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मिश्रीलाल पंवार जोधपुर इकाई, महा सचिव, जर्नलिस्ट एसोसिएशन आफ राजस्थान मानव अधिकार सेवा संघ राष्ट्रीय सेन्टर कमेटी सदस्य
वरिष्ठ पत्रकार दीनदयाल जी के पास एक पड़ौसन आईं और बोली, सर आपसे एक मदद चाहिए।
“हां, बोलिए। मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं?”
” दरअसल मेरी बेटी सरकारी स्कूल में टीचर हैं। अभी उसका ट्रांसफर अन्य जिले में हो गया है। मैं प्रायः बीमार रहती हूं। मेरी बेटी ही मेरी देखभाल करती है। उसके दूर चले जाने से मैं अकेली पड़ जाउंगी। सुना है मंत्रीजी आपको बहुत मान देते हैं। प्लीज़, मेरी बेटी का ट्रांसफर रद्द करवाने दें। बड़ी मेहरबानी होगी।”
दीनदयाल जी कुछ देर तो सोच में पड़ गए। यह सच था कि मंत्रीजी उनको बहुत मान देते थे। आज तक कभी भी नाम लेकर संबोधित नहीं किया। हमेंशां दीनदयाल जी सर कह कर संबोधित करते हैं। हांलांकि उन्होंने कभी भी किसी काम को लेकर मंत्री से बात नहीं की थी। मगर आज वृद्ध पड़ोसन की बात पर मन पसीज गया।
उन्होंने वृद्ध पड़ोसन की तरह देख कर कहा, “कल मंत्री जी अपने शहर में आ रहे हैं। मैं उन्हें कह दूंगा। भगवान ने चाहा तो तुम्हारा काम हो जाएगा।”
दूसरे दिन वे वृद्ध माताजी और उनकी पुत्री को लेकर सर्किट हाउस पहुंचे तो देखा वहां लोगों की भारी भीड़ जुटी हुई थी।
दीनदयाल जी ने अपना विजिटिंग कार्ड अन्दर भेजा। उन्हें आशा थी कि मंत्रीजी कार्ड देखते ही खुद बाहर दौड़े आएंगे। मगर ऐसा नहीं हुआ। आधे घंटे के बाद अन्दर से बुलाया आया,
“आपको अन्दर बुलाया है।”
भारी मन से दीनदयाल जी कमरे में पहुंचे। मंत्रीजी सोफे पर बैठे अपने पी. ए. को कुछ निर्देश दे रहे थे। दीनदयाल जी को देखा तो बोले, “हां भाई दीनदयाल,बोल कैसे आना हुआ?”
दीनदयाल जी मंत्रीजी का यूं बदला व्यवहार देखकर हैरान गए। मंत्रीजी पार्टी के मामूली कार्यकर्ता थे, तब दीनदयाल जी ने उसे सपोर्ट कर, मंत्री बनाने तक खूब मदद की थी। अब तक कभी भी उसने दीनदयाल जी को उनके नाम से संबोधित नहीं किया था। आज पहली बार नाम से संबोधित किया था। सम्मान देने के लिए सोफे से उठना भी मंत्रीजी को गवारा नहीं हुआ। आदमी को गिरगिट की तरह रंग बदलते देख दीनदयाल जी हैरान रह गए।
अपमान का कड़वा घूंट पीकर दीनदयाल जी बिना कुछ कहे कमरे से बाहर निकल पड़े।