बुढ़ापे का स्वास्थ्य सुरक्षा कवच बनाने की सराहनीय पहल

केंद्र सरकार ने अब सत्तर साल से ऊपर के सभी वरिष्ठ नागरिकों को ‘आयुष्मान भारत’ योजना में शामिल करने का निर्णय लिया है, जो सुखद एवं स्वागतयोग्य कदम है। अपने देश के करीब साढ़े चार करोड़ परिवार के छह करोड़ बुजुर्ग इस योजना के अंतर्गत मुफ्त इलाज करा सकेंगे। दरअसल वर्ष 2018 में शुरू हुई आयुष्मान भारत योजना में अब तक केवल गरीब परिवार ही शामिल हो सकते थे, जिन्हें पांच लाख का कैशलेस कवर दिया जाता था।

अब इस सार्वभौमिक स्वास्थ्य योजना का लाभ सभी बुजुर्गों को दिया जाएगा। इस योजना से हम एक ऐसी दुनिया बना सकेंगे जहाँ हर बुजुर्ग अपने बुढ़ापे को गरिमा, आत्मसम्मान, सुरक्षा और स्वस्थता के साथ जी सकेंगे। इसके लिये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं उनकी जनकल्याणकारी सरकार को साधुवाद दिया जाना चाहिए। पारिवारिक एवं सामाजिक घोर उपेक्षा एवं उदासीनता के कारण बुढ़ापा अपने आप में एक रोग ही बनता गया है। जब आय के स्रोत सिमट जाते हैं और बच्चों से पर्याप्त मदद नहीं मिलती तो शरीर में रोग दस्तक देने लगते हैं, फिर महंगे इलाज की चिंता और बढ़ जाती है। संयुक्त परिवारों के विघटन और एकल परिवारांे के बढ़ते चलन ने इस स्थिति को नियंत्रण से बाहर कर दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार की नयी पहल का बेहतर तरीके से क्रियान्वयन हुआ तो यह फैसला इस आयुवर्ग के बुजुर्गों की सेहत को लेकर सुरक्षा कवच का काम करेगा। यह जरूरत इसलिए भी महसूस की जा रही थी क्योंकि आने वाले बीस वर्ष में भारत की बुजुर्ग आबादी तीन गुना होने की संभावना है।

नये भारत-विकसित भारत की उन्नत एवं आदर्श संरचना बिना वृद्धों की सम्मानजनक स्थिति के संभव नहीं है। यदि परिवार के वृद्ध कष्टपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं, रुग्णावस्था में बिस्तर पर पड़े कराह रहे हैं, भरण-पोषण एवं उचित स्वास्थ्य-सेवाओं को तरस रहे हैं तो यह हमारे लिए वास्तव में लज्जा एवं शर्म का विषय है। वर्तमान युग की बड़ी विडम्बना एवं विसंगति है कि वृद्ध अपने ही घर की दहलीज पर सहमा-सहमा खड़ा है, वृद्धों की उपेक्षा स्वस्थ एवं सृसंस्कृत परिवार परम्परा पर तो काला दाग है ही, शासन-व्यवस्थाओं के लिये भी लज्जाजनक है। हम सुविधावादी एकांगी एवं संकीर्ण सोच की तंग गलियों में भटक रहे हैं तभी वृद्धों की आंखों में भविष्य को लेकर भय है, असुरक्षा और दहशत है, दिल में अन्तहीन दर्द है।

