बालसाहित्य का अर्थ है- बच्चों का साहित्य। बालसाहित्य तभी सार्थक है, जब बच्चों को ध्यान ध्यान में रखकर लिखा जाए और बच्चों तक पहुँचे। बालसाहित्य के अंतर्गत वह समस्त साहित्य आता है, जिसे बच्चों के मानसिक स्तर को ध्यान में रखकर लिखा गया हो। जयप्रकाश भारती, हरिकृष्ण देवसरे से लेकर नागेश पांडेय ‘संजय’, सतीश कुमार अल्लीपुरी, शिव मोहन यादव, मनोहर चमोली ‘मनु’ तक एक लंबी सूची है, जिन्होंने बच्चों के लिए सुंदर और गेय, बाल सुलभ रचनाओं का सृजन कर बालसाहित्य को रोचक बनाया है।
सन् 1970 ई. को ग्राम कैतहा, पोस्ट भवानीपुर, जिला बस्ती, उत्तर प्रदेश में श्री अमरनाथ लाल श्रीवास्तव और श्रीमती लीला श्रीवास्तव की छह संतानों में दूसरी संतान के रूप में जन्मे लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव ने बीएससी, बीएड तथा एलएलबी तक की पढ़ाई की है। देवेन्द्रजी विज्ञान वर्ग के विद्यार्थी होते हुए भी हिंदी साहित्य में गहरी रुचि रखते हैं। ‘नव किरण’ तथा ‘बाल किरण’ दो पत्रिकाएँ हिंदी जगत में आज बड़ा दखल रखती हैं। लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव इन पत्रिकाओं के संस्थापक-संपादक हैं। आपकी साहित्य सेवा को देखते हुए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ ने आपको लल्ली प्रसाद पांडेय बाल पत्रकारिता सम्मान से नवाजा है।
ज्ञात हो, लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव बालसाहित्य के सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे बच्चों के लिए ‘बाल किरण’ और बड़ों के लिए ‘नव किरण’ पत्रिका का वर्षों से संपादन-संचालन कर रहे हैं। इस बीच उन्होंने अपने रचना कौशल को रचनात्मक दृष्टि से परखा और जांचा है, तभी तो उनकी कलम पैनी होती जा रही है। उनकी बालमन को गहरे तक छूने वाली सुंदर बाल कविताएँ बच्चों का मनोरंजन ही नहीं करतीं, बल्कि उन्हें एक रास्ता भी बताती हैं, हृदय में अच्छा इंसान बनने का जज़्बा जगाती हैं और खेल-खेल में संदेश देती हुई मन में बस जाती हैं। ऐसा ही “बंदर की चल पड़ी दुकान” उनका पहला बाल कविता संग्रह है, जो हाल ही में संगिनी प्रकाशन, कानपुर से प्रकाशित होकर आया है। इस बाल कविता संग्रह में कुल 27 बाल कविताओं का चयन किया गया है। 72 पृष्ठ की इस पुस्तक की समीक्षा श्रेष्ठ गीतकार डॉ. महेश मधुकर और डॉ. त्रिलोकी सिंह ने लिखी है। फ्लैप पर ही छपी कविता बालमन पर अपनी छाप छोड़ी है। एक पंक्ति देखें:
जो लोग जिंदगी से हार जाते हैं, यह कविता कुछ करने का जज्बा उनके अंदर जगाती है। बच्चे जो सोच लेते हैं, वह करके दिखाते हैं। ऐसी ही कविता की एक और पंक्ति द्रष्टव्य है:
यह कविता हमारे उन किशोरों के लिए है, जो जरा सी बात पर हार मान लेते हैं, उन्हें यह कविता आगे बढ़ने और जीवन में कुछ कर गुजरने का संदेश देती है। बच्चे मन के सच्चे होते हैं। वह कभी झूठ नहीं बोलते, जो कहते हैं, सत्य कहते हैं। इस बाल कविता संग्रह की पहली कविता “हम सब बच्चे, मन के सच्चे” की एक पंक्ति देखें-
बच्चे घर में रहते हैं, तो अक्सर उधमबाजी करते हैं। यह होते रहना भी चाहिए, यदि बच्चे घर में हैं, तो चहलकदमी रहती है, जिस घर में बच्चे नहीं होते, वह घर सूना-सूना लगता है। लेकिन आज का बालक बहुत समझदार है। माता-पिता की बात मानते हैं, कोई शैतानी करने पर जब डाँटा जाता है, तो रोते हैं और दादा-दादी से शिकायत भी करते हैं। आज समाज में संस्कार और सदाचार की अक्सर कमी देखी जा रही है। बाल कविता के माध्यम से देवेन्द्र जी ने बच्चों के लिए सुंदर संदेश देने का प्रयास किया है। पंक्ति दृष्टव्य है-
आज पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ बच्चों के लिए संस्कार तो आवश्यक हैं ही, उनको जब तक अपने कार्य में सफल न हों, तब तक संघर्ष करते रहने के संस्कार भी देने चाहिए। “हम सीखें सूरज दादा से” कविता के माध्यम से बहुत सुंदर तरीके से देवेंद्र जी समझाते हैं:
सूरज पूरी दुनिया को रोशन करता है, लेकिन कभी शिकायत नहीं करता। इसी का भाव बच्चों में जगाने का काम देवेन्द्र जी की कविताएँ करती हैं। माँ खुद परेशानी उठाकर बच्चों का पालन-पोषण करती है, उसको सही मार्ग दिखाती है। विद्वानों ने माँ को परिवार की प्रथम पाठशाला भी कहा है। लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव भी बच्चों को अपनी कविता “माँ गंगा का निर्मल नीर” कविता में गंगा माँ और जन्म देने वाली माँ की तुलना करते हुए अच्छा संदेश देने का प्रयास करते हैं-
माँ जैसा त्यागी, परोपकारी इस संसार में दूसरा और कोई नहीं है। माँ के चरणों में स्वर्ग होता है। बच्चे को संस्कार और सद्गुण अपनी माँ से पुरस्कार में मिलते हैं, इसका कर्ज मानव जीवन भर नहीं चुका पाता है।
गाँव का जीवन एकदम मस्त होता है। कल कल बहती नदियाँ, सनन-सनन चलती ठंडी हवा और खेतों में दूर तक फैली हरियाली मन को आनंदित करती है। लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव अपनी कविता “जीवन हमारे गाँव का” में बच्चों को गाँव की बात बड़ी सरलता से समझाते हैं-
आज भी गाँव का जीवन शानदार समझा जाता है। लोग मिल-जुलकर रहते हैं। हर व्यक्ति सब्जी-चटनी से रोटी खाते हुए खुशहाली का जीवन व्यतीत करता है और शहर जैसा शोर-शराबा वहाँ नहीं होता है।
भारत में ऋतुओं को 6 भागों में बाँटा गया है- वर्षा, ग्रीष्म, शरद, हेमंत, शिशिर, वसंत। हर ऋतु का एक अलग ही आनंद और उत्साह लोगों में देखने को मिलता है। लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव जाड़े के मौसम का वर्णन “सूरज दादा जाड़े में” कविता में करते हैं-
एक बालक कल्पना करता है कि सूरज दादा बादलों में छिपे रहते हैं और संपूर्ण मानव जाति ठंड से ठिठुरती रहती है, उसी की कोमल कल्पना कर देवेन्द्र जी ने जाड़े के मौसम का ताना-बाना इस कविता में बुना है। जैसा कि ऊपर भी लिखा जा चुका है कि बच्चे मन के सच्चे होते हैं। उनकी कल्पना की उड़ान दूर तक होती है। वे सदैव सत्य बोलना पसंद करते हैं। चूंकि देवेन्द्र जी एक शिक्षक हैं। उन्होंने शिक्षण के दौरान बच्चों के मन को गहरे जाकर पढ़ा है। कविता की पंक्ति दृष्टव्य है-
यदि हम बच्चों को उनका संसार दें, तो वे अपनी कल्पना शक्ति से अच्छे कार्य कर जाते हैं। इसलिए देवेंद्र जी बच्चों को उनका संसार देने की वकालत इस पंक्ति में करते नजर आते हैं। बच्चों को सत्य के पथ पर चलने के लिए प्रेरित करती इनकी एक कविता की पंक्ति द्रष्टव्य है-
हमें समाज को साफ़-सुथरा बनाना है, तो बच्चों के हाथों में मोबाइल की जगह अच्छा और संस्कार सिखाने वाला बालसाहित्य उनके हाथों में देना होगा, तभी आने वाली पीढ़ी के हाथों में भारत का भविष्य सुरक्षित रह सकता है। देवेन्द्र जी यह संस्कार अपनी कविताओं के माध्यम से बखूबी बच्चों को दे रहे हैं।
जानवर भी अपने आशियाने बनाने और उजड़ने पर दुःख प्रकट करते हैं। अपना घर सबको अच्चा लगता है। ऐसा ही संदेश देवेन्द्र जी की एक कविता देती नजर आती है। पंक्ति देखें:
आज जब सब ओर स्मार्ट बनने, स्मार्ट सिटी होने की बात हो रही है, तो जानवर भला कहाँ पीछे रह सकते हैं। वे भी स्मार्ट बनने के तौर-तरीकों पर बात करते हैं। पंक्ति देखें-
“बंदर की चल पड़ी दुकान” संग्रह की शीर्षक कविता में बंदर ने भी फलों की दुकान खोल ली है। आम बच्चों को बेहद पसंद होता है। इस कविता के माध्यम से देवेन्द्र जी बच्चों को आमों के नाम भी बताते हैं। वे लिखते हैं:
अपनी सुविधा के लिए हम इंसानों ने स्कूल, बाजार स्थापित किए हैं, जहाँ हमारी सुख-सुविधाओं की वस्तुएँ मिलती हैं। देवेन्द्र के विचार से जानवरों ने भी वैसा ही बाजार स्थापित करने की योजना बनाई है। पंक्ति देखें:
जब बाजार लगेगा, तो उसमें सभी सुख-सुविधाएँ होंगी। आजकल मॉल खुलने का फैशन सा चल गया है, महंगी-महंगी वस्तुएँ मिलती हैं। लेकिन समाज में अच्छे संस्कार देने के लिए स्कूल बहुत जरूरी है, जहाँ अच्छी शिक्षा मिल सके। पंक्तियां द्रष्टव्य हैं
हमारे बच्चों को नया मार्ग दिखाने, उनमें उत्साह भरने के लिए देवेन्द्र जी एक बड़ी प्यारी कविता लिखते हैं, पंक्ति देखें:
जब बारिश का मौसम आता है, तब बच्चों के मन में तमाम खेल चल चल रहे होते हैं। पानी में नाव चलाना, बच्चों पहला शौक है। लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव ने नाव को लेकर एक सुंदर कविता रची है। पंक्ति द्रष्टव्य है:
जानवरों की भी अपनी एक दुनिया है। वे भी सोचते हैं कि इंसानों की तरह दुकान रखें और खाएं, कमाएं। आत्मनिर्भर रहें। ऐसे ही एक आत्मनिर्भर बंदर ने एक दुकान खोली है। बंदर को ध्यान में रखकर देवेन्द्र जी ने बहुत सुंदर कविता रची है। इसी बाल कविता के नाम पर इस बाल कविता संग्रह का नाम रखा गया है। कविता की पंक्ति देखें:
जब बंदर ने दुकान खोलने का मन बनाया, तब क्या-क्या दुकान में सामान रहेगा और माल बिकेगा भी या नहीं, जैसे कई विचार उसके मन में थे। दूसरी तरफ उधारी अधिक बढ़ने का भी डर था:
अक्सर कोई भी रो शुरू करने पर जब उधारी बढ़ने लगती है, तो दुकान डूबने के कगार पर पहुंच जाती है। यह कविता इसी बात को दर्शाती है।
पर्यावरण हम सब जीवों के लिए आवश्यक है। लाल देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव ने पर्यावरण को लेकर एक शानदार कविता लिखी है। पंक्ति देखें:
केवल पेड़ लगाकर इतिश्री कर लेना ही काफी नहीं है। पेड़ लगाने के बाद उनकी देखभाल करना भी बेहद जरूरी है। ऐसा ही संदेश देती देवेन्द्र जी की कुछ और पंक्तियां:
भारत देश में ही ऐसे बहुत से परिवार हैं, जो साग-सब्जी अथवा अन्य रोजगार करके परिवार का पालन-पोषण करते हैं, इसमें उनका उद्देश्य यही होता है कि बच्चे अच्छे से पढ़-लिख जाएं और घर-परिवार का खर्चा भी अच्छे से चल जाए। ऐसी ही मनभावन एक कविता की पंक्ति दृष्टव्य है:
आंवला बहुत गुणकारी होता है। घरों में अक्सर आंवला की चटनी, मुरब्बा बनाया जाता है, इसे बच्चे, बड़े सभी पसंद करते हैं, साथ ही यह दवाई आदि में भी काम आता है। इसके लाभ गिनाते हुए देवेन्द्र जी ने बहुत सुंदर कविता लिखी है:
आज प्रकृति के बिगड़ते स्वरूप का मानव और जानवर सभी पर व्यापक असर पड़ रहा है। जंगल उजाड़कर बड़े-बड़े उद्योग-धंधे खोल दिए गए, लेकिन नए बाग-बगीचे लगाने के बारे में कोई नीति नहीं बनी, पशु-पक्षी बेघर हुए सो अलग। इसी का परिणाम है, बिना मौसम के बारिश, अधिक ठंड, अधिक गर्मी। बिगड़ते मौसम के स्वरूप को लेकर देवेन्द्र जी चिंता व्यक्त करते हैं और समाज को जागरूक करते हुए लिखते हैं:
आज हर घर में दो से तीन वाहन हैं। आज का मानव पैदल चलना बिल्कुल पसंद नहीं करता। इसी का परिणाम है, शहरों में आए दिन जाम की स्थिति बनी रहती है। कई बार जरूरी जगहों पर पहुंचने वाले लोगों के वाहन जाम में फंस जाते हैं और लेट होने का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता है। इसी को लेकर देवेन्द्र जी ने सुंदर कविता रची है:
आज बच्चे हों या बड़े, सभी लोग वाहन सड़क पर आते ही तेज स्पीड में दौड़ाते हैं, परिणामस्वरूप दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। देवेन्द्र जी भावी पीढ़ी को कम वाहन रखने और कम दूरी के लिए पैदल चलने का सुझाव देते हैं: