघात जैसी समस्याओं की ओर बढ़ता जाता है। बहरहाल, इस संगठन ने भारत के बारे में जो आंकड़े दिए हैं, वे डराने वाले हैं। देश की 81 फीसदी आबादी में कोलेस्ट्रॉल का स्तर सुरक्षित सीमा से काफी ज्यादा मिला है, यानी चुपचाप होने वाले इस शारीरिक विकार का खतरा देश की आबादी के एक बहुत बड़े हिस्से पर मंडरा रहा है। कोलेस्ट्रॉल की पहचान के लिए लोगों को लिपिड प्रोफाइल टेस्ट कराना चाहिए। शरीर में लिपिड का लेवल कितना हो इसके लिए भारत की अपनी पहली गाइडलाइन बनाई गई है। कोलेस्ट्रॉल का बेहतर ढंग से इलाज दिल की बीमारियों का खतरा कम कर सकता है। शरीर में कोलेस्ट्रॉल बढ़ना बेहद खतरनाक होता है। इससे कई तरह की गंभीर शारीरिक समस्याएं हो सकती हैं।
आज जितनी भी नई-नई बीमारियां उभर रही है, उसका कारण असंतुलित एवं सुविधावादी जीवनशैली है। डिस्लिपिडेमिया को जीवन शैली से जुड़ी समस्या माना जाता है। कहा जाता है कि इस समस्या के मूल में आर्थिक समृद्धि के कारण लोगों की खान-पान, नशा एवं उन्मुक्त जीवनशैली है। देर रात को सोना एवं सुबह देर से उठना, ना खाने का समय, ना शरीर को तपाने की कोई पद्धति। फास्ट-फूड के आधुनिक दौर में अब हमारे भोजन में ज्यादा शर्करा, ज्यादा कार्बोहाईड्रेट और ज्यादा वसा होने के कारण यह समस्या तेजी से बढ़ रही है। निश्चित ही यह यह रोग अमीर लोगों में ज्यादा देखने को मिलता है, लेकिन बड़ी समस्या यह है एक बड़ी आबादी इसकी गिरफ्त में आ गयी है। वह गरीब आबादी जो देश में आज मुफ्त अनाज पर निर्भर है। इसलिये बहुसंख्यक लोगों में इस रोग के पनपने एवं शारीरिक समस्या के लिए सिर्फ हम जीवनशैली को दोषी नहीं ठहरा सकते। यही वजह है कि भारतीय स्थितियों में इस समस्या के प्रसार के अभी और गहन एवं गंभीर अध्ययन की जरूरत है। इस बढ़ते खतरे को समय पर नियंत्रित नहीं किया गया तो भारत बीमारों का देश बन जायेगा।
भारत में डिस्लिपिडेमिया की बीमारी तेजी से फैल रही है, जो एक साइलेंट किलर की तरह है। इस बीमारी के लक्षण तो नजर नहीं आते लेकिन यह धीरे-धीरे शरीर में अपनी जड़े जमाने लगती है और हार्ट अटैक जैसी खतरनाक बीमारियों का जोखिम बढ़ा देती है। निश्चित ही कोलेस्ट्रॉल को लेकर जो खबर आई है, वह बहुत अच्छी नहीं है। हालांकि, इसके पीछे की जो पहल है, उसकी तारीफ तो की ही जानी चाहिए। पहली बार देश में कोलेस्ट्रॉल को लेकर दिशा-निर्देश जारी हुए हैं। अभी तक जब देश के डॉक्टर मरीजों के कोलेस्ट्रॉल या सरल भाषा में कहें, तो शरीर में जमा हो गई चर्बी का इलाज करते थे या लोगों को लिपिड प्रोफाइल टेस्ट कराने की हिदायत देते थे, तो वे यह काम यूरोपियन सोसायटी ऑफ कार्डियोलॉजी के दिशा-निर्देशों के तहत कर रहे होते थे। हार्ट अटैक को लेकर अक्सर ये कहा जाता रहा है कि डायबिटीज, हाइपरटेंशन, स्ट्रेस, तंबाकू सेवन, मद्यपान आदि के कारण हार्ट अटैक होते हैं, लेकिन इसके विपरीत भारत में हार्ट अटैक के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार जो चीज देखी गई है, वह है डिस्लिपिडेमिया यानि लिपिड प्रोफाइल जो भारत में 80 फीसदी लोगों में नॉर्मल नहीं है और न ही लोगों को इसकी जानकारी ही है।