इन त्रासद एवं डरावनी स्थितियों से वृद्धों को मुक्ति दिलाने एवं उनके स्वास्थ्य विषयक खर्चो एवं चिन्ताओं को दूर करने के लिये केन्द्र सरकार ने आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के अन्तर्गत 70 वर्ष और उससे अधिक आयु के सभी वरिष्ठ नागरिकों को वित्तीय लाभ देने का फैसला लिया है, वह सराहनीय एवं प्रासंगिक निर्णय है। इस फैसले की जरूरत इसलिए थी क्योंकि सामाजिक सुरक्षा के मामले में भारत बहुत पीछे है।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 2019-21 की रिपोर्ट से पता चलता है कि देश में ऐसे परिवारों की संख्या केवल 41 प्रतिशत है, जिनके कम से कम एक सदस्य का स्वास्थ्य बीमा हो। बिहार, महाराष्ट्र जैसे बड़ी आबादी वाले राज्यों में तो यह राष्ट्रीय औसत के करीब आधे के बराबर है। स्वास्थ्य बीमा को लेकर यह उदासीन रवैया हमारी उस आदत की वजह से है, जिसमें ज्यादातर लोग यह सोचते हैं कि जब बीमारी आएगी तो देखा जाएगा। बहुत से लोग जीवन बीमा और स्वास्थ्य बीमा को एक ही चीज समझ लेते हैं। लेकिन, जब बीमारी सिर पर आती है, तो पूरे घर के बजट को तहस-नहस एवं असंतुलित कर देती है। सरकार का मौजूदा कदम कई परिवारों को ऐसे आर्थिक दुष्चक्र में फंसने से बचा सकता है। भारत में इलाज दिनों-दिन महंगा होता जा रहा है। जब आय के स्रोत सिमट जाते हैं और बच्चों से पर्याप्त मदद नहीं मिलती तो शरीर में रोग दस्तक देने लगते हैं, फिर महंगे इलाज की चिंता और बढ़ जाती है। अकसर भारत में कर्मचारी व आम लोग सोचते हैं कि वे जीवन भर आयकर चुकाते हैं, लेकिन बुढ़ापे में सरकार की ओर से सामाजिक सुरक्षा ना के बराबर होती है। लेकिन अब मोदी सरकार ने लोकतंत्र के सामाजिक कल्याणकारी स्वरूप को तरजीह दी है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं उनकी सरकार अनेक स्वस्थ एवं आदर्श समाज-निर्माण की योजनाओं को आकार देने में जुटी है, उसने वृद्धों को लेकर भी चिन्तन करते हुए वृद्ध-कल्याण योजनाओं को लागू किया है। इन योजनाओं को लागू करने की जरूरत इसलिये सामने आयी है कि वृद्धों को आत्म-गौरव के रूप में स्वीकार करने की अपेक्षा, बंधन माना जाने लगा है। वृद्धों को लेकर जो गंभीर समस्याएं आज पैदा हुई हैं, वह अचानक ही नहीं हुई, बल्कि उपभोक्तावादी संस्कृति तथा महानगरीय अधुनातन बोध के तहत बदलते पारिवारिक-सामाजिक मूल्यांे, नई पीढ़ी की सोच में परिवर्तन आने, महंगाई के बढ़ने और व्यक्ति के अपने बच्चों और पत्नी तक सीमित हो जाने की प्रवृत्ति के कारण बड़े-बूढ़ों के लिए अनेक समस्याएं आ खड़ी हुई हैं। अब जब स्वास्थ्य बीमा का दायरा बढ़ाया गया है तो यह उम्मीद की जानी चाहिए कि खर्च को लेकर परिजनों का डर कम होगा। इस योजना का पूरा खाका सामने आना बाकी है। लेकिन यह सुनिश्चित तो करना ही होगा कि बीमा सुरक्षा कवच होने के बावजूद बुजुर्ग मुफ्त उपचार से वंचित न रह जाएं। खास तौर से सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को लेकर निजी अस्पतालों के रवैये को देखते हुए यह चिंता ज्यादा जरूरी हो जाती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार भारत में औसत आयु 67.3 साल है। पिछले दो दशकों में ही औसत आयु में पांच बरस से अधिक का इजाफा हो चुका है। निश्चित ही यह अच्छी खबर है, लेकिन इसके साथ यह चिंता भी जुड़ी हुई है कि देश में दिल से जुड़े रोगों और डायबिटीज के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। अन्य रोग भी तेजी से बढ़ रहे हैं। अनुमान लगाया गया है कि भारत में 60 वर्ष से ज्यादा उम्र की जो आबादी वर्ष 2011 में 8.6 प्रतिशत थी, वह बढ़कर 2050 तक 19.5 फीसदी हो जाएगी। यह भी अनुमान है कि 2030 तक भारत में स्वास्थ्य देखभाल का 45 प्रतिशत खर्च बुजुर्ग मरीजों पर होगा। ऐसे में बुजुर्गों के सामने अनेक अन्य समस्याओं के साथ नई एवं असाध्य बीमारियां और उनका महंगा इलाज बड़ी समस्या है। ऐसी स्थितियों में अब इस योजना का लाभ सभी बुजुर्गों को दिया जाएगा। बहुत संभव है कि इस समय जब कुछ राज्यों में चुनाव की प्रक्रिया चल रही है तो इस घोषणा के राजनीतिक निहितार्थों पर चर्चा हो सकती है। लेकिन भाजपा ने 2024 में लोकसभा चुनाव के लिये जारी घोषणापत्र में किये वायदे को ही आकार दिया है।

वरिष्ठ नागरिक इस योजना का लाभ निजी व राजकीय अस्पतालों में ले सकते हैं। वहीं सरकार की ओर से बताया गया है कि जो सत्तर साल से अधिक के नागरिक प्राइवेट बीमा योजना या फिर राज्य कर्मचारी बीमा योजना का लाभ ले रहे हैं, वे भी नई योजना का लाभ लेने के अधिकारी होंगे। लेकिन उन्हें इस योजना के लिये आवेदन करना होगा। सरकार ने फिलहाल इस योजना के लिये करीब साढ़े तीन हजार करोड़ का बजट रखा है और आवश्यकता पड़ने पर बजट बढ़ाने की बात कही है। सरकार ने बजट में स्वास्थ्य के लिए कोटा बढ़ाया है। हालांकि चीन और अमेरिका की तुलना में यह अब भी कम है। मेडिकल सुविधाएं एवं साधन बढ़ाने के साथ यह इंतजाम भी करना होगा कि आम जनता उसका फायदा उठा सके।

सरकार का हालिया फैसला इसी दिशा में उठाया गया कदम है, लेकिन यह भी सुनिश्चित करना होगा कि योजना को सही ढंग से लागू किया जाए। मुफ्त उपचार से भी बड़ी जरूरत सत्तर साल की उम्र पार वरिष्ठ नागरिकों की नियमित सेहत जांच की है। अस्पतालों की भीड़ में जांच कराना इनके लिए मुश्किल भरा हो सकता है। ऐसे में बुजुर्गों के घर तक मोबाइल स्वास्थ्य जांच सेवा भी इस योजना में लागू हो तो सोने पर सुहागा हो सकता है। सरकार को भविष्य में वृद्धों के लिये अलग से अस्पताल संचालित करने के बारे में भी सोचना चाहिए।

ललित गर्ग
ललित गर्ग
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Translate